भीमा कोरेगांव मामला: वर्णन गोंसाल्विस और अरुण फरेरा गिरफ़्तार

पुणे की स्थानीय अदालत द्वारा इन सामाजिक कार्यकर्ताओं की ज़मानत याचिका और बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा नज़रबंदी की अवधि बढ़वाने की याचिका ख़ारिज होने के बाद पुणे पुलिस ने इन दो कार्यकर्ताओं को ठाणे और मुंबई से गिरफ़्तार किया है.

पुणे की स्थानीय अदालत द्वारा इन सामाजिक कार्यकर्ताओं की ज़मानत याचिका और बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा नज़रबंदी की अवधि बढ़वाने की याचिका ख़ारिज होने के बाद पुणे पुलिस ने इन दो कार्यकर्ताओं को ठाणे और मुंबई से गिरफ़्तार किया है.

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माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर नज़रबंद किए गए कवि वरावरा राव, सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अरुण फरेरा, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वर्णन गोंसाल्विस. (बाएं से दाएं)

पुणे: पुणे की एक अदालत ने शुक्रवार को सुधा भारद्वाज, वर्णन गोंसाल्विस और अरुण फरेरा की जमानत याचिका खारिज कर दी, जिसके बाद देर शाम वर्णन गोंसाल्विस और अरुण फरेरा को गिरफ्तार कर लिया गया है.

इन पर पुणे पुलिस ने माओवादियों से कथित संबध का आरोप लगाया था. पुणे सिटी पुलिस द्वारा कवि पी वरवरा राव और गौतम नवलखा के साथ 28 अगस्त को इन तीनों को 31 दिसंबर को हुए एल्गार परिषद सम्मेलन से कथित संबंध के आरोप में गिरफ्तार किया था.

ऐसा भी कहा गया था कि सम्मेलन के बाद ही कथित तौर पर भीमा-कोरेगांव हिंसा भड़की थी.

पुलिस ने आरोप लगाया है कि इस सम्मेलन के कुछ समर्थकों के माओवादी से संबंध हैं. जिला और सत्र न्यायाधीश (विशेष न्यायाधीश) केडी वडाणे ने भारद्वाज, गोंसाल्विस और फरेरा की जमानत याचिका खारिज कर दी.

शुक्रवार को फरेरा और गोंसाल्विस की नजरबंदी की अवधि ख़त्म हो रही थी, इसलिए उनके वकील इस अवधि को अगले 7 दिन बढ़वाने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट पहुंचे थे, लेकिन हाईकोर्ट द्वारा यह याचिका ख़ारिज कर दी, इसके बाद शाम को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.

इससे पहले पुणे की स्थानीय अदालत में अभियोजन पक्ष ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा कि आरोपियों के खिलाफ ‘प्रमाणित करने वाल साक्ष्य’ उनकी माओवादी गतिविधियों में संलिप्तता की पुष्टि करते हैं, जैसे काडर को संगठित करना, प्रतिष्ठित संस्थानों से छात्रों की भर्ती करना और उन्हें ‘पेशेवर क्रांतिकारी’ बनने, धन जुटाने और हथियार खरीदने के लिए सुदूर इलाकों में भेजना.

वहीं, बॉम्बे हाईकोर्ट ने भीमा कोरेगांव मामले में एफआईआर रद्द करने के मामले की सुनवाई 1 नवंबर तक स्थगित कर दी है. तब तक गौतम नवलखा को गिरफ़्तारी से अंतरिम राहत दी गयी है.

महाराष्ट्र पुलिस ने पिछले साल 31 दिसंबर को हुए एलगार परिषद के सम्मेलन के बाद दर्ज की गई एक प्राथमिकी के सिलसिले में 28 अगस्त को इन कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था. इस सम्मेलन के बाद राज्य के भीमा-कोरेगांव में हिंसा भड़की थी.

महाराष्ट्र की पुणे पुलिस ने माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर पांच कार्यकर्ताओं- कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंसाल्विस को गिरफ़्तार किया था.

इस पर इतिहासकार रोमिला थापर, अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक और देवकी जैन, समाजशास्त्र के प्रो. सतीश पांडे और मानवाधिकार कार्यकर्ता माजा दारूवाला ने शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर इन मानवाधिकार एवं नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं की तत्काल रिहाई तथा उनकी गिरफ्तारी की स्वतंत्र जांच कराने का अनुरोध किया था.

इसके बाद 28 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने सामाजिक कार्यकर्ताओं की हुई गिरफ्तारी को लेकर विशेष जांच दल (एसआईटी) की मांग को खारिज कर दिया था और कहा कि इस मामले में लोगों की गिरफ्तारी उनकी प्रतिरोध की वजह से नहीं हुई है. जो भी आरोपी हैं वो कानून में मौजूद प्रावधानों के तहत राहत पा सकते हैं.

तब अदालत ने कार्यकर्ताओं को नजरबंद रखने की अवधि को चार हफ्ते के लिए बढ़ा दिया था, जो शुक्रवार को ख़त्म हो गयी.

इससे पहले महाराष्ट्र पुलिस ने पिछले साल पुणे में आयोजित एलगार परिषद की ओर से आयोजित कार्यक्रम से माओवादियों के कथित संबंधों की जांच करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता सुधीर धावले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन और महेश राउत को जून में गिरफ्तार किया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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