नागेश्वर राव को सीबीआई की कमान सौंपने के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर

याचिका में कहा गया है कि नागेश्वर राव की नियुक्ति उच्च स्तरीय चयन समिति की सिफारिशों के आधार पर नहीं की गई थी, जैसा कि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम के तहत अनिवार्य है.

एम नागेश्वर राव. (फोटो साभार: फ़ेसबुक)

याचिका में कहा गया है कि नागेश्वर राव की नियुक्ति उच्च स्तरीय चयन समिति की सिफारिशों के आधार पर नहीं की गई थी, जैसा कि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम के तहत अनिवार्य है.

एम नागेश्वर राव, (फोटो साभार: फ़ेसबुक)
एम. नागेश्वर राव, (फोटो साभार: फ़ेसबुक)

नई दिल्ली: गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) कॉमन कॉज ने एम. नागेश्वर राव को सीबीआई का अंतरिम निदेशक नियुक्त करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है.

इस मामले में आरटीआई कार्यकर्ता अंजली भारद्वाज सह-याचिकाकर्ता हैं, जिसमें ये आरोप लगाया गया है कि सीबीआई निदेशक की नियुक्ति में सरकार पारदर्शिता का पालन नहीं कर रही है.

लाइव लॉ की खबर के मुताबिक याचिका में कहा गया है कि नागेश्वर राव की नियुक्ति उच्च स्तरीय चयन समिति की सिफारिशों के आधार पर नहीं की गई थी, जैसा कि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम (डीएसपीई) के तहत अनिवार्य है.

10 जनवरी, 2019 के आदेश में कहा गया है कि मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ने नागेश्वर राव को ‘पहले की व्यवस्था के अनुसार’ नियुक्त करने की मंजूरी दी है.
हालांकि पहले की व्यवस्था यानि 23 अक्टूबर, 2018 के आदेश ने उन्हें अंतरिम सीबीआई निदेशक बनाया था और 8 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने आलोक वर्मा मामले में इस आदेश को रद्द कर दिया था.

हालांकि, सरकार ने खारिज किए गए आदेश पर सीबीआई के नागेश्वर राव को एक बार फिर अंतरिम निदेशक नियुक्त कर दिया.

याचिका में कहा गया है कि सरकार उच्चाधिकार प्राप्त समिति की सिफारिशों के बिना सीबीआई निदेशक का प्रभार नहीं दे सकती. इसलिए, सरकार द्वारा उन्हें सीबीआई निदेशक का पदभार देने का आदेश गैरकानूनी है और डीएसपीई की धारा 4 ए के तहत नियुक्ति प्रक्रिया के खिलाफ है.

याचिका में राव की नियुक्ति को रद्द करने की मांग के अलावा सीबीआई के निदेशक की नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए विशिष्ट तंत्र बनाने के लिए भी निर्देश देने की मांग की गई है.

याचिका में कहा गया है कि दिसंबर 2018 में, सरकार ने सीबीआई निदेशक के नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की थी क्योंकि आलोक वर्मा का कार्यकाल 31 जनवरी, 2019 को समाप्त होने वाला था.

दिसंबर 2018 में, अंजलि भारद्वाज ने आरटीआई अधिनियम के तहत विभिन्न आवेदन दायर किए और नियुक्ति प्रक्रिया की जानकारी मांगी. हालांकि सरकार ने गोपनीयता बरकरार रखते हुए कोई भी जानकारी देने से मना कर दिया.

याचिका में कहा गया, ‘नियुक्ति प्रक्रिया के बारे में जानकारी रोकने के प्रयास में, सरकार ने इनमें से प्रत्येक आरटीआई आवेदनों का एक ही प्रकार से जवाब दिया.’

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