कौन क्या खाएगा, इसे सरकार तय नहीं कर सकती: हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने खानपान को जीने के अधिकार से जोड़ते हुए मीट की दुकानों पर लगी रोक को ग़लत बताया, व्यापारियों को लाइसेंस जारी करने का निर्देश.

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इलाहाबाद हाइकोर्ट (फोटो: पीटीआई)

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने खानपान को जीने के अधिकार से जोड़ते हुए मीट की दुकानों पर लगी रोक को ग़लत बताया, व्यापारियों को लाइसेंस जारी करने का निर्देश.

इलाहाबाद हाइकोर्ट (फोटो: पीटीआई)
इलाहाबाद हाइकोर्ट (फोटो: पीटीआई)

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा मीट की दुकानें बंद करने के मामले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने कहा है कि सरकार अवैध बूचड़खानों पर कार्रवाई करे, लेकिन पूर्ण रूप से मीट पर रोक लगाना ग़लत है क्योंकि यह भोजन की आदत और मानवीय स्वभाव से जुड़ा हुआ है.

एक याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि संविधान के अनुछेद 21 के अनुसार सभी को अपनी पसंद का खाना खाने का अधिकार है. इसके साथ ही अदालत ने राज्य सरकार से 30 अप्रैल तक जवाब तलब किया है.

आज तक की ख़बर के अनुसार उत्तर प्रदेश में लखीमपुर खीरी के एक मीट व्यापारी ने याचिका दायर की थी, जिस पर सुनवाई करते हुए जस्टिस अमरेश प्रताप शाही और जस्टिस संजय हरकौली ने कहा है कि मीट की दुकानों पर रोक ठीक नहीं है और यह आजीविका, खान पान और रोज़गार से जुड़ा मामला है. संविधान के अनुछेद 21 के तहत मीट व्यापार पर रोक नहीं लगाई जा सकती. व्यापारी द्वारा बार-बार लाइसेंस रिन्यू की अपील के बाद भी काम न होने पर याचिका डाली गई थी.

कोर्ट ने यह भी कहा है कि खानपान की आदत एक मानवीय स्वभाव है जो आदमी-आदमी पर निर्भर करती है, इसे राज्य द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने आदेश दिया कि 31 मार्च तक जिन दुकानों को लाइसेंस नहीं दिए गए, उन्हें सप्ताह भर में हमारी गाइडलाइन के अनुसार लाइसंस देने पर विचार हो. राज्य के सभी ज़िलाधिकारी हर 2 किलोमीटर की दूरी पर मीट की दुकानों के लिए जगह मुहैया कराएं.

डेक्कन क्रोनिकल की ख़बर के अनुसार, उत्तर प्रदेश में मीट उद्योग कुल 15,000 करोड़ का है, इससे क़रीब 15 लाख लोगों को रोज़गार मिलता है. अदालत ने कहा कि उत्तर प्रदेश मीट का सबसे बड़ा उत्पादक है और यहां खानपान की विविध आदतें मौजूद हैं. यह राज्य की धर्मनिरपेक्ष संस्कृति का भी अनिवार्य अंग है.

अदालत ने यह भी कहा कि भोजन स्वास्थ के लिए ज़रूरी है इसलिए उसे ग़लत नहीं ठहराया जा सकता है. यह राज्य की ज़िम्मेदारी है कि वह स्वास्थ्य संबंधित भोजन राज्य के लिए पर्याप्त उपलब्ध कराए. भारी संख्या में मीट व्यापारियों ने शिकायत की थी कि लाइसेंस रिन्यू करने के आवेदन के बाद भी सरकार की तरफ से देरी की गई और अब अवैध बूचड़खानों पर कार्रवाई के चलते व्यापार ठप हो गया है.

उत्तर प्रदेश की तरफ़ से अदालत में पक्ष रख रहे धीरज श्रीवास्तव ने कहा है कि अवैध बूचड़खानों पर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में जल्द एक मीटिंग कर इस विषय पर निर्णय लिया जाएगा. राज्य में कुल 38 बूचड़खाने हैं जो मीट का निर्यात करते हैं जबकि 10,000 अवैध बूचड़खाने हैं जो राज्य में बकरे और भैंस के गोश्त की खपत को पूरा करते हैं.

सरकार ने अदालत में यह भी कहा की उनकी मीट की खपत रोकने या सभी बूचड़खानों को बंद करने की कोई योजना नहीं है. 30 अप्रैल तक राज्य सरकार से जवाब तलब करने के बाद इस मामले की अगली सुनवाई 13 अप्रैल को होनी है.

उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के गठन के बाद ही राज्य में सभी अवैध बूचड़खानों पर कार्रवाई करते हुए उन्हें बंद करवा दिया गया. कई जगह मीट की दुकानों के ख़िलाफ़ गोरक्षा दल के लोगों ने भी अभियान चलाया, इसके चलते दहशत में आकर छोटे मीट कारोबारियों ने भी अपनी दुकानें बंद कर दीं.

सरकार की कार्रवाई के बाद प्रदेश के मीट व्यापारियों ने हड़ताल का एलान कर दिया. इसके बाद कुछ व्यापारियों के एक दल ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाक़ात कर हड़ताल ख़त्म करने का एलान किया था.