बाबा रामदेव को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने मुनाफ़े का एक हिस्सा किसानों में बांटने का आदेश दिया

बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि दिव्य फार्मेसी द्वारा मुनाफ़ा न देने को लेकर दायर याचिका को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने ख़ारिज ​कर दिया.

New Delhi: Baba Ramdev during Bharatatma Ashokji Singhal Vedik Puraskar 2018 award function, in New Delhi, Tuesday, Sept. 25, 2018. (PTI Photo/Ravi Choudhary) (PTI9_25_2018_000186B)
रामदेव. (फाइल फोटो: पीटीआई)

बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि दिव्य फार्मेसी द्वारा मुनाफ़ा न देने को लेकर दायर याचिका को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने ख़ारिज कर दिया.

New Delhi: Baba Ramdev during Bharatatma Ashokji Singhal Vedik Puraskar 2018 award function, in New Delhi, Tuesday, Sept. 25, 2018. (PTI Photo/Ravi Choudhary) (PTI9_25_2018_000186B)
बाबा राम देव (फोटो: पीटीआई)

नैनीताल: बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि दिव्य फार्मेसी को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने यह आदेश दिया है कि कंपनी अपने मुनाफे का कुछ हिस्सा स्थानीय किसानों और अन्य समुदायों के साथ बांटे.

कोर्ट ने बाबा रामदेव की पतंजलि दिव्य फार्मेसी को 2.04 करोड़ रुपये स्थानीय समुदायों के साथ साझा करने का आदेश दिया है. अब बाबा रामदेव को वहां के स्थानीय किसानों और अन्य समुदायों को 2.04 करोड़ रुपये बांटने होंगे.

हाईकोर्ट ने दिव्य फार्मेसी द्वारा उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड के खिलाफ दायर याचिका को खारिज करते हुए कंपनी को होने वाले लाभ का कुछ अंश बांटने का बोर्ड का आदेश बरकरार रखा है, जोकि जैव विविधता अधिनियम 2002 के प्रावधानों के अनुरूप है.

इससे पहले उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड (यूबीबी) ने दिव्य फार्मेसी को जैव विविधता कानून के प्रावधानों के तहत अपने 421 करोड़ रुपये के लाभ में से 2.04 करोड़ रुपये किसानों और स्थानीय समुदायों के साथ साझा करने के निर्देश दिए थे.

दूसरी ओर पतंजलि दिव्य फार्मेसी ने यह कहते हुए इस आदेश को चुनौती दी थी कि बोर्ड के पास ऐसे निर्देश देने के न तो अधिकार हैं और न ही यह मामला उसके अधिकार क्षेत्र में आता है. इसलिए हम किसी तरह का हिस्सा देने के लिए बाध्य नहीं हैं.

जस्टिस सुधांशु धूलिया की एकल पीठ ने मामले की सुनवाई की.

अदालत ने कहा कि यह एक स्वीकार्य तथ्य है कि जैव संसाधन आयुर्वेदिक उत्पादों के उत्पादन के लिए मुख्य घटक और कच्चा माल है और जून 1992 में रियो (ब्राजील) में हुए ‘यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन आॅन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी’ पर भारत हस्ताक्षर कर चुका है.

अदालत ने कहा कि बोर्ड को अपने अधिकारों के अंदर रकम की मांग करने वाला आदेश जारी करने का अधिकार है क्योंकि जैविक संसाधन न केवल राष्ट्रीय संपत्ति है बल्कि ये उन्हें उत्पादित करने वाले समुदायों की भी संपत्ति है. इन परंपराओं को जीवित रखने और अगली पीढ़ियों में ज्ञान को पहुंचाने के लिए उच्च हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाले समुदाय ऐसे लाभ के लिए अधिकृत हैं ताकि ये जैविक संसाधन बने रहें.

जैव विविधता बोर्ड ने बायो डायवर्सिटी अधिनियम 2002 के एक प्रावधान के तहत दिव्य फार्मेसी की ब्रिकी के आधार पर लेवी फीस मांगी थी. लेकिन दिव्य फार्मेसी इसके खिलाफ उत्तराखंड हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी.

सरकार ने साल 2002 में बायो डायवर्सिटी एक्ट बनाया था. इस क़ानून के मुताबिक जंगलों और जैविक संसाधनों के इस्तेमाल से होने वाले कमाई में वहां के स्थानीय लोगों को भी हिस्सेदारी दी जाएगी.

2014 में सरकार ने इसे नोटिफाई कर दिया, जिसके मुताबिक सिर्फ जैविक संसाधन ही नहीं बल्कि परंपरागत ज्ञान के इस्तेमाल का फायदा भी लोगों को देना होगा.

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, अगर कंपनी का सालाना टर्नओवर तीन करोड़ रुपये से ज़्यादा है, तो टर्नओवर से टैक्स हटाकर जितनी रकम हो उसका 0.5 फीसदी वहां के लोगों को देना होगा.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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