अनुच्छेद 35-ए को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट अगले साल जनवरी में करेगा सुनवाई

संविधान में 1954 में राष्ट्रपति के आदेश पर अनुच्छेद 35-ए शामिल किया गया था. यह अनुच्छेद जम्मू कश्मीर के नागरिकों को विशेष अधिकार और सुविधायें प्रदान करता है.

Srinagar: National Conference Women MLAs, MLCs, and other senior leaders raise slogans during a protest march against the petitions filed in the Supreme court challenging the validity of Article 35 A, in Srinagar on Saturday, Aug 4, 2018. Article 35 A, which was incorporated in the Constitution by a 1954 presidential order, accords special rights and privileges to the citizens of J&K. (PTI Photo) (PTI8_4_2018_000066B)
(फाइल फोटो: पीटीआई)

संविधान में 1954 में राष्ट्रपति के आदेश पर अनुच्छेद 35-ए शामिल किया गया था. यह अनुच्छेद जम्मू कश्मीर के नागरिकों को विशेष अधिकार और सुविधाएं प्रदान करता है.

Srinagar: National Conference Women MLAs, MLCs, and other senior leaders raise slogans during a protest march against the petitions filed in the Supreme court challenging the validity of Article 35 A, in Srinagar on Saturday, Aug 4, 2018. Article 35 A, which was incorporated in the Constitution by a 1954 presidential order, accords special rights and privileges to the citizens of J&K. (PTI Photo) (PTI8_4_2018_000066B)
(फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू कश्मीर में कानून व्यवस्था की समस्या के बारे में केंद्र और राज्य सरकार के कथन के मद्देनजर संविधान के अनुच्छेद 35-ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुक्रवार को अगले साल जनवरी के लिए स्थगित कर दी. यह अनुच्छेद जम्मू कश्मीर के नागिरकों को विशेष अधिकार और सुविधाएं प्रदान करता है.

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस धनन्जय वाई चंद्रचूड़ की खंडपीठ से केंद्र की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल और राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने अनुच्छेद 35-ए को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध किया.

उनका कहना था कि राज्य में आठ चरणों में सितंबर से दिसंबर के दौरान स्थानीय निकाय के चुनाव हो रहे हैं और वहां कानून व्यवस्था की समस्या है.

इन याचिकाओं पर सुनवाई अगले साल जनवरी के दूसरे सप्ताह के लिए स्थगित करते हुए पीठ ने कहा, ‘चुनाव हो जाने दीजिए. हमें बताया गया है कि वहां कानून व्यवस्था की समस्या है.’

संविधान में 1954 में राष्ट्रपति के आदेश पर अनुच्छेद 35-ए शामिल किया गया था. यह अनुच्छेद जम्मू कश्मीर के नागरिकों को विशेष अधिकार और सुविधाएं प्रदान करता है तथा यह राज्य के बाहर के लोगों को इस राज्य में किसी भी प्रकार की अचल संपत्ति प्राप्त करने पर रोक लगाता है.

यही नहीं, इस राज्य की कोई महिला यदि किसी बाहरी व्यक्ति से शादी करती है तो उसे संपत्ति के अधिकार से वंचित किया जाता है और उसके उत्तराधिकारियों पर भी यह प्रावधान लागू होता है.

मामले पर सुनवाई शुरू होते ही अतिरिक्त सालिसीटर जनरल ने कहा कि राज्य में 4,500 सरपंचों और दूसरे स्थानीय निकाय के पदों के लिये आठ चरणों में सितंबर से दिसंबर के दौरान चुनाव होंगे.

उन्होंने सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध करते हुए कहा कि यदि स्थानीय निकाय के चुनाव नहीं हुए तो इसके लिए आवंटित 4,335 करोड़ रुपये की धनराशि का इस्तेमाल इस मद में नहीं हो सकेगा. उन्होंने राज्य की मौजूदा कानून व्यवस्था की ओर भी पीठ का ध्यान आकर्षित किया.

अटार्नी जनरल ने कहा कि बड़ी संख्या में अर्द्धसैनिक बल वहां पर तैनात हैं. वहां शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव हो जाने दीजिए और इसके बाद जनवरी या मार्च में इन याचिकाओं पर सुनवाई की जा सकती है. यह विषय बहुत ही संवेदनशील है.

अतिरिक्त सालिसीटर जनरल का कहना था कि हालांकि यह मुद्दा लैंगिक भेदभाव से संबंधित है परंतु इन याचिकाओं पर सुनवाई के लिए यह उचित समय नहीं है.

संविधान के इस अनुच्छेद का विरोध कर रहे समूह की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने कहा कि जम्मू कश्मीर जाकर वहां 60 साल से रहने वाले लोगों को वहां रोजगार या मेडिकल और इंजीनियरिंग कालेजों में शिक्षा के लिए प्रवेश का लाभ नहीं मिल रहा है.

नेशनल कांफ्रेंस और मार्क्सवादी पार्टी सहित कुछ राजनीतिक दलों ने इस अनुच्छेद का समर्थन करते हुए भी शीर्ष अदालत में याचिकाएं दायर की हैं.

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