एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने कहा है कि अपने घरों से विस्थापित हुए दंगा पीड़ित अब भी पुनर्वास कॉलोनियों में गंदगी के बीच रह रहे हैं जबकि सामूहिक बलात्कार की शिकार सात महिलाओं को अब भी न्याय का इंतज़ार है.
नई दिल्ली: एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने कहा है कि उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर और शामली में 2013 में हुई सांप्रदायिक हिंसा के पीड़ित बहुत थोड़ी उम्मीद के साथ न्याय मिलने का इंतजार कर रहे हैं क्योंकि राज्य सरकार की ओर से उनके पुनर्वास के लिए किया गया प्रयास और मुआवजा अपर्याप्त है.
दंगों की पांचवीं बरसी पर एमनेस्टी ने शनिवार को कहा कि अपने घरों से विस्थापित हुए दंगा पीड़ित अब भी पुनर्वास कॉलोनियों में गंदगी के बीच रह रहे हैं जबकि सामूहिक बलात्कार की शिकार सात महिलाओं को अब भी न्याय का इंतजार है. इन महिलाओं ने काफी साहस दिखाते हुए शिकायत दर्ज कराई थी.
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया की कार्यक्रम निदेशक अस्मिता बसु ने कहा, ‘उत्तर प्रदेश सरकार मुज़फ़्फ़रनगर और शामली के दंगा पीड़ितों को भूल गई है. हाल के वर्षों में हुए सर्वाधिक भीषण दंगा के पीड़ितों के प्रति उदासीनता को स्वीकार नहीं किया जा सकता.’
बसु ने कहा, ‘उनके साथ जो अन्याय हुआ है उसका समाधान करने के लिए राज्य ने बहुत कम काम किया है. उनके पुनर्वास और मुआवजे के लिए सरकार की ओर से किया गया प्रयास बेहद अपर्याप्त है.’
बसु ने कहा कि मुज़फ़्फ़रनगर और शामली की सात साहसी महिलाओं ने धमकी के बावजूद मामला दायर किया. उन्होंने आगे कहा, ‘हालांकि, पांच वर्ष बाद भी न्याय नहीं हुआ. उन्हें अपने जीवन और आजीविका को फिर से पटरी पर लाने के लिए बहुत कम सहायता मिली है.’
उन्होंने कहा कि अब तक सातों मामलों में से किसी में भी दोषसिद्धि नहीं हुई है. एक पीड़िता की बच्चे को जन्म देने के दौरान मौत हो गई. वहीं सात पीड़िताओं में से एक ने कहा, ‘मैंने पूरा विश्वास खो दिया है. शिकायत दर्ज कराने के बाद से पांच साल बीत गए हैं.’
पीड़िता ने कहा, ‘कोई भी इतने वर्षों में मेरी या मेरे परिवार की मदद करने नहीं आया है. मुझे अब अपने पति की सुरक्षा और अपने परिवार के अस्तित्व की परवाह है.’ इस महिला ने अगस्त 2018 में एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया से बातचीत की थी.
वहीं मुज़फ़्फ़नगर में काम कर रहीं सामाजिक कार्यकर्ता रेहाना अदीब ने कहा, ‘पीड़ितों को सामाजिक और राजनीतिक दबाव का सामना करना पड़ा है. जैसा न्याय होना चाहिए था, वैसा नहीं हुआ. बलात्कारी पिछले कई सालों से खुले में घूम रहे हैं. महिलाएं अपने मामलों को आगे बढ़ाने से डर रहीं हैं और इसके लिए उन्हें दोषी नहीं ठहराया जा सकता है.’
एमनेस्टी ने कहा, ‘कई सारी मीडिया रिपोर्टें बताती हैं कि इन मामलों में समझौता किया गया है और सात परिवारों में से कई लोगों को पैसे की पेशकश की जा रही है. हमें उन परिस्थितियों को समझने की जरूरत है जिनमें ये महिलाएं पिछले कई सालों से रह रहीं हैं. ये लोग डरे हुए हैं और इनका प्रशासन से विश्वास उठ चुका है.’
अंतरराष्ट्रीय एनजीओ ने कहा, ‘सभी सात सामूहिक बलात्कार मामलों में पुलिस ने आरोप दर्ज करने में महीनों लगा दिए. ज्यादातर मामलों में छह से 14 महीनों के बीच का समय लगा. इसके बाद बेहद धीमी गति से जांच चली और तीन मामलों में पीड़ितों ने एफआईआर में आरोपियों की पहचान की लेकिन कोर्ट में अपने बयान से पलट गए.
2013 में हुई हिंसा में कम से कम 60 लोग मारे गए और 50,000 से ज्यादा लोग विस्थापित हुए थे. उत्तर प्रदेश सरकार ने पीड़ितों को 5,00,000 रुपये देने का वादा किया था लेकिन गांव से विस्थापित हुए सैकड़ों परिवारों को ये राशि नहीं मिली.
एमनेस्टी ने कहा कि पुनर्वास कॉलोनियों में रह रहें भारी संख्या में परिवारों को बुनियादी सुविधाएं नहीं दी गई हैं. मुज़फ़्फ़रनगर की लगभग 82 फीसदी और शामली की लगभग 97 फीसदी कालोनियों में सुरक्षित और स्वच्छ पेयजल की सुविधा नहीं है. इसी तरह मुज़फ़्फ़रनगर की 61 फीसदी और शामली की 70 फीसदी कालोनियों में जल निकासी की सुविधा नहीं है.
अंतरराष्ट्रीय संस्था ने कहा, ‘उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मुज़फ़्फ़रनगर और शामली के दंगों में बचे हुए लोगों का अपमानजनक उपचार करना लोगों के संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने की प्रतिबद्धता का उल्लंघन है. दंगों में बचे हुए लोगों को गरीबी और भेदभाव के एक दुष्चक्र में रहने के लिए मजबूर किया गया है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बचे हुए लोगों की आवाजें तुरंत सुनी जाएंगी और न्याय में और देरी नहीं होगी.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)