भीमा-कोरेगांव: सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े के ख़िलाफ़ एफआईआर रद्द करने से इनकार

सुप्रीम कोर्ट ने सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े की गिरफ़्तारी से अंतरिम सुरक्षा की अवधि चार सप्ताह और बढ़ा दी है.

आनंद तेलतुम्बड़े. (फोटो साभार: फेसबुक)

सुप्रीम कोर्ट ने सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े की गिरफ़्तारी से अंतरिम सुरक्षा की अवधि चार सप्ताह और बढ़ा दी है.

आनंद तेलतुम्बड़े. (फोटो साभार: फेसबुक)
आनंद तेलतुम्बड़े. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने एल्गार परिषद/भीमा-कोरेगांव हिंसा में कथित भूमिका और माओवादियों से कथित संबंधों के मामले में सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े के खिलाफ दर्ज पुणे पुलिस की प्राथमिकी (एफआईआर) रद्द करने से सोमवार को इनकार कर दिया.

न्यायालय ने मामले में जारी जांच में हस्तक्षेप करने से भी इनकार कर दिया.

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एसके कौल ने बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा तेलतुम्बड़े को दी गई गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा की अवधि चार सप्ताह और बढ़ा दी.

शीर्ष अदालत ने कहा कि तेलतुम्बड़े सक्षम निचली अदालत से इस मामले में नियमित जमानत की अपील कर सकते हैं.

बॉम्बे हाईकोर्ट से तेलतुम्बड़े की याचिका 21 दिसंबर को खारिज कर दी थी.

तेलतुम्बड़े ने अपने खिलाफ दायर पुणे पुलिस की प्राथमिकी रद्द करने और तीन सप्ताह के लिए गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा देने की मांग की थी.

पुलिस के अनुसार भीमा-कोरेगांव में बीते साल एक जनवरी को हुई हिंसा से एक दिन पहले पुणे में एल्गार परिषद समारोह में कई कार्यकर्ताओं ने कथित रूप से भड़काऊ भाषण दिए थे जिसके कारण हिंसा भड़की.

मालूम हो कि एक जनवरी 2018 को वर्ष 1818 में हुई कोरेगांव-भीमा की लड़ाई को 200 साल पूरे हुए थे. इस दिन पुणे ज़िले के भीमा-कोरेगांव में दलित समुदाय के लोग पेशवा की सेना पर ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना की जीत का जश्न मनाते हैं. इस दिन दलित संगठनों ने एक जुलूस निकाला था. इसी दौरान हिंसा भड़क गई, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी.

पुलिस ने आरोप लगाया कि 31 दिसंबर 2017 को हुए एलगार परिषद सम्मेलन में भड़काऊ भाषणों और बयानों के कारण भीमा-कोरेगांव गांव में एक जनवरी को हिंसा भड़की.

मालूम हो कि बीते 28 अगस्त को महाराष्ट्र की पुणे पुलिस ने माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर पांच कार्यकर्ताओं- कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंसाल्विस को गिरफ़्तार किया था. महाराष्ट्र पुलिस ने आरोप लगाया है कि इस सम्मेलन के कुछ समर्थकों के माओवादी से संबंध हैं.

इससे पहले महाराष्ट्र पुलिस ने पिछले साल पुणे में आयोजित एलगार परिषद की ओर से आयोजित कार्यक्रम से माओवादियों के कथित संबंधों की जांच करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता सुधीर धावले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन और महेश राउत को जून में गिरफ्तार किया था.

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)