मानसिक रोग से उबर चुके लोगों का पुनर्वास सुनिश्चित करे सरकार: सुप्रीम कोर्ट

शीर्ष अदालत ने कहा कि ठीक होने के बावजूद लोगों को उनके परिवार वाले घर नहीं ले जाते ऐसे में सरकार को उनकी उचित देख-रेख की व्यवस्था करनी चाहिए.

(फोटो: पीटीआई)

एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि ठीक होने के बावजूद लोगों को उनके परिवार वाले घर नहीं ले जाते ऐसे में सरकार को उनकी उचित देख-रेख की व्यवस्था करनी चाहिए.

Supreme Court PTI
(फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट ने ठीक होने के बावजूद मानसिक अस्पतालों में रह रहे ऐसे लोग जिनके परिवार वाले उन्हें अपने साथ नहीं रखना चाहते, के पुनर्वास के लिए एक तंत्र विकसित करने के लिए केंद्र सरकार से कहा है.

शीर्ष अदालत ने सोमवार को केंद्र सरकार से कहा, ‘केंद्र बताए कि मानसिक रोग के बाद ठीक हो चुके लोगों के पुनर्वास के लिए कौन-कौन से क़दम उठाए जा सकते हैं.’

मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ उत्तर प्रदेश में अलग-अलग मानसिक अस्पतालों से डिस्चार्ज किए जा चुके ऐसे 300 लोगों के संबंध में दाख़िल की गई एक जनहित याचिका की सुनवाई कर रही थी.

याचिका में आरोप लगाया गया है कि अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बावजूद ये लोग अस्पताल में ही रह रहे हैं, क्योंकि इनके परिवार के लोग इन्हें अपने साथ नहीं रखना चाहते. इनमें से अधिकांश लोग गरीब परिवारों से ताल्लुक रखते हैं.

इस पर सॉलिसीटर जनरल रंजीत कुमार ने पीठ को बताया, ‘यह राज्य से जुड़ा हुआ मामला है. इस संबंध में दिशा-निर्देश तैयार करने के लिए हमें राज्यों से परामर्श लेना होगा. अगर हमारे पास उनके भी सुझाव और अनुमति होगी तो इसे लागू करना आसान होगा.’

यह भी पढ़ें: देश में सिर्फ़ 10-15 फीसदी मानसिक रोगियों को ही इलाज मिल पाता है

उन्होंने विकलांग व्यक्ति अधिकार अधिनियम, 2016 और हाल ही पास हुए मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 2017 का हवाला देते हुए कहा कि इस याचिका में उठाए गए तमाम मुद्दों के बारे में इन अधिनियमों में बात की गई है.

हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि वह सात अप्रैल को पास हो चुके मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 2017 को एक बार और देखेंगे.

इस पर पीठ ने कहा, ‘ज़्यादा ज़रूरी यह है कि अगर कोई अधिनियम बनाया गया है तो उसे ठीक तरह से लागू किया जाए. आप हमें ये बताइए कि इसे किस तरह से लागू किया जाएगा.’ पीठ ने सवाल किया कि क्या इस संबंध में बुनियादी स्तर पर कोई काम हुआ है?

इसके बाद पीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए आठ मई की तारीख़ तय की है.

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को अति संवेदनशील मानते हुए केंद्र से मानसिक रूप से ठीक हो चुके लोगों के पुनर्वास के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने के लिए कहा था.

यह भी देखें: क्या है मानसिक स्वास्थ्य विधेयक?

शीर्ष अदालत ने मानसिक रोग से पीड़ित और ठीक होने के बाद अस्पतालों से डिस्चार्ज हुए लोगों के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनाने की भी बात कही है.

यह जनहित याचिका अधिवक्ता जीके बंसल ने दाख़िल की है. उनका आरोप है कि सुविधाओं से वंचित बहुत सारे लोग ठीक होने के बाद मानसिक अस्पतालों में ही दिन गुज़ारने को मजबूर हैं. इनके लिए कोई नीति नहीं है जो इनके ठीक होने के बाद इनकी उचित देख-रेख सुनिश्चित कर सके.

याचिका में उत्तर प्रदेश के आगरा, वाराणसी और बरेली शहरों में स्थित मानसिक अस्पतालों में ठीक होने के बाद भी रह रहे लोगों के बारे में आईटीआई के तहत ली गई जानकारी का हवाला दिया गया है.

आरटीआई के तहत बरेली के मानसिक स्वास्थ्य अस्पताल, आगरा के मानसिक स्वास्थ्य और अस्पताल संस्थान और वाराणसी के मानसिक अस्पताल से जानकारी ली गई थी.

याचिका में सामान्य हो चुके ऐसे लोगों को मानसिक अस्पतालों से वृद्धाश्रम जैसी जगहों पर शिफ्ट करने के लिए राज्यों को निर्देश देने की भी मांग की गई है.

(समाचार एजेंसी पीटीआई से इनपुट के साथ)