भारत में जन्मीं पाकिस्तानी कवियित्री और लेखक फ़हमीदा रियाज़ का निधन

पूर्व सैन्य तानाशाह जनरल ज़िया-उल-हक़ के शासनकाल के दौरान नारीवादी संघर्ष की एक प्रमुख आवाज रहीं फ़हमीदा ने पाकिस्तान छोड़ दिया था और सात साल तक भारत में रही थीं.

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फ़हमीदा रियाज़. (फोटो साभार: फेसबुक/@NanbendaGroup)

पूर्व सैन्य तानाशाह जनरल ज़िया-उल-हक़ के शासनकाल के दौरान नारीवादी संघर्ष की एक प्रमुख आवाज रहीं फ़हमीदा ने पाकिस्तान छोड़ दिया था और सात साल तक भारत में रही थीं.

फ़हमीदा रियाज़. (फोटो साभार: फेसबुक/@NanbendaGroup)
फ़हमीदा रियाज़. (फोटो साभार: फेसबुक/@NanbendaGroup)

लाहौर: भारत में जन्मीं प्रख्यात पाकिस्तानी कवियित्री और मानवाधिकार कार्यकर्ता फ़हमीदा रियाज़ का लंबी बीमारी के बाद 73 साल की उम्र में पाकिस्तान के लाहौर शहर में निधन हो गया.

पूर्व सैन्य तानाशाह जनरल जिया-उल-हक़ के शासनकाल के दौरान फ़हमीदा ने पाकिस्तान छोड़ दिया था और सात साल तक भारत में आत्म निर्वासन में रही थीं. वह पिछले कुछ महीने से बीमार थीं.

द न्यूज इंटरनेशनल ने खबर दी है कि उत्तर प्रदेश के मेरठ में 28 जुलाई 1945 को जन्मीं और अपने पिता के सिंध प्रांत में तबादले के बाद हैदराबाद में जा बसीं फ़हमीदा ने हमेशा पाकिस्तान में महिला अधिकारों और लोकतंत्र के लिए अपनी आवाज़ बुलंद की.

द न्यूज़ इंटरनेशन की रिपोर्ट के मुताबिक जब उनके पिता की मौत हुई तब वह चार साल की थीं. उनकी परवरिश उनकी मां न की. उन्होंने बचपन में उर्दू और सिंधी साहित्य के बारे में पढ़ाई की. इसके बाद उन्होंने फारसी भाषा सीखी. पढ़ाई पूरी करने के बाद वह रेडियो पाकिस्तान में समाचार वाचक के तौर पर काम करने लगी थीं.

ख़बर में बताया गया है कि फ़हमीदा एक जानी-मानी प्रगतिशील उर्दू लेखिका, कवियित्री, मानवाधिकार कार्यकर्ता और नारीवादी थीं जिन्होंने बीबीसी उर्दू सर्विस (रेडियो) के लिए भी काम किया.

उदार और राजनीतिक सामग्री के कारण फ़हमीदा की उर्दू पत्रिका आवाज़ की ओर जिया का ध्यान गया. इसके बाद फ़हमीदा और उनके दूसरे पति पर अलग-अलग मामलों में आरोप लगाए गए और पत्रिका को बंद कर दिया गया.

पाकिस्तान की डॉन वेबसाइट के मुताबिक उन्होंने फिक्शन और कविताओं पर आधारित 15 से ज़्यादा किताबें लिखी. उनकी पहली किताब ‘पत्थर की ज़ुबान’ 1967 में प्रकाशित हुई. उनके लिखे कविताओं के संग्रह में प्रमुख किताबें ‘धूप’, ‘पूरा चांद’, ‘आदमी की ज़िंदगी’ आदि शामिल हैं. उन्होंने ‘ज़िंदा बहार’, ‘गोदावरी’ और ‘कराची’ नाम के उपन्यास लिखे.

फ़हमीदा अपनी क्रांतिकारी और प्रतिरोध की कविताओं की वजह से जानी जाती थीं. 1973 में जब उनकी कविताओं का दूसरा संग्रह ‘बदन दरीबा’ प्रकाशित हुआ तो उन पर अपनी कविताओं में कामोत्तेजक शब्दों का इस्तेमाल करने का आरोप लगा था.

पति की गिरफ्तारी के बाद, वह अपने दो बच्चों और बहन के साथ भारत गईं जहां उन्हें शरण मिल गई. उनके बच्चों ने भारत में स्कूल की शिक्षा हासिल की. जेल से रिहाई के बाद उनके पति उनके पास भारत चले गए.

द न्यूज़ इंटरनेशनल की ख़बर में बताया गया है कि जिया की मौत के बाद पाकिस्तान लौटने से पहले फ़हमीदा का परिवार करीब सात साल तक भारत में निर्वासन में रहा.

वह पाकिस्तान में नारीवादी संघर्ष की एक प्रमुख आवाज थीं.

1988-90 में पीपीपी की पहली सरकार के दौरान उन्हें तत्कालीन नेशनल बुक काउंसिल आॅफ पाकिस्तान का प्रबंध निदेशक बनाया गया है. प्रधानमंत्री के रूप में बेनज़ीर भुट्टो के दूसरे कार्यकाल में वह संस्कृति मंत्रालय से जुड़ी हुई थीं.

साल 2009 में उन्हें कराची स्थित उर्दू डिक्शनरी बोर्ड को मुख्य संपादक नियुक्त किया गया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)