सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति दी

सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 4:1 के बहुमत से फैसला दिया. कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को मंदिर में घुसने की इजाजत न देना अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है.

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सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 4:1 के बहुमत से फैसला दिया. कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को मंदिर में घुसने की इजाजत न देना अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है.

Sabrimala Temple Keral photo by facebook official page
सबरीमाला मंदिर (फोटो साभार: facebook.com/sabrimalaofficial)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपने फैसले में सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को जाने की इजाजत दे दी. कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को मंदिर में घुसने की इजाजत ना देना संविधान के अनुच्छेद 25 (धर्म की स्वतंत्रता) का उल्लंघन है. लिंग के आधार पर भक्ति (पूजा-पाठ) में भेदभाव नहीं किया जा सकता है.

न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 4:1 के बहुमत से फैसला दिया. जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ मुख्य न्यायाधीश के फैसले से इत्तेफाक रखते हैं, जबकि जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने उनसे अलग अपना फैसला लिखा है.

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने फैसला पढ़ते हुए कहा, ‘महिलाएं पुरुषों के मुकाबले कम नहीं होती हैं. धर्म के पितृसत्ता को आस्था के ऊपर हावी होने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. जैविक या शारीरिक कारणों को आस्था के लिए स्वतंत्रता में स्वीकार नहीं किया जा सकता है. धर्म मूल रूप से जीवन का मार्ग है हालांकि कुछ प्रथाएं विसंगतियां बनाती हैं.’

मुख्य न्यायाधीश के फैसले में यह भी कहा गया कि अयप्पा भक्त एक अलग धार्मिक संप्रदाय नहीं बनाएंगे. कोर्ट ने केरल सार्वजनिक पूजा (प्रवेश का प्राधिकरण) 1965 के नियम 3 (बी), जो सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश को प्रतिबंधित करता है, को असंवैधानिक माना और इस प्रावधान को खत्म कर दिया.

वहीं जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपनी अलग लेकिन सहमतिजनक राय में कहा कि प्रतिबंध के पीछे विचार यह था कि महिलाओं की उपस्थिति ब्रह्मचर्य को परेशान करेगी. इस तरह पुरुषों की ब्रह्मचर्य का बोझ महिलाओं पर डाला जा रहा था. यह महिलाओं के प्रति रूढ़िवादी प्रवृति का प्रतीक है.

संविधान पीठ में एक मात्र महिला जज जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने कहा कि देश में पंथनिरपेक्ष माहौल बनाए रखने के लिए गहराई तक धार्मिक आस्थाओं से जुड़े विषयों के साथ छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए.

जस्टिस मल्होत्रा का मानना था कि सती जैसी सामाजिक कुरीतियों से इतर यह तय करना अदालत का काम नहीं है कि कौन सी धार्मिक परंपराएं खत्म की जाएं. जस्टिस मल्होत्रा ने कहा कि समानता के अधिकार का भगवान अय्यप्पा के श्रद्धालुओं के पूजा करने के अधिकार के साथ टकराव हो रहा है.

उन्होंने कहा कि इस मामले में मुद्दा सिर्फ सबरीमला तक सीमित नहीं है. इसका अन्य धर्म स्थलों पर भी दूरगामी प्रभाव होगा.

पांच सदस्यीय पीठ ने चार अलग-अलग फैसले लिखे. पीठ ने केरल के सबरीमला स्थित भगवान अय्यप्पा मंदिर में रजस्वला आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर ये फैसले सुनाए.

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि 10-50 आयु वर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश से प्रतिबंधित करने की परिपाटी को आवश्यक धार्मिक परंपरा नहीं माना जा सकता और केरल का कानून महिलाओं को शारीरिक/जैविक प्रक्रिया के आधार पर महिलाओं को अधिकारों से वंचित करता है.

जस्टिस नरीमन ने कहा कि 10-50 वर्ष आयु वर्ग की महिलाओं को प्रतिबंधित करने की सबरीमला मंदिर की परिपाटी का संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 समर्थन नहीं करते हैं.

अपने फैसले में जस्टिस नरीमन ने कहा कि महिलाओं को प्रवेश से रोकना अनुच्छेद 25(प्रावधान 1) का उल्लंघन है और वह केरल हिन्दू सार्वजनिक धर्मस्थल (प्रवेश अनुमति) नियम के प्रावधान 3(बी) को निरस्त करते हैं.

जस्टिस चन्द्रचूड़ ने कहा कि महिलाओं को पूजा करने के अधिकार से वंचित करने धर्म को ढाल की तरह इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है और यह मानवीय गरिमा के विरूद्ध है. उन्होंने कहा कि गैर-धार्मिक कारणों से महिलाओं को प्रतिबंधित किया गया है और यह सदियों से जारी भेदभाव का साया है.

जस्टिस मिश्रा, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदू मल्होत्रा की पीठ ने पहले कहा था कि (महिलाओं को प्रवेश से) अलग रखने पर रोक लगाने वाले संवैधानिक प्रावधान का ‘उज्ज्वल लोकतंत्र’ में ‘कुछ मूल्य’ है.

शीर्ष अदालत का फैसला इंडियन यंग लायर्स एसोसिएशन और अन्य की याचिकाओं पर आया है. माहवारी की उम्र वाली महिलाओं के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश पर रोक के इस विवादास्पद मामले पर अपना रुख बदलती रही केरल सरकार ने 18 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि वह उनके प्रवेश के पक्ष में है.

सबरीमाला मंदिर प्रबंधन ने उच्चतम न्यायालय को बताया था कि 10 से 50 वर्ष की आयु तक की महिलाओं के प्रवेश पर इसलिए प्रतिबंध लगाया गया है क्योंकि मासिक धर्म के समय वे शुद्धता बनाए नहीं रख सकतीं.

बता दें कि इस प्राचीन मंदिर में 10 साल से लेकर 50 साल तक की उम्र की महिलाओं का प्रवेश वर्जित है. ऐसा माना जाता है कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी हैं और चूंकि इस उम्र की महिलाओं को मासिक धर्म होता है, जिससे मंदिर की पवित्रता बनी नहीं रह सकेगी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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