राजस्थान: बालश्रम से छुड़ाए गए 152 बच्चे महीनों से घर लौटने का कर रहे इंतज़ार

राजस्थान के चूड़ी कारख़ानों से दिसंबर 2017 से नवंबर 2018 के बीच में मुक्त कराए गए ये सभी बच्चे बिहार से हैं.

राजस्थान में बाल श्रम से मुक्त कराए गए बच्चे. (फोटो: माधव शर्मा/द वायर)

राजस्थान के चूड़ी कारख़ानों से दिसंबर 2017 से नवंबर 2018 के बीच में मुक्त कराए गए ये सभी बच्चे बिहार से हैं.

राजस्थान में बाल श्रम से मुक्त कराए गए बच्चे. (फोटो: माधव शर्मा/द वायर)
राजस्थान में बाल श्रम से मुक्त कराए गए बच्चे. (फोटो: माधव शर्मा/द वायर)

जयपुर: राजस्थान में बाल श्रम ये बचाए गए दिलशाद, जीतू, अख़लाख़, गुड्डू (सभी बदले हुए नाम) जैसे 152 बच्चे पिछले साल ईद और दिवाली अपने घर पर नहीं मना सके. इसकी वजह सरकारी लापरवाही और हाल ही में हुए राजस्थान के विधानसभा चुनाव हैं.

दरअसल, इन 152 बाल श्रमिक और निराश्रित बच्चों को पिछले साल जयपुर से बालश्रम और बंधुआ मज़दूरी से आज़ाद कराया गया, लेकिन सरकारी लेटलतीफ़ी की वजह से ये बच्चे छह महीने से अपने घर जाने का इंतज़ार कर रहे हैं.

ये सभी बच्चे बिहार से हैं और इन्हें अगस्त 2018 से नवंबर 2018 के बीच में जयपुर की चूड़ी कारख़ानों से छुड़ाया गया था. 153 बच्चों में से 140 बाल श्रमिक हैं और 13 बच्चे निराश्रित या लावारिस हैं. इनमें से एक बच्चा तो दिसंबर 2017 में रेस्क्यू किया गया था जिसे अब तक अपने घर नहीं भेजा गया है.

अब जब राजस्थान बाल कल्याण समिति ने इन्हें वापस भेजने की कवायद शुरू की तो कुंभ मेला इन बच्चों के घर पहुंचने के सपने के बीच में आ गया. राजस्थान बाल कल्याण समिति ने बीते 7 जनवरी को पत्र लिखकर रेलवे को 16 जनवरी के लिए दो बोगी रिज़र्व करने के लिए कहा, लेकिन रेलवे ने बोगी रिज़र्व करने से मना कर दिया.

रेलवे ने कहा कि कुंभ के चलते भारी यात्री दवाब है इसीलिए 16 जनवरी को पटना के लिए 2 बोगी रिज़र्व नहीं कर सकते. 16 जनवरी को जयपुर से पटना के लिए कोई दूसरी ट्रेन भी नहीं थी. अब बाल कल्याण समिति ने रेलवे को बोगी रिज़र्व करने के लिए फिर से एक पत्र लिखा है.

इस तरह इन बच्चों के घर जाने का रास्ते में पहले जहां बाल कल्याण समिति की लेटलतीफी रोड़ा बनी थी अब रेलवे भी बच्चों के घर नहीं पहुंच पाने का कारण बन रहा है.

कब क्या हुआ

जयपुर पुलिस ने अगस्त 2018 से नवंबर 2018 तक 152 बाल श्रमिक और निराश्रित बच्चों को शहर के अलग-अलग जगहों से पकड़ा. इसमें अगस्त में नौ, सितंबर में 18, अक्टूबर में 111 और नवंबर महीने में 14 बाल श्रमिक और निराश्रित बच्चे पकड़े गए.

पकड़े गए बच्चों को बाल कल्याण समिति के सुपुर्द कर दिया गया. इसके बाद इन बच्चों को अलग-अलग बाल सुधार गृहों में काउंसलिंग के लिए भेज दिया गया. काउंसलिंग, मेडिकल चेकअप और संबंधित एसडीएम के बयान जैसी कार्रवाई में लगभग एक महीने का समय लगता है.

एसडीएम के बयान के बाद ही बच्चों के रिलीज सर्टिफिकेट बनते हैं. इस दौरान ही विधानसभा चुनावों के लिए अक्टूबर महीने में चुनावी आचार संहिता लग गई और एसडीएम चुनावी ड्यूटियों में व्यस्त रहने लगे. इस तरह इन बच्चों के रिलीज सर्टिफेकेट के लिए ज़रूरी एसडीएम के बयान नहीं हो पाए.

दिसंबर तक का समय चुनावी आचार संहिता की आड़ में में निकल गया. नई सरकार बनने के बाद विभाग को इन बच्चों को इनके घर बिहार भेजने का ख्याल आया और 3 जनवरी को इन्हें वापस भेजने के आदेश जारी किए.

बाल कल्याण समिति ने 7 जनवरी को रेलवे को 16 जनवरी के लिए दो बोगी आरक्षित करने का पत्र लिखा गया, लेकिन रेलवे ने कुंभ मेले का हवाला देते हुए बोगी रिज़र्व करने से मना कर दिया.

इस संबंध में बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष नरेंद्र सिखवाल ने कहा, ‘राजस्थान में 90 प्रतिशत बाल श्रमिक बिहार से आते हैं. अगस्त से नवंबर तक 152 बच्चे बाल श्रम से चंगुल से छुड़ाए गए लेकिन चुनावों की वजह से एसडीएम के बयान नहीं हो पाए. अब सारी कार्यवाही पूरी कर ली है, लेकिन रेलवे ने बोगी देने से मना कर दिया. रेलवे को फिर से पत्र लिखा है. कुछ ही दिनों में बच्चों को इनके घर भेज दिया जाएगा.’

यहां सवाल यह उठता है कि जब चुनावी आचार संहिता में बच्चे रेस्क्यू किए जा सकते हैं तो उन्हें वापस क्यों नहीं भेजा जा सकता?

बाल श्रमिकों के बीच लंबे समय से काम कर रहे राजस्थान बाल अधिकार संरक्षण साझा अभियान के विजय गोयल कहते हैं, ‘इन बच्चों के रेस्क्यू के बाद बिहार सरकार को इन्हें ले जाने के लिए पत्र लिखा गया जबकि नियमानुसार जिस राज्य से बच्चे पकड़े जाते हैं उसे ही इन्हें उनके घर तक भेजना होता है. जब बिहार सरकार ने बच्चों को ले जाने के लिए मना कर दिया तो विभाग शांत बैठ गया. इनके रिलीज सर्टिफिकेट भी काफी समय तक तैयार नहीं करवाए गए. अब नई सरकार को कुछ काम करते हुए दिखाने के लिए 3 जनवरी को इन बच्चों को घर भेजने की कवायद शुरू की है.’

विजय आगे कहते हैं, ‘सामान्यतः रेस्क्यू करने के बाद 1-2 महीने बच्चों को बाल श्रमिक या बंधुआ मज़दूरी का रिलीज सर्टिफिकेट देने, सोशल स्टेटस रिपोर्ट बनाने और अन्य सरकारी कागजी कार्यवाही में लगते हैं. ये पहला केस नहीं है अक्सर ऐसा होता है कि अधिकारियों की लेटलतीफी के कारण सही समय पर बच्चे अपने घर नहीं पहुंच पाते. अव्वल तो सरकार बिहार से बाल श्रमिक आने को ही नहीं रोक पा रही. हर बार बच्चों की नई खेप जयपुर के चूड़ी कारख़ानों में काम करने के लिए लाई जाती है. ये बच्चे बेहद बुरी स्थिति में इन कारख़ानों में काम करते हैं.’

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की जॉइंट डायरेक्टर रीना शर्मा से बच्चों को घर भेजने में हुई देरी के संबंध में कहा, ‘इस बार बिहार सरकार ने बच्चों को लेने के लिए कोई प्रतिनिधि नहीं भेजा इसीलिए थोड़ी देरी हुई है. 152 बच्चों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी भी हमारी ही है इसीलिए पूरी सावधानी बरती गई है. अब 24 जनवरी को बच्चों को स्पेशल बोगी लगवाकर बच्चों को उनके घर भेजा जा रहा है.’

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

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