नस्लभेदी होने का आरोप लगाकर घाना विश्वविद्यालय में लगी महात्मा गांधी की प्रतिमा हटाई गई

अफ्रीकी देश घाना की राजधानी अक्रा स्थित विश्वविद्यालय में दो साल पहले महात्मा गांधी की प्रतिमा लगाई गई थी, जिसके बाद प्रतिमा हटाने को लेकर प्रदर्शन शुरू हो गए थे.

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घाना विश्वविद्यालय में लगी महात्मा गांधी की प्रतिमा. (फोटो साभार: फेसबुक/ Sajith Sukumaran)

अफ्रीकी देश घाना की राजधानी अक्रा स्थित विश्वविद्यालय में दो साल पहले महात्मा गांधी की प्रतिमा लगाई गई थी, जिसके बाद प्रतिमा हटाने को लेकर प्रदर्शन शुरू हो गए थे.

घाना विश्वविद्यालय में लगी महात्मा गांधी की प्रतिमा. (फोटो साभार: फेसबुक/ Sajith Sukumaran)
घाना विश्वविद्यालय में लगी महात्मा गांधी की प्रतिमा. (फोटो साभार: फेसबुक/Sajith Sukumaran)

अफ्रीकी देश घाना की राजधानी अक्रा के घाना विश्वविद्यालय में लगी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा छात्र-छात्राओं और फैकल्टी के विरोध के बाद हटा दी गई है.

पिछले दो साल से गांधी की प्रतिमा हटाने की मांग को लेकर विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राएं और प्रोफेसर प्रदर्शन लगातार कर रहे थे. प्रदर्शनकारियों का आरोप था कि गांधी नस्लभेदी थे और कैंपस में उनके लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए.

द गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार, बीते 11 दिसंबर की रात को गांधी जी की प्रतिमा कैंपस से हटा दी गई.

रिपोर्ट के अनुसार, बीते दो सालों में कुछ विद्वानों ने यह बताया था कि महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका के देशी समुदायों के प्रति अपमानजनक विचार रखते थे.

रिपोर्ट के अनुसार, साल 2015 में दक्षिण अफ्रीका के दो लेखकों ने अपनी एक किताब में यह ज़िक्र किया था कि गांधी ने इस बात की शिकायत की थी कि अफ्रीकियों की तरह भारतीयों को भी अलग रास्ते से जाने के लिए मजबूर किया जा रहा है, मतलब उनकी (भारतीयों) सभ्य आदतें, आदिवासी मूल निवासियों की आदतों जैसी कमतर हो जाएंगी.

घाना विश्वविद्यालय में लगी महात्मा गांधी की प्रतिमा को हटाते लोग. (फोटो साभार : फेसबुक/Sikh24 Live News)
घाना विश्वविद्यालय में लगी महात्मा गांधी की प्रतिमा को हटाते लोग. (फोटो साभार: फेसबुक/Sikh24 Live News)

1904 में गांधी ने अपने एक पत्र में भारतीयों के साथ अफ्रीकी लोगों के साथ मेलजोल पर आपत्ति जताई थी.

बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, अपने शुरुआती लेखों में गांधी ने अश्वेत दक्षिण अफ्रीकियों को ‘काफ़िर’ कहकर संबोधित किया था जो कि एक बेहद अपमानजनक नस्लभेदी टिप्पणी है. उन्होंने यह भी कहा था कि अश्वेत लोगों की तुलना में भारतीय बहुत ज़्यादा श्रेष्ठ हैं.

बता दें कि गांधी जी की यह प्रतिमा भारत सरकार की ओर से दी गई थी जिसका अनावरण 14 जून 2016 में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने किया था.

कैंपस आधारित आॅनलाइन पत्रिका रेडियो यूनिवर्स की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2016 के सितंबर में विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और छात्र छात्राओं के एक समूह ने #गांधीमस्टफॉल (#GandhiMustFall) नाम से अपना विरोध शुरू किया था.

इन विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व द इंस्टिट्यूट आॅफ अफ्रीकन स्टडीज़ (आईएएस) की पूर्व निदेशक प्रो. अकोसुआ अदोमाको अम्पोफो ने किया था. उनके अनुसार, जिन्हें दुनिया अहिंसावादी विचारों के लिए जानती है उनकी प्रतिमा विश्वविद्यालय में लगाए जाने लायक नहीं है क्योंकि वह नस्लभेदी थे.

बहरहाल विश्वविद्यालय के छात्र छात्राओं ने इस क़दम का स्वागत किया है. समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में बेंजामिन मेनसाह ने कहा, ‘घाना के निवासियों के लिए यह बड़ी जीत है. यह प्रतिमा हमें लगातार इस बात की याद दिला रही थी कि हम कितने निम्न स्तर के लोग हैं.’

द गार्जियन से बातचीत में द इंस्टिट्यूट आॅफ अफ्रीकन स्टडीज़ में भाषा, साहित्य और ड्रामा विभाग के प्रमुख ओबाडेले कम्बोन ने कहा कि प्रतिमा को हटाए जाने का मामला आत्मसम्मान से जुड़ा हुआ था.

उन्होंने कहा, ‘अगर हम अपने नायकों के प्रति आदर भाव नहीं रखेंगे तो फिर विश्व कैसे हमारा आदर कर सकता है. यह अश्वेत गौरव और आत्म सम्मान की जीत है.’