मोदी सरकार ने पूर्व कानून सचिव सुरेश चंद्रा को आवेदन किए बगैर ही बनाया सूचना आयुक्त

आरटीआई कार्यकर्ताओं का कहना है कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा था कि आवेदन करने वाले उम्मीदवारों में से ही सर्च कमेटी सूचना आयुक्त के लिए योग्य लोगों को शॉर्टलिस्ट करेगी. अगर सरकार को अपने मन से ही नियुक्ति करनी है तो आवेदन क्यों मंगाए गए.

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पूर्व विधि सचिव सुरेश चंद्रा. (फोटो साभार: केंद्रीय सूचना आयोग)

आरटीआई कार्यकर्ताओं का कहना है कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा था कि आवेदन करने वाले उम्मीदवारों में से ही सर्च कमेटी सूचना आयुक्त के लिए योग्य लोगों को शॉर्टलिस्ट करेगी. अगर सरकार को अपने मन से ही नियुक्ति करनी है तो आवेदन क्यों मंगाए गए.

पूर्व विधि सचिव सुरेश चंद्रा. (फोटो साभार: केंद्रीय सूचना आयोग)
पूर्व विधि सचिव सुरेश चंद्रा. (फोटो साभार: केंद्रीय सूचना आयोग)

नई दिल्ली: केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने पूर्व विधि सचिव सुरेश चंद्रा को आवेदन किए बगैर ही सूचना आयुक्त के पद पर नियुक्त किया है. कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) द्वारा इसकी वेबसाइट पर अपलोड की गई फाइलों का अध्ययन करने से ये खुलासा हुआ है. आरटीआई कार्यकर्ताओं ने सुरेश चंद्रा को केंद्रीय सूचना आयुक्त के रूप में नियुक्ति को एक ‘मनमानी प्रक्रिया’ करार दिया है क्योंकि उन्होंने इस पद के लिए आवेदन नहीं किया था.

आरटीआई एक्ट के तहत केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) सर्वोच्च अपीलीय संस्था है. मालूम हो कि बीते 20 दिसंबर 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली चयन समिति की बैठक में चार लोगों की सिफारिश सूचना आयुक्त पद पर नियुक्ति के लिए की गई थी. इस समिति में मोदी के अलावा लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और वित्त मंत्री अरुण जेटली थे.

इसके बाद एक जनवरी, 2019 को सूचना आयुक्त के पद पर नियुक्त होने वालों में पूर्व आईएफएस अधिकारी यशवर्द्धन कुमार सिन्हा, पूर्व आईआरएस अधिकारी वनजा एन. सरना, पूर्व आईएएस अधिकारी नीरज कुमार गुप्ता और पूर्व विधि सचिव सुरेश चंद्रा शामिल हैं.

हालांकि खास बात ये है कि सुरेश चंद्रा ने इस पद के लिए आवेदन ही नहीं किया था. इसके बावजूद उन्हें इस पद पर नियुक्त किया गया है. डीओपीटी द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक सूचना आयुक्त के पद के लिए कुल 280 लोगों ने आवेदन दायर किया था. इस सूची में सुरेश चंद्रा का नाम शामिल नहीं है.

सूचना आयुक्त के पद पर नियुक्ति के लिए 27 जुलाई 2018 को विज्ञापन जारी किए गए थे. इसके बाद आवेदन करने वालों में से उचित उम्मीदवारों की नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा एक सर्च कमेटी बनाई गई थी.

सर्च कमेटी के सदस्य कैबिनेट सचिव पीके सिन्हा, प्रधानमंत्री के अतिरिक्त मुख्य सचिव पीके मिश्रा, डीओपीटी के सचिव सी. चंद्रमौली, औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) के सचिव रमेश अभिषेक, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव अमित खरे और दिल्ली विश्वविद्यालय के इंस्टिट्यूट ऑफ इकोनॉमिक ग्रोथ के निदेश मनोज पांडा शामिल थे.

सर्च कमेटी के अध्यक्ष कैबिनेट सचिव पीके सिन्हा थे. सूचना आयुक्त के पद पर लोगों को शॉर्टलिस्ट करने के लिए सर्च कमेटी की दो मीटिंग, 28 सितंबर 2018 और 24 नवंबर 2018 को हुई थी.

24 नवंबर को हुई अंतिम बैठक में सर्च कमेटी ने कुल 14 लोगों के नाम को शॉर्टलिस्ट किया था जिसमें से 13 लोग पूर्व नौकरशाह (पूर्व ब्यूरोक्रैट या सरकारी बाबू) थे और सिर्फ एक इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज थे.

इतना ही नहीं, समिति ने जिन 14 लोगों के नाम की सिफारिश की थी उसमें से दो लोग- सुरेश चंद्रा और अमीसिंग लुइखम- का नाम आवेदनकर्ताओं में शामिल नहीं हैं. इसका मतलब है कि सर्च कमेटी ने इन नामों की सिफारिश अपने तरफ से की है.

सुरेश चंद्रा ने द हिंदू को इस बात की पुष्टि की है कि उन्होंने इस पद के लिए आवेदन नहीं किया था. चंद्रा ने कहा, ‘यह एक उच्चस्तरीय अर्ध-न्यायिक निकाय है. आप देखेंगे कि कई योग्य उम्मीदवार आवेदन नहीं करते हैं. मैंने भी आवेदन नहीं किया था. मुझसे बाद में पूछा गया, मुझे संपर्क किया गया. लेकिन लिखित में कोई आवेदन नहीं था.’

उन्होंने आगे कहा, ‘सर्च कमेटी केवल आवेदकों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि योग्य उम्मीदवारों के लिए है. अधिकांश आवेदक शीर्ष नौकरशाह हैं, जो न्यायिक मामलों में प्रशिक्षित नहीं हैं.’

हालांकि 27 अगस्त, 2018 को सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे में डीओपीटी ने खुद कहा था कि जिन लोगों ने पद के लिए आवेदन दायर किया है, उनमें से ही सर्च कमेटी द्वारा लोगों को शॉर्टलिस्ट किया जाएगा.

सर्च कमेटी की मिनट्स ऑफ मीटिंग में लिखा है, ‘सर्च कमेटी ने 28/09/2018 को अपनी पहली बैठक की. सर्च कमेटी ने सूचना आयुक्त के रूप में नियुक्ति के लिए आरटीआई अधिनियम के तहत निर्धारित मापदंडों पर ध्यान दिया और आवेदकों की सूची पर विस्तार से चर्चा की. सर्च कमेटी ने यह भी निर्देशित किया कि उसके द्वारा और अधिक विचार करने के लिए आवेदकों की विस्तृत प्रोफाइल तैयार/संकलित किए जा सकते हैं. सर्च कमेटी के सदस्यों से यह भी अनुरोध किया गया कि वे अगली बैठक में विचार के लिए अन्य उपयुक्त उम्मीदवारों के नाम, यदि कोई हो, का सुझाव दें.’

हालांकि पारदर्शिता और आरटीआई की दिशा में काम कर रहे कार्यकर्ताओं का कहना है कि सर्च कमेटी के पास ऐसा कोई भी अधिकार नहीं है कि वो अपनी तरफ से नामों का सुझाव दें.

आरटीआई को लेकर काम करने वाले सतर्क नागरिक संगठन और सूचना के जन अधिकार का राष्ट्रीय अभियान (एनसीपीआरआई) की सदस्य अंजलि भारद्वाज ने कहा, ‘अगर इन्हें अपनी तरफ से ही नियुक्ति करने का मन है तो फिर आवेदन किसलिए मंगाए जाते हैं. आवेदन की आखिरी तारीख क्यों तय की जाती है. कानून में ऐसा कहीं भी नहीं लिखा है. हमें नहीं पता कि अपनी तरफ से नामोंं का सुझाव देने की शक्तियां ये कहां से ले रहे हैं.’

सर्च कमेटी की मिनट्स ऑफ मीटिंग में आगे लिखा है, ’24/11/2018 को सर्च कमेटी की फिर से बैठक हुई. डीओपीटी द्वारा प्राप्त आवेदनों के अलावा, सर्च कमेटी ने कार्यरत/रिटायर्ड सिविल सर्वेंट्स के नाम के साथ-साथ सर्च कमेटी के सदस्यों द्वारा सुझाए गए अन्य नामों पर भी विचार किया. समग्र अनुभव प्रोफाइल के साथ-साथ पद के लिए उपयुक्तता पर विचार करने के बाद सर्च कमेटी ने निम्नलिखित लोगों को शॉर्टलिस्ट किया है.’

आरटीआई कार्यकर्ताओं का कहना है कि ये कानूनी रूप से सही नहीं है कि किसी ऐसे व्यक्ति को नियुक्त किया जाए जिसने आवेदन ही न किया हो. इससे सभी आवेदकों के बराबरी के अधिकार का उल्लंघन होता है.

भारद्वाज ने कहा, ‘सर्च कमेटी ने डीओपीटी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामें के खिलाफ जाकर आवेदकों की सूची से बाहर के लोगों को शॉर्टलिस्ट किया है. हमें इस तरह की मनमानी प्रक्रिया को रोकने के लिए हर स्तर पर पारदर्शिता की जरूरत है और जनता को इसकी जांच करनी चाहिए. पूरी प्रक्रिया समाप्त होने के बाद इस सूचना को जारी करने का क्या मतलब है?’

बता दें कि अंजलि भारद्वाज द्वारा दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 13 दिसंबर को डीओपीटी को शॉर्टलिस्ट किए गए उम्मीदवार और सर्च कमेटी की बैठकों को सार्वजनिक करने का निर्देश दिया था लेकिन विभाग ने 18 जनवरी को इसका अनुपालन किया, जब पूरी प्रक्रिया समाप्त हो गई थी और नियुक्तियां हो चुकी थीं.

नए नियुक्त हुए चारों अधिकारी साल 2018 में ही रिटायर हुए हैं. सुरेश चंद्रा वित्त मंत्री अरुण जेटली के निजी सचिव भी रहे हैं. अरुण जेटली चयन समिति के सदस्य भी थे.

चंद्रा पिछले साल नवंबर 2018 में ही विधि सचिव के पद से रिटायर हुए हैं. जून 2016 की कुछ मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, केंद्र को विधि सचिव पद के लिए 45 आवेदन प्राप्त हुए थे, जिसमें कई सेशन जज भी शामिल थे.

हालांकि, कानून मंत्रालय से किसी ने भी आवेदन नहीं किया था, क्योंकि उनमें से कोई भी जरूरी मापदंडों को पूरा नहीं करता था. बाद में, मापदंड बदल दिए गए, जिसकी वजह से सुरेश चंद्रा को आवेदन करने की अनुमति मिली और उन्हें 14 जून 2016 को विधि सचिव नियुक्त किया गया.

सीबीआई के पूर्व डीआईजी एमके सिन्हा के द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में भी उनका नाम था. सिन्हा ने 19 नवंबर, 2018 को सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को हटाने के मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की थी.

हलफनामे में दावा किया गया है कि सुरेश चंद्रा ने मीट कारोबारी मोइन कुरैशी मामले के एक आरोपी सना सतीश बाबू को 8 नवंबर को कैबिनेट सचिव पीके सिन्हा का संदेश देने के लिए कॉल किया था कि केंद्र सरकार उन्हें पूर्ण सुरक्षा प्रदान करेगी. चंद्रा ने इस बात से इनकार किया है कि उन्होंने आरोपी से बात की है.

आरटीआई कानून के मुताबिक केंद्रीय सूचना आयोग में कुल 11 पद हैं. इन चार सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के बाद अब सीआईसी में कुल सात पदों पर नियुक्ति हो चुकी है. हालांकि अभी भी कुल चार पद खाली हैं.

बीते दिसंबर महीने की शुरुआत में ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को सीआईसी में खाली पदों को भरने की प्रक्रिया जल्द से जल्द शुरू करने का निर्देश दिया था.

जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस एस. अब्दुल नजीर और जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी की पीठ ने केंद्र के साथ-साथ राज्यों को भी निर्देश दिया था कि वे शॉर्टलिस्ट किए गए उम्मीदवारों से संबंधित सूचना और सीआईसी के साथ-साथ राज्य सूचनाओं में नियुक्तियों के लिए अपनाए गए मापदंडों से संबंधित जानकारी अपनी वेबसाइटों पर अपलोड करें.

अंजलि भारद्वाज ने बताया कि वो केंद्रीय सूचना आयोग में नियुक्ति के लिए अपनाई गई मनमानी प्रक्रिया और गोपनीयता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाली हैं.

भारद्वाज ने कहा, ‘पारदर्शिता की मांग सिर्फ सूचना आयोग तक ही सीमित नहीं है. सरकार सीबीआई, लोकपाल, सीवीसी जैसी बड़ी भ्रष्टाचार निरोधी संस्थाओं में गोपनीय तरीके से नियुक्ति कर रही है. अगर आवेदकों के नाम पहले ही सार्वजनिक किए गए होते तो ये सवाल उठता कि आखिर सुरेश चंद्रा की नियुक्ति कैसे की गई, जब उन्होंने आवेदन ही नहीं किया था. लोकपाल और सीबीआई निदेशक की नियुक्ति को लेकर भी घोर गोपनीयता बरती जा रही है. अपने चहेतों को इन पदों पर बिठाने की सरकार की ये कोशिश है.’

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