बलात्कार, यौन उत्पीड़न के पीड़ितों के नाम और पहचान का खुलासा न किया जाए: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक ​मीडिया को निर्देश दिया कि मृत और मानसिक रूप से अस्वस्थ पीड़ितों की पहचान किसी भी तरह से उजागर नहीं की जा सकती है, चाहे इसमें माता-पिता की सहमति ही क्यों न हों. कोर्ट ने समाचार चैनलों से ऐसे मुद्दे को टीआरपी के लिए सनसनी बनाने से बचने को कहा.

/
​​(फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट ने प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को निर्देश दिया कि मृत और मानसिक रूप से अस्वस्थ पीड़ितों की पहचान किसी भी तरह से उजागर नहीं की जा सकती है, चाहे इसमें माता-पिता की सहमति ही क्यों न हों. कोर्ट ने समाचार चैनलों से ऐसे मुद्दे को टीआरपी के लिए सनसनी बनाने से बचने को कहा.

(फोटो: पीटीआई)
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को निर्देश दिया कि बलात्कार तथा यौन उत्पीड़न के पीड़ितों के नाम तथा उनकी पहचान का खुलासा नहीं किया जाना चाहिए.

जस्टिस मदन बी. लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने प्रिंट तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को निर्देश दिया कि बलात्कार और यौन उत्पीड़न पीड़ितों की पहचान को ‘किसी भी रूप’ में उजागर नहीं किया जाए.

शीर्ष अदालत ने कहा कि पुलिस बलात्कार और यौन उत्पीड़न के मामले, ऐसे मामले भी जिनमें आरोपी नाबालिग हों, उनकी प्राथमिकी सार्वजनिक नहीं करेगी.

शीर्ष अदालत ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि समाज में बलात्कार पीड़िताओं के साथ अछूतों जैसा व्यवहार होता है.

एनडीटीवी की ख़बर के अनुसार, ‘कोर्ट ने मीडिया व अन्य संस्थाओं को किसी भी मामले में पीड़ित के मृत्यु के बाद भी उनके नाम व पहचान उजागर नहीं करने का निर्देश किया. साथ ही पीड़ितों की गरिमा बनाए रखने के लिए दिशानिर्देश भी जारी किए.’

इसके साथ ही कोर्ट ने इन पीड़ितों के नाम को सार्वजनिक तौर पर रैलियों में और सोशल मीडिया पर उपयोग न करने का भी निर्देश दिया है.

जस्टिस मदन बी. लोकुर, जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर और जस्टिस दीपक गुप्ता की एक पीठ ने वकील निपुन सक्सेना द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई करते हुए कहा, ‘पुलिस या फोरेंसिक अधिकारी बलात्कार पीड़ितों के नामों का खुलासा नहीं कर सकते हैं चाहे इस पर उनके माता-पिता की सहमति  ही क्यों न हो.’

शीर्ष अदालत ने विशेष रूप से यौन उत्पीड़न पीड़ितों के नाम लेकर निकाली गयीं विरोध रैलियों के बारे में चिंता जताई है. खंडपीठ ने कहा, ‘इन रैलियों में पीड़ितों को प्रतीक के तौर पर प्रयोग करने से हम ख़ुश नहीं हैं. मृत पीड़ितों या मानसिक रूप से अस्वस्थ पीड़ितों की भी पहचान किसी भी तरह से उजागर नहीं की जा सकती है चाहे माता-पिता की सहमति ही क्यों न हों. इस तरह की कार्रवाई को अदालत की अनुमति की आवश्यकता होगी.’

मालूम हो कि इस साल की शुरुआत में कठुआ में आठ वर्षीय बच्ची की साथ हुई बलात्कार और हत्या की घटना के बाद बहुत बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन हुए थे. इसके बाद बहुत से मानवधिकार संगठनों ने पीड़ित की पहचान को उजागर करने पर चिंता जताई थी.

पीठ ने दिशानिर्देशों में इस बात पर भी ज़ोर दिया कि पीड़िता का साक्षात्कार भी नहीं किया जाना चाहिए जब तक वो ख़ुद किसी न्यूज़ संस्थान तक न पहुंचने का प्रयास करे. कोर्ट ने इस तरह के मुद्दे पर टीआरपी के लिए सनसनी बनाने से बचने को कहा.

इसके अलावा कोर्ट ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पुनर्वास के लिए हर ज़िले में ‘वन-स्टॉप सेंटर’ की स्थापना सहित अन्य उपायों को अपनाने के लिए निर्देश दिया. साथ ही कोर्ट ने फोरेंसिक प्रयोगशाला अधिकारियों से भी मुहरबंद कवर में अदालत में अपनी रिपोर्ट जमा करके पीड़ितों की पहचान की सुरक्षा करने के लिए कहा है.

साल 2012 के दिल्ली गैंगरेप मामले के चलते सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उचित कदम उठाने को वकील निपुन सक्सेना ने अदालत का रुख किया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq