गुजरात सरकार से नाराज़ ऊना के दलित पीड़ित परिवार, राष्ट्रपति से मांगी इच्छा मृत्यु की अनुमति

गुजरात में ऊना के पीड़ित दलित परिवार की तरफ से वाश्रम सरवैया ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर कहा है कि गुजरात सरकार द्वारा किया गया एक भी वादा पूरा नहीं हुआ है.

(फोटो साभार: ट्विटर/विजय परमार)

गुजरात में ऊना के पीड़ित दलित परिवार की तरफ से वाश्रम सरवैया ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर कहा है कि गुजरात सरकार द्वारा किया गया एक भी वादा पूरा नहीं हुआ है.

(फोटो साभार: ट्विटर/विजय परमार)
(फोटो साभार: ट्विटर/विजय परमार)

गांधीनगर: साल 2016 में गुजरात के ऊना में हुए दलित अत्याचार मामले में पीड़ित परिवार ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिख कर इच्छा मृत्यु की मांग की है. परिवार की तरफ से वाश्रम सरवैया ने पत्र में कहा है कि गुजरात सरकार द्वारा उनके परिवार से किया गया वादा पूरा नहीं हुआ है. पत्र में यह भी कहा गया है कि सात दिसंबर से परिवार का एक सदस्य दिल्ली में आमरण अनशन पर बैठेगा.

इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के अनुसार, पत्र लिखने वाले वाश्रम का कहना है कि 11 जुलाई 2016 में हुए इस घटना के बाद उस समय की तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने जो वादा किया था उसे पूरा नहीं किया है. पत्र में वे कहते हैं, ‘आनंदीबेन ने वादा किया था कि हर पीड़ित को पांच एकड़ ज़मीन के अलावा योग्यता के अनुसार सरकारी नौकरी मिलेगी. इसके अलावा उनके गांव ‘मोटा समाधिला’ को विकसित गांव बनाया जाएगा, लेकिन इनमें से एक भी वादा पूरा नहीं हुआ है.’

11 जुलाई, 2016 को गिर सोमनाथ जिले के ऊना तालुका स्थित मोटा समाधिला गांव में गौ रक्षकों ने कथित रूप से गाय ले जाने के कारण दलितों पर हमला किया था. वाश्रम के अलावा उनके छोटे भाई रमेश और उनके पिता बलू और मां कुंवर के अलावा आठ दलितों को सड़क पर खुलेआम पिटाई की गई थी.

गौरक्षकों ने दावा किया था कि दलित गाय की हत्या कर रहे थे, लेकिन पुलिस जांच में पता चला है कि पीड़ित परिवार के लोग महज मृत गायों की खाल उतार रहे थे.

दलितों की पिटाई का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद पूरे प्रदेश में दलितों का आंदोलन हुआ और उनमें कई लोगों ने आत्महत्या करने का भी प्रयास किया और कुछ की मौत भी हो गई थी.

वाश्रम ने कहा कि हमले के बाद खाल उतारने के उनके पारंपरिक काम को छोड़ दिया है. वो कहते हैं, ‘हमने पशुओं के खाल उतारने का व्यवसाय को छोड़ दिया है और इसलिए आजीविका चलना मुश्किल हो गया है. यह संभव है कि हम भविष्य में भूख से मर जाएंगे. हमने अपने मामले को बार-बार लिखित रूप में और मौखिक रूप से दर्शाया है, लेकिन गुजरात सरकार ने हमारी किसी भी समस्या पर कोई ध्यान नहीं दिया है.’

वाश्रम ने पत्र में लिखा है कि विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने कई दलितों पर हिंसा का मुकदमा दर्ज कर दिया है, लेकिन अभी तक उसे वापस भी नहीं लिया गया है.

वो कहते हैं, ‘आंदोलन के दौरान पुलिस ने दलितों के खिलाफ पूरी तरह से झूठे मामले दायर किए थे. जब भी हम अपने समुदाय के कुछ सामाजिक समारोह में भाग लेने के लिए जाते हैं, तो हमें यह दर्द और परेशानी महसूस होती है कि हमारे समुदाय के सदस्यों के खिलाफ दायर किए गए मामलों को वापस नहीं लिया गया है.’

पत्र में उन्होंने आगे कहा है कि उनके परिवार को राज्य सरकार की तरफ से किसी भी तरह का कोई सुरक्षा प्रदान नहीं किया गया है.

वाश्रम कहते हैं, ‘वेरावल की एक अदालत में हमारे मामले की सुनवाई की जा रहा है. राज्य गृह विभाग को हमारी याचिका के बावजूद, न तो हमें और न ही गवाहों को पुलिस सुरक्षा दी गई है. न ही पुलिस अदालत में गवाहों को लाने के लिए किसी भी वाहन की व्यवस्था कर रही है. दूसरी ओर आरोपी को जमानत मिल रही है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘वे अपनी जमानत की शर्तों का उल्लंघन कर रहे हैं और अन्य अपराधों में शामिल हो रहे हैं. इन सबके बावजूद, राज्य सरकार ने ऐसे लोगों की ज़मानत रद्द करने के लिए कुछ भी नहीं किया है. इसलिए, राज्य सरकार हमारी मांगों को पूरा करने में विफल रही है. अब हम दुखी हो गए हैं. हम लंबे समय तक नहीं जीना चाहते हैं और इसलिए इच्छा मृत्यु के लिए अनुमति मांग रहे हैं.’

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