जब राफेल क़रार हुआ, तब मैं राष्ट्रपति नहीं था: इमैनुएल मैक्रों

राफेल विवाद पर चुप्पी तोड़ते हुए फ्रांस के वर्तमान राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा, 'यह सरकार का सरकार के साथ हुआ क़रार था. उस वक़्त मैं पद पर नहीं था. मैं सिर्फ इतना जानता हूं कि हमारे नियम स्पष्ट थे.’

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France's President Emmanuel Macron speaks during a press conference he held during the 73rd session of the United Nations at U.N. headquarters in New York, U.S., September 25, 2018. REUTERS/Caitlin Ochs

राफेल विवाद पर चुप्पी तोड़ते हुए फ्रांस के वर्तमान राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा, ‘यह सरकार का सरकार के साथ हुआ क़रार था. उस वक़्त मैं पद पर नहीं था. मैं सिर्फ इतना जानता हूं कि हमारे नियम स्पष्ट थे.’

France's President Emmanuel Macron speaks during a press conference he held during the 73rd session of the United Nations at U.N. headquarters in New York, U.S., September 25, 2018. REUTERS/Caitlin Ochs
न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान पत्रकारों से बात करते फ्रांस के वर्तमान राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों (फोटो: रॉयटर्स)

न्यूयॉर्क: फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा है कि राफेल करार ‘सरकार से सरकार’ के बीच तय हुआ था और भारत एवं फ्रांस के बीच 36 लड़ाकू विमानों को लेकर जब अरबों डॉलर का यह करार हुआ, उस वक्त वह सत्ता में नहीं थे.

संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र के इतर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मैक्रों से पूछा गया था कि क्या भारत सरकार ने किसी वक्त फ्रांस सरकार या फ्रांस की दिग्गज एयरोस्पेस कंपनी डास्सो से कहा था कि उन्हें राफेल करार के लिए भारतीय साझेदार के तौर पर रिलायंस को चुनना है.

भारत ने करीब 58,000 करोड़ रुपये की लागत से 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए पिछले साल सितंबर में फ्रांस के साथ अंतर-सरकारी समझौते पर दस्तखत किए थे.

इससे करीब डेढ़ साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पेरिस यात्रा के दौरान इस प्रस्ताव की घोषणा की थी. इन विमानों की आपूर्ति सितंबर 2019 से शुरू होने वाली है.

पिछले साल मई में फ्रांस के राष्ट्रपति बने मैक्रों ने मंगलवार को पत्रकारों को बताया, ‘मैं बहुत साफ-साफ कहूंगा. यह सरकार से सरकार के बीच हुई बातचीत थी और मैं सिर्फ उस बात की तरफ इशारा करना चाहूंगा जो पिछले दिनों प्रधानमंत्री (नरेंद्र) मोदी ने बहुत स्पष्ट तौर पर कही.’

मैक्रों ने राफेल करार पर विवाद पैदा होने के बाद अपनी पहली प्रतिक्रिया में कहा, ‘मुझे और कोई टिप्पणी नहीं करनी. मैं उस वक्त पद पर नहीं था और मैं जानता हूं कि हमारे नियम बहुत स्पष्ट हैं.’

फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि यह सरकार से सरकार के बीच हुई बातचीत थी और ‘यह अनुबंध एक व्यापक ढांचे का हिस्सा है जो भारत एवं फ्रांस के बीच सैन्य एवं रक्षा गठबंधन है.’

उन्होंने कहा, ‘यह मेरे लिए बेहद अहम है, क्योंकि यह सिर्फ औद्योगिक संबंध नहीं बल्कि एक रणनीतिक गठबंधन है. मैं बस उस तरफ ध्यान दिलाना चाहूंगा जो पीएम मोदी ने इस मुद्दे पर कहा है.’

राफेल करार के मुद्दे पर भारत में बड़ा विवाद पैदा हो चुका है. यह विवाद फ्रांस की मीडिया में आई उस खबर के बाद पैदा हुआ जिसमें पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने कहा कि राफेल करार में भारतीय कंपनी का चयन नई दिल्ली के इशारे पर किया गया था.

ओलांद ने ‘मीडियापार्ट’ नाम की एक फ्रांसीसी खबरिया वेबसाइट से कहा था कि भारत सरकार ने 58,000 करोड़ रुपए के राफेल करार में फ्रांसीसी कंपनी डास्सो के भारतीय साझेदार के तौर पर उद्योगपति अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस के नाम का प्रस्ताव दिया था और इसमें फ्रांस के पास कोई विकल्प नहीं था.

भारत में विपक्षी पार्टियों ने ओलांद के इस बयान के बाद केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को घेरा और उस पर करार में भारी अनियमितता करने का आरोप लगाया.

राफेल सौदे पर फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ओलांद के बयान के बाद भारत में भारी राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया. ओलांद ने कहा था कि राफेल लड़ाकू जेट निर्माता कंपनी डास्सो ने आॅफसेट भागीदार के रूप में अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस को इसलिए चुना क्योंकि भारत सरकार ऐसा चाहती थी.

कांग्रेस की अगुवाई में विपक्षी पार्टियों ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने एयरोस्पेस क्षेत्र में कोई पूर्व अनुभव नहीं होने के बाद भी रिलायंस डिफेंस को साझेदार चुनकर अंबानी की कंपनी को फायदा पहुंचाया.

हालांकि फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति के इस बयान पर भारत सरकार की ओर से भी तुरंत प्रतिक्रिया आई थी, जिसमें कहा गया कि ओलांद के बयान की जांच की जा रही है और साथ में यह भी कहा गया है कि कारोबारी सौदे में सरकार की कोई भूमिका नहीं है.

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि ओलांद इस सौदे पर विरोधाभासी बयान दे रहे हैं.  वित्त मंत्री ने कहा, ‘उन्होंने (ओलांद) ने बाद में अपने वक्तव्य में कहा कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है कि भारत सरकार ने रिलायंस डिफेंस के लिए कोई सुझाव दिया. भागीदारों का चुनाव ख़ुद कंपनियों ने किया. सच्चाई दो तरह की नहीं हो सकती है.’

हालांकि, बाद में फ्रांस सरकार और डास्सो एविएशन ने पूर्व राष्ट्रपति के पहले दिए बयान को गलत ठहराया था.

जेटली ने कहा, ‘फ्रांस सरकार ने कहा है कि डास्सो एविएशन के आॅफसेट क़रार पर फैसला कंपनी ने किया है और इसमें सरकार की भूमिका नहीं है.’

जेटली ने कहा कि डास्सो ख़ुद कह रही है कि उसने आॅफसेट क़रार के संदर्भ में कई सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की कंपनियों के साथ अनेक क़रार किए हैं और यह उसका ख़ुद का फैसला है.

वहीं, कांग्रेस ने राफेल विमान की दरों सहित करार के कई पहलुओं पर सवाल उठाए हैं. उसने मोदी सरकार पर ‘साठगांठ वाले पूंजीवाद’ को बढ़ावा देने, सरकारी कोषागार को नुकसान पहुंचाने और राष्ट्रहित एवं राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता करने के आरोप लगाए हैं.

कांग्रेस ने राफेल विमान सौदे को शताब्दी का सबसे बड़ा घोटाला बताया. कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने कहा कि इस मुद्दे पर वित्त मंत्री और रक्षा मंत्री को सामने करने की बजाय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जवाब देना चाहिए.

शर्मा ने कहा, ‘मेरा आरोप है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गोपनीयता की शपथ का उल्लंघन किया है. सिर्फ वहीं अनिल अंबानी की बता सकते है कि हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) सौदे से बाहर हो गई है और वह 36 राफेल विमानों की ख़रीद में शामिल हो सकते हैं. इसके बाद वह (अंबानी) राफेल विमान बनाने वाले डास्सो एविएशन से बात करने पहुंचे थे.’

मीडिया रिपोर्ट में ओलांद के हवाले से कहा गया था, ‘भारत सरकार ने इस सेवा समूह का प्रस्ताव किया था और डास्सो ने (अनिल) अंबानी समूह के साथ बातचीत की. हमारे पास कोई विकल्प नहीं था, हमने वह वार्ताकार लिया जो हमें दिया गया.’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 अप्रैल 2015 को पेरिस में तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद से बातचीत के बाद 36 राफेल विमानों की खरीद का ऐलान किया था. करार पर अंतिम मुहर 23 सितंबर 2016 को लगी थी.

फ्रांस सरकार ने कहा है कि वह भारतीय औद्योगिक साझेदारों के चयन में किसी तरह से शामिल नहीं थी.

वहीं डास्सो एविएशन ने अपने बयान में कहा कि 36 राफेल विमानों की आपूर्ति का अनुबंध सरकार से सरकार के बीच हुआ समझौता था.

कंपनी ने कहा, ‘इसमें एक अलग अनुबंध का प्रावधान है जिसमें डास्सो एविएशन ने खरीद के कुल मूल्य की 50 फीसदी राशि भारत में मुआवजा निवेश (ऑफसेट) पर खर्च करने की प्रतिबद्धता जाहिर की थी.’

कंपनी ने यह भी कहा कि रिलायंस के साथ उसकी साझेदारी से फरवरी 2017 में डास्सो रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड (ड्राल) संयुक्त उपक्रम का गठन हुआ था और इस कंपनी ने राफेल के पुर्जे बनाने के लिए नागपुर में प्लांट बनाया.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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