क्या कोका-कोला भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों को प्रभावित कर रहा है?

भारत में खाद्य सुरक्षा मानकों को तय करने वाली संस्था एफएसएसएआई के दो सदस्य कोका-कोला द्वारा वित्त-पोषित संगठन द इंटरनेशनल लाइफ साइंसेज इंस्टिट्यूट के साथ काम करते हैं. चीन में यह संगठन ग्राहकों को ग़लत तरीके से प्रभावित करने के लिए जाना जाता है.

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(फोटो साभार: टिम बोनिन)

भारत में खाद्य सुरक्षा मानकों को तय करने वाली संस्था एफएसएसएआई के दो सदस्य कोका-कोला द्वारा वित्त-पोषित संगठन द इंटरनेशनल लाइफ साइंसेज इंस्टिट्यूट के साथ काम करते हैं. चीन में यह संगठन ग्राहकों को ग़लत तरीके से प्रभावित करने के लिए जाना जाता है.

(फोटो साभार: टिम बोनिन)
(फोटो साभार: टिम बोनिन)

‘कोका-कोला कंपनी ने एक गैर-लाभकारी समूह के माध्यम से मोटापे पर चीन की सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों को नजरअंदाज कर दिया है. यह गैर-लाभकारी समूह पोषण पर काम करने वाले वैज्ञानिकों के साथ मिलकर सरकार की नीति को कंपनी के कॉर्पोरेट हितों के पक्ष में प्रभावित करने का काम करती है.’

ऐसा कहना है हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर सुज़न ग्रीनहाल्ग का और ये चौंकाने वाले तथ्य पिछले महीने ब्रिटिश मेडिकल जर्नल और जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ पॉलिसी में प्रकाशित हुए हैं.

द इंटरनेशनल लाइफ साइंसेज इंस्टिट्यूट (आईएलएसआई) एक गैर-लाभकारी संगठन है. इसकी स्थापना कोका-कोला के एक पूर्व वरिष्ठ उपाध्यक्ष अलेक्स मलासपिना ने की थी और साल 2015 के अंत तक इसका नेतृत्व कोका-कोला के हेल्थ एंड साइंस के प्रमुख अधिकारी रोना एप्पलबॉम कर रही थीं.

अपने अध्ययन में ग्रीनहाल्ग ने पाया कि चीन की सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों को प्रभावित करने के लिए कोका-कोला और अन्य कंपनियां आईएलएसआई की चीनी शाखा के माध्यम से काम करती थीं. इसमें कोका-कोला का यह संदेश भी शामिल था कि ‘डाइट नहीं, आपकी दिनचर्या मायने रखती है.’

ग्रीनहाल्ग ने इसे ऐसा दावा बताया जिसे सार्वजनिक स्वास्थ्य के कुछ शोधार्थियों ने स्वीकार कर लिया. विकसित देशों में महामारी की तरह बढ़ रहे मोटापे के लिए उच्च शुगर की खपत को दोषी ठहराने वाले कई अध्ययनों के सामने आने के बाद से कोका-कोला बचाव की मुद्रा में आ गई है.

दरअसल चीन, भारत, मेक्सिको और दक्षिण अफ्रीका जैसी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में भी मोटापा तेजी से बढ़ रहा है. हालांकि कंपनी की रणनीति इन अध्ययनों को खारिज करते हुए शारीरिक गतिविधियों को मोटापे को का रामबाण इलाज बताने की रही है.

अमेरिका में एक अन्य गैर-लाभकारी संगठन ग्लोबल एनर्जी बैलेंस नेटवर्क (जीईबीएन) ने 2015 में घोषणा की थी कि कोका-कोला के लिए काम करने के कारण उस पर सार्वजनिक स्वास्थ्य के पेशेवरों और मीडिया से काफी दबाव पड़ा जिसके बाद उसने अपना अनुबंध खत्म कर दिया.

आईएलएसआई की तरह जीईबीएन को भी कोका-कोला से अच्छी खासी फंडिंग मिली थी, जिसमें 15 लाख डॉलर केवल उनकी शुरुआत के लिए दिये गये थे. सॉफ्ट ड्रिंक और मोटापे के बीच के संबंध को खत्म करने के इन्हें सीधे एप्पलबॉम के साथ मिलकर काम करना होता है.

पहले तो कोका-कोला ने जीईबीएन के साथ अपने संबंधों से साफ इनकार कर दिया था. हालांकि, एसोसिएटेट प्रेस द्वारा हासिल किए गए ईमेल ने जीईबीएन और कोका-कोला के संबंधों का खुलासा कर दिया जिसके बाद 2015 में एप्पलबॉम को इस्तीफा देना पड़ा.

वहीं, आईएलएसआई का भारत से भी संबंध है, जिसमें उसने कोका-कोला के नियामक मामलों के निदेशक को अपना कोषाध्यक्ष नियुक्त किया हुआ है.

इसके बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में नेस्ले और अजीनोमोटो के भी प्रतिनिधि शामिल हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसने भारत में शुगर और डाइट की भूमिका को कम बताने के लिए एक कांफ्रेंस की थी जहां उन्होंने शारीरिक गतिविधियों को बढ़ावा देने की बात की.

इसमें चिंता वाली बात यह है कि जिन भारतीय अधिकारियों पर इन जंक फूड कंपनियों के नियमन की जिम्मेदारी है, वे भी आईएलएसआई को चलाने में शामिल हैं.

आईएलएसआई बोर्ड के एक सदस्य देबब्रत कानूनगो भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) की कीटनाशक अपशिष्ट पर काम करने वाली वैज्ञानिक समिति में हैं.

बता दें कि एफएसएसएआई, भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने वाली और सुरक्षा मानकों को स्थापित करने वाली केंद्रीय एजेंसी है.

आईएसएलआई-इंडिया के एक अन्य बोर्ड सदस्य बी शशिकरण कार्यात्मक खाद्य पदार्थ, पोषक तत्व, आहार उत्पाद और अन्य समान उत्पाद मामलों पर काम करने वाली एफएसएसएआई की वैज्ञानिक समिति में हैं.

शशिकरण अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन, डीसी में स्थित आईएलएसआई ग्लोबल के बोर्ड ट्रस्टीज में भी शामिल हैं. उनका संबंध भारत सरकार की संस्था राष्ट्रीय पोषण संस्थान से बताया गया है जो स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत काम करती है.

वह एकमात्र बोर्ड सदस्य हैं जो सरकार से जुड़े हुए हैं. चीन की तरह भारत में भी यह संगठन सार्वजनिक स्वास्थ्य के महत्वपूर्ण क्षेत्रों को नियंत्रित करने में सफल हो चुका है.

अप्रैल, 2018 में एफएसएसआई ने ‘खाद्य सुरक्षा एवं मानक (लेबलिंग एवं डिस्प्ले) नियमन’ का मसौदा जारी किया था. इसमें कहा गया था कि उच्च मात्रा वाले वसा, शुगर और साल्ट (जंक खाद्य पदार्थ) पैकेज्ड खाद्य पदार्थों पर कोका-कोला के कैन के रंग की तरह लाल लेबल होना चाहिए.

कुछ पक्षों द्वारा इस पर चिंता जताने के बाद मसौदा नियम को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. इसके बाद एफएसएसआई ने शशिकरण की अध्यक्षता में लेबलिंग के मुद्दे को देखने के लिए एक बार फिर से एक तीन सदस्यों की समिति गठित की.

भारत की खाद्य सुरक्षा के संबंध में नियम बनाने वाले लोगों को आईएलएसआई में केंद्रीय भूमिका निभाने से रोका जाना चाहिए.

वास्तव में तो उन्हें ऐसी किसी भी कंपनी के लिए काम करने से रोकना चाहिए जो कि जंक फूड बनाती हैं और ग्राहकों को प्रभावित कर सकती हैं.

ऐसी दोहरी भूमिकाएं गंभीर तौर पर हितों के टकराव को पैदा करती हैं. इससे खाद्य सुरक्षा, पोषण और मोटापे को लेकर बनने वाली भारत की नीतियों को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं.

कोका-कोला जैसी कंपनियां मुंहमांगी कीमत पर अपना काम निकाल लेती हैं. साल 2006 में भारत में पानी की समस्या के कारण कोका-कोला दबाव में आ गई थी लेकिन उसके बाद उसने एक लॉबिस्ट को काम सौंपा.

न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, उसने बाकी कामों के साथ यह सुनिश्चित किया कि हर सरकारी या निजी अध्ययन को चुनौती देने वाला एक दूसरा अध्ययन पेश किया जाए.

बी. शशिकरण और देबब्रत कानूनो को एफएसएसआई की उनकी सेवाओं से मुक्त किया जाना चाहिए. उनकी जगह स्वतंत्र विशेषज्ञों की नियुक्ति की जानी चाहिए जिनका कोई हितों का टकराव न हो खासकर निजी खाद्य कंपनियों और सार्वजनिक स्वास्थ्य के बीच.

इस मुद्दे के बारे में सचेत करने के लिए लेखक ने एफएसएसआई के सीईओ पवन अग्रवाल और एमएचएफडब्ल्यू लिखा है. उनका जवाब आने पर उसे खबर में जोड़ दिया जाएगा.

(अमित श्रीवास्तव कैलिफोर्निया के बर्कले स्थित इंडिया रिसोर्स सेंटर में कॉरपोरेट जवाबदेही मुद्दे पर काम करते हैं.)

इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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