संघ की शाखाएं बच्चों ख़ास तौर पर लड़कियों के संरक्षण के लिए ढाल का काम कर सकती हैं: सत्यार्थी

संघ की ओर से नागपुर में हर साल होने वाले दशहरा कार्यक्रम में शामिल हुए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी. कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने समाज की परंपरा पर विचार नहीं किया.

//
दशहरा के अवसर पर नागपुर में संघ मुख्यालय पर गुरुवार को हुए सालाना कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी. (फोटो साभार: फेसबुक/@RSSOrg)

संघ की ओर से नागपुर में हर साल होने वाले दशहरा कार्यक्रम में शामिल हुए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी. कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने समाज की परंपरा पर विचार नहीं किया.

दशहरा के अवसर पर नागपुर में संघ मुख्यालय पर गुरुवार को हुए सालाना कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी. (फोटो साभार: फेसबुक/@RSSOrg)
दशहरा के अवसर पर नागपुर में संघ मुख्यालय पर गुरुवार को हुए सालाना कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी. (फोटो साभार: फेसबुक/@RSSOrg)

नागपुर: नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी ने गुरुवार को कहा कि देश के लगभग हर गांव में मौजूद आरएसएस की शाखाएं बच्चों, ख़ास तौर पर लड़कियों की हिफ़ाज़त के लिए सुरक्षा ढाल के रूप में काम कर सकती हैं.

सत्यार्थी ने कहा कि आज महिलाएं घर, कार्यस्थल, मुहल्ला और सार्वजनिक स्थानों पर डर और दहशत में हैं. यह भारत माता के प्रति गंभीर असम्मान है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नागपुर स्थित मुख्यालय में सालाना विजयदशमी समारोहों में मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किए गए सत्यार्थी ने कहा, ‘आरएसएस के युवा हमारी मातृभूमि के वर्तमान और भविष्य को बचाने के लिए इस पथ की कमान संभाल सकते हैं.’

सत्यार्थी ने कहा कि भारत में भले ही सैकड़ों समस्याएं हों, लेकिन यह एक अरब से अधिक समाधानों की जननी भी है. उन्होंने कहा, ‘एक महान और बाल हितैषी राष्ट्र बनाने के लिए ईमानदार युवा नेतृत्व और भागीदारी की ज़रूरत है.’

उन्होंने कहा, ‘मैं आरएसएस के युवाओं से हमारी मातृभूमि के वर्तमान और भविष्य को बचाने के लिए इस पथ पर नेतृत्व संभालने का अनुरोध करता हूं.’

64 वर्षीय सत्यार्थी ने कहा कि देश के लगभग सभी गांवों में मौजूद संघ की शाखाएं इस पीढ़ी के बच्चों के संरक्षण के लिए यदि सुरक्षा ढाल के रूप में काम करें, तो आने वाली सभी पीढ़ियां ख़ुद की हिफ़ाज़त करने में ख़ुद ही सक्षम होंगी.

उन्होंने अफसोस जताया कि जिन लोगों को बालिका गृह चलाने की ज़िम्मेदारी दी गई है, वे उनका बलात्कार और हत्या कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि बाल कल्याण के संरक्षक ही बच्चों को बेच रहे हैं. लड़कियां छेड़छाड़ के डर से स्कूल जाना बंद कर रही हैं और हम अपनी आंखों के सामने यह सब होते चुपचाप देख रहे हैं.

सत्यार्थी ने कहा कि करुणा के बिना किसी सम्मानीय समाज का निर्माण नहीं किया जा सकता. करुणारहित राजनीति, अर्थव्यवस्था और समाज आत्मा के बगैर शरीर जैसा है.

उन्होंने किसी राष्ट्र के विकास के लिए प्रति व्यक्ति आय या जीडीपी जैसे संकेतकों की बजाय विभिन्न मानदंडों का इस्तेमाल करने की भी अपील की.

उन्होंने कहा कि वह समाज के विकास को किसी के चेहरे पर मुस्कुराहट से मापते हैं, जो हम दूरदराज़ स्थित किसी गांव के एक खेत में या पत्थर की खान में गुलामी कराई जा रही आदिवासी बेटी के चेहरे पर ला सकते हैं.

सत्यार्थी ने दुनिया भर में अश्लील फिल्म उद्योग के फलने-फूलने पर भी चिंता जताई. उन्होंने कहा, ‘पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र महासभा में, मैं कई देशों के शासनाध्यक्षों से मिला था और ऑनलाइन चाइल्ड पोर्नोग्राफी के ख़िलाफ़ एक अंतरराष्ट्रीय संधि पर काम शुरू किया जा चुका है.’

मालूम हो कि इसी कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है, ‘10 से 50 साल तक की लड़कियों एवं महिलाओं के सबरीमला मंदिर में प्रवेश पर मनाही की परंपरा बहुत लंबे समय से थी. उच्चतम न्यायालय में याचिकाएं दाख़िल करने वाले वे लोग नहीं हैं जो मंदिर जाते हैं. महिलाओं का एक बड़ा तबका इस प्रथा का पालन करता है. उनकी भावनाओं पर विचार नहीं किया गया.’

उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत ने समाज द्वारा स्वीकृत परंपरा की प्रकृति पर विचार नहीं किया और इसने समाज में विभाजन को जन्म दिया. उन्होंने कहा कि लोगों के दिमाग में यह सवाल पैदा होता है कि सिर्फ हिंदू समाज को ही अपनी आस्था के प्रतीकों पर बार-बार हमलों का सामना क्यों करना पड़ता है.

उन्होंने कहा कि सभी पहलुओं पर विचार किए बगैर सुनाए गए फैसले और धैर्यपूर्वक समाज की मानसिकता सृजित करने को न तो वास्तविक व्यवहार में कभी अपनाया जाएगा और न ही बदलते वक़्त में इससे नई सामाजिक व्यवस्था बनाने में मदद मिलेगी.

भागवत ने कहा, ‘सबरीमला मंदिर पर हालिया फैसले से पैदा हुए हालात ऐसी ही स्थिति दर्शाते हैं. समाज द्वारा स्वीकृत और वर्षों से पालन की जा रही परंपरा की प्रकृति एवं आधार पर विचार नहीं किया गया. इस परंपरा का पालन करने वाली महिलाओं के एक बड़े तबके की दलीलें भी नहीं सुनी गई.’

आरएसएस प्रमुख ने कहा कि इस फैसले ने शांति, स्थिरता एवं समानता के बजाय समाज में अशांति, संकट और विभाजन को जन्म दिया है.

मालूम हो कि बीते 28 सितंबर को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने केरल स्थित सबरीमला मंदिर में रजस्वला आयु वर्ग (10-50 वर्ष) की महिलाओं के प्रवेश पर लगी सदियों पुरानी पाबंदी निरस्त कर दी थी और उन्हें मंदिर में जाने की इज़ाज़त दे दी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq