मेरा प्रधानमंत्री बनने का सपना नहीं, लेकिन कोई नया प्रधानमंत्री बने, ये सपना हैः अखिलेश यादव

द वायर डायलॉग्स में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव से द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी की बातचीत.

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नई दिल्ली में द वायर डॉयलॉग्स कार्यक्रम में अखिलेश यादव से द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी ने बातचीत की. (फोटो: द वायर)

द वायर डायलॉग्स में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव से द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी की बातचीत.

नई दिल्ली में द वायर डॉयलॉग्स कार्यक्रम में अखिलेश यादव से द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी ने बातचीत की. (फोटो: द वायर)
नई दिल्ली में द वायर डॉयलॉग्स कार्यक्रम में अखिलेश यादव से द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी ने बातचीत की. (फोटो: द वायर)

द वायर हिंदी की दूसरी वर्षगांठ के मौके पर आयोजित कार्यक्रम ‘द वायर डायलॉग’ में ‘जिसका यूपी- उसका देश’ में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी से हुई बातचीत में कई मुद्दों पर अपनी बात खुलकर रखी.

सवाल भले ही 2019 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर बनाए जा रहे महागठबंधन का हो, 2022 में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में अपनी रणनीति का, अखिलेश बेबाकी से अपनी बात रखते दिखे. उनसे हुई बातचीत का संपादित अंश.

आरफ़ा – ठीक आम चुनावों के लगभग सौ दिन पहले हमारे साथ एक ऐसी शख्सियत हैं, जोकि उन छह अग्रणी नेताओं में से एक माने जाते हैं, जो तय करेंगे अगला प्रधानमंत्री कौन होगा. अखिलेश यादव न कि तेजस्वी नेता हैं बल्कि कम उम्र में मुख्यमंत्री बनने वालों में से एक हैं. अखिलेश जी, कहा जाता है कि आप साइकिल के बड़े शौकीन हैं. साइकिल को चलाते-चलाते आपने साइकिल पर हाथी बिठा लिया. क्या भारी हो गई है साइकिल?

अखिलेश – हम समाजवादी लोग तय कर चुके हैं कि देश में नई सरकार बने. नई सरकार बनाने के लिए साइकिल की रफ्तार बढ़े, साथ अच्छा हो तो कामयाब होंगे. हाथी का साथ है.

आरफ़ा – कहा जा रहा है कि अगली जो सरकार बनने वाली है, वह महामिलावट की सरकार होगी.

अखिलेश – अगर हम पिछले पांच सालों में देखें तो राजनीति में इतने खराब शब्दों का इस्तेमाल इससे पहले कभी नहीं हुआ होगा, जो अभी हो रहा है. मैं ये कहूंगा कि विचारों का संगम है, दलों का संगम है. ये कोई मिलावट की सरकार नहीं है.

तमाम विचारधाराओं का एकसाथ संगम होने जा रहा है और ये पहली बार नहीं हो रहा है. दिल्ली में पिछली जितनी भी सरकारें बनी हैं, और इनकी (भाजपा) खुद की सरकार जो मिलावट की सरकार कह रहे हैं, उनसे पूछिए उत्तर प्रदेश में उन्होंने क्या-क्या मिलाया था, तब जाकर 70 से ज्यादा लोकसभा सांसद जीते थे. उन्होंने खुद मिलावट की है. अब तो संगम होने जा रहा है.

आरफ़ा – मायावती के साथ आपके, आपके परिवार के लोगों के, पार्टी के संबंध खासकर पिछले दशकों में जिस तरह से रहे हैं, ये कैसे संभव हो पाया कि उनसे हाथ मिला पाए?

अखिलेश – संबंध कैसे भी रहे हों, देश के लिए और देश को नई दिशा देने के लिए संबंध बेहतर किए जाते हैं. लगभग 25 सालों के पुराने झगड़े को मैंने 25 मिनटों में खत्म कर दिया था.

आरफ़ा – ऐसे कैसे हुआ?

अखिलेश – ये बात दिल्ली वाले जान जाएंगे तो और गड़बड़ हो जाएगी इसलिए इसे नई सरकार बनने तक राज़ ही रहने दीजिए.

आरफ़ा – क्या इसकी एक वजह यह भी है कि जो कुछ भी हुआ था, उसमें आपके पिता या चाचा का जिक्र करें तो उनके दौर में कड़वाहट रही थी, चूंकि आप नई पीढ़ी के नेता हैं इसलिए इतिहास को पीछे छोड़ पाए?

अखिलेश – सच तो ये है कि नेताजी के संबंध भी उस दल के साथ बहुत अच्छे रहे हैं. गोरखपुर की जीत की बधाई मैं बाद में दे पाया था, नेताजी ने मायावती जी को पहले बधाई दी थी. संबंध बनाने से बनते हैं. देश के लिए और एक नई राजनीतिक दिशा तय हो, इसके लिए बहुत सारी चीजों को भुलानी पड़ती है. बहुजन समाज पार्टी ने भी इस बात को माना और उसने तमाम चीजों को भुलाया. आज हम देश को एक नई दिशा देने जा रहे हैं.

आरफ़ा – आप नेताओं ने तो आपस में तय कर लिया कि मिलकर चुनाव लड़ने जा रहे हैं लेकिन अपने पार्टी कार्यकर्ताओं को कैसे समझाया या कैसे समझाएंगे कि जो दशकों तक एक-दूसरे के खिलाफ लड़ते रहे हैं, अब एक-दूसरे के साथ लड़ेंगे. ये कैसे हो पाएगा?

अखिलेश – उदाहरण के लिए तो कई चुनाव हैं, लेकिन हाल ही में हुए उपचुनाव को तो आपने देख ही लिया, दोनों दलों के कैडरों ने मिलकर काम किया था. मुझे लगता है कि जो तकलीफ लोगों को है, जब आप दिल्ली में उसे महूसस कर रहे हैं. कैसे मीडिया को डराया जा रहा है, जो लोग उनके साथ है, कैसे उन्हें भी डराया जा रहा है तो शायद इससे ज्यादा जनता समझ रही है क्योंकि अच्छे दिन के बहाने अच्छे लोग भी उनके साथ चले गए और शायद साढ़े चार साल बाद उनको भी समझ में आ गया है और जो अच्छे लोग चले गए थे अब वापस आ रहे हैं.

आरफ़ा – दूसरा सवाल ये पैदा हो रहा है कि आपने कई बार ये कहा है कि ये गठबंधन नैचुरल गठबंधन है, तमाम हाशिए के लोगों का अलायंस है, गरीबों का अलायंस है, विकास की कहानी में पीछे छूटे हुए लोगों का अलायंस है. इस बात से किसी को असहमति नहीं है, लेकिन आपको यह भी याद होगा कि 90 के दशक में काशीराम और मुलायम सिंह यादव…. सबसे पहले उन्होंने इस अलायंस को बनाने की कोशिश की थी. अगर ये इतना प्राकृतिक अलायंस था तो इसको बनाने में आपने इतने दशक क्यों लगाए?

अखिलेश – शायद आपको इस बात की भी जानकारी होगी कि मैं उस समय राजनीति में नहीं था. वो दूरियां क्यों बनी, शायद दूरियां बनाने वालों ने दूसरा रूप लेकर सत्ता हासिल कर ली. ये बात हम समझ गए इसलिए अब दूरियां नहीं होने वाली हैं. जिन्होंने दूरियां बढ़ायी थींं, उन्हें फिर एक बार सत्ता से दूर कर देंगे.

आरफ़ा – क्या आपको इस बात का विश्वास है कि जो सौ दिनों बाद का भविष्य है, वो गठबंधन का ही भविष्य है?

अखिलेश – अभी तक तो अगर पिछली कई सरकारों को हम देखें तो गठबंधन की ही सरकारें बनी हैं. आज जो सरकार है, वह भी गठबंधन की सरकार है. फर्क सिर्फ इतना है कि लोग नहीं जानते हैं. कई प्लेटफॉर्म के जरिए उन तक यह बात नहीं गई है कि गठबंधन में कई दल मिले हुए हैं. हम तो यूपी में ही जानते हैं, एक मंत्री और उनकी पार्टी बीजेपी के लोगों को सुबह से शाम तक न जाने क्या-क्या कहते हैं, लेकिन बीजेपी लोग कितने अच्छे हैं, वो कुछ भी कहें उन्हें स्वीकार कर लेते हैं क्योंकि उन्हें सरकार चलानी है.

आरफ़ा – उत्तर प्रदेश में यह गठबंधन जरूर हुआ लेकिन क्या इस तरह का गठबंधन राष्ट्रीय स्तर पर देखने को मिलेगा?

अखिलेश – मुझे खुशी है कि हाल ही में पश्चिम बंगाल में हुए कार्यक्रम में ममता जी ने सभी दल के लोगों को बुलाया. उस प्लेटफॉर्म में सभी दल के लोग पहुंचे थे. अगर यही दल आने वाले समय में जीतकर आ जाते हैं तो शायद देश में एक नई सरकार देंगे.

मुझे यकीन है ये तमाम दल जो एक मंच पर आए हैं, मिलकर नई सरकार देंगे. लेकिन उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी भूमिका होगी. उत्तर प्रदेश से ही रास्ता निकलता है. पहले भी कई प्रधानमंत्री यूपी से ही बने हैं.

आरफ़ा – लेकिन क्या उत्तर प्रदेश का ये गौरव टूटा है क्योंकि अब तो पिछले पांच सालों से नागपुर और गुजरात से सरकार चल रही है?

अखिलेश – लोग बाद में समझ पाए. अच्छे दिन के बहाने बहुत सारे अच्छे लोग भी उनके (भाजपा) साथ चले गए. अब उनको यकीन हो गया है कि जो लोग सत्ता में हैं, वो दो-दो शपथ लेकर बैठे हुए हैं. अगर दो शपथ होंगे तो वे कन्फ्यूज़ होंगे. संविधान से सत्ता को चलाएं या किसी और चीज से चलाएं. इस समय दो शपथ वाले लोग सत्ता में हैं.

आरफ़ा – दूसरी शपथ कौन-सी है?

अखिलेश – शायद देश में सब लोग जानते हैं दूसरी शपथ कौन लेता है. एक तो संविधान की शपथ और एक दूसरी शपथ है. अगर ये देखना है कि दूसरी शपथ कौन-सी है, कभी उत्तर प्रदेश का अखबार उठाकर देख लें. हमारे मुख्यमंत्री जी क्या-क्या कहते हैं.

उन्होंने एक बार कहा था, ‘अगर कहीं कोई बंदर परेशान करे तो हनुमान चालीसा पढ़ लें.’ हमने टीवी पर देखा कि स्नान करने का तरीका क्या होता है. ये लोग जो दिखा रहे हैं ये सब दो शपथ वाले लोग हैं.

आरफ़ा – शायद इसीलिए कहा जाता है कि आप अच्छे हिंदू नहीं हैं?

अखिलेश – मैं अच्छा भारतवासी भी हूं और अच्छा हिंदू भी हूं. उसके लिए मुझे किसी का सर्टिफिकेट नहीं चाहिए. सबसे बड़ी बात यह है कि मुझमें हिम्मत है. शायद जिनमें हिम्मत नहीं है वे सर्टिफिकेट मांगेंगे.

आरफ़ा – लेकिन आप कब्रिस्तान को बिजली देते हैं, श्मशान को नहीं देते हैं?

अखिलेश – ये बातें हुईं थीं. लोग समझ नहीं पाए थे. हम समझाते रहे वे बहकाते रहे. अब जनता बहुत समझदार है. मैं धन्यवाद दूंगा कि अब बहुत से प्लेटफॉर्म से सच्चाई सामने आ रही है. लेकिन उससे भी ज्यादा हमें इंटरनेट टेररिस्ट लोगों से भी मुकाबला करने की जरूरत है. ये लोग न जाने कौन-सी भाषा का इस्तेमाल करते हैं. ये थोड़े ताकतवर हैं लेकिन कमजोर भी हुए हैं. उनके पास अब कोई काम नहीं है इसलिए काम गिनाए जा रहे हैं.

आरफ़ा – अब यूपी की अलायंस के बाद और कौन-कौन से अलायंस बनेंगे? जो भी ये चाहता है कि दिल्ली में नई सरकार बने, मजबूत सरकार बने जैसे मोदी जी कह रहे हैं ‘मजबूर सरकार’ न बने. उसके लिए जरूरी है कि गठजोड़ बनें और रियल टाइम में रियल अलायंस हों, जिनमें सीट बंटवारे से लेकर तमाम चीजें और लोगों की जो आकांक्षाएं हों. आप जिसे प्राकृतिक या नेचुरल गठबंधन कह रहे हैं उस तरह के नेचुरल गठबंधन हों. उत्तर प्रदेश के बाद अब कौन-से गठबंधन की घोषणा हमें सुनने को मिलेगी?

अखिलेश – फिलहाल तो हम लोग सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही हैं. क्या नया गठबंधन होगा ये दूसरे दल जानें. अभी उत्तर प्रदेश का गठबंधन ज़मीन पर आ रहा है. लोग उसका समर्थन कर रहे हैं. जनता उसका समर्थन कर रही है. आने वाले समय में क्या होगा पता नहीं, लेकिन समाजवादियों ने शुरुआत की है ताकि देश को नया प्रधानमंत्री मिले. सुना है अब तो बीजेपी में भी प्रधानमंत्री के लिए नई खोज चल रही है. गठबंधन का असर दिखाई दे रहा है.

आरफ़ा – आप कहते रहे हैं कि आप एक हिंदू हैं और बैकवर्ड यानी पिछड़े हिंदू हैं.

अखिलेश – ये बात इसलिए कही कि हम क्या हैं, लोग समझ जाएं. हम तो सर्टिफिकेट वाले हिंदू नहीं हैं. हम पैदाइशी हैं. जन्म पर किसी का अधिकार नहीं होता. अगर मुझे जन्म का अधिकार होता तो मैं कुछ और तय कर लेता. मुझे पता होता कि क्या होने से क्या-क्या मिलता है.

ये पाबंदियां नहीं होनी चाहिए इसलिए हम चाहते हैं कि लोग समझें. गैर बराबरी को खत्म करने का रास्ता दिखाना चाहते हैं. इस देश में बहुत सारी चर्चाएं होती हैं. लेकिन भुखमरी, बेरोजगारी कहां है? कहा था कि हम आय दुगुनी कर देंगे, लेकिन आय वाले सवाल कहां हैं?

आरफ़ा – आप कह रहे हैं कि गठबंधन होगा, गठबंधन हो गया है, नई सरकार गठबंधन से तय होगी. आपकी दो पार्टियों ने गठबंधन कर लिया है. आपने कांग्रेस पार्टी को भी पीछे छोड़ दिया है. बिना कांग्रेस पार्टी के क्या दिल्ली में सरकार बनेगी?

अखिलेश – क्योंकि उत्तर प्रदेश में 80 लोकसभा सीटें हैं, जिसमें दो कांग्रेस को दी गई हैं. आरएलडी को 7 दी गई हैं. निषाद पार्टी को भी 7 देने की कोशिश हो रही है. बाकी समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी हैं, इस तरह सभी दल तो आ गए.

आरफ़ा – लेकिन कांग्रेस?

अखिलेश – उस गठबंधन में कांग्रेस भी शामिल है. बिना कांग्रेस के गठबंधन पूरा नहीं होता इसलिए कांग्रेस भी है.

आरफ़ा – वो कैसे? जरा समझाएं.

अखिलेश – क्योंकि 80 से ज्यादा सीटें उत्तर प्रदेश में नहीं हैं. इससे ज्यादा सीटें होती तो और भी विचार किया जा सकता था.

आरफ़ा – आपके बातों से ये अंदाजा लगाया जाए कि एक तरह की समझदारी है सपा, बसपा और कांग्रेस पार्टियों के बीच, खासकर इस मद्देनजर से भी कि प्रियंका गांधी राजनीति में एक्टिव मोड ले चुकी हैं. माना ये जाता है कि जब गांधी सड़क पर उतरता है तो उसके साथ लोगों का सैलाब जाता है.

अखिलेश – कांग्रेस पार्टी को जितना दे सकते थे वह हमने दिया है. वह हमारे साथ है. हमारे बीच कोई समझदारी (अंडरस्टैडिंग) नहीं है, कोई स्ट्रेटजी नहीं है. अगर कांग्रेस लड़ना चाहती है तो अलग से लड़े. अभी जो बंगाल में कार्यक्रम हुआ था, उसमें सब साथ थे. समय कम है जिनसे लड़ना है वे बहुत ताकतवर लोग हैं, वे कब दिमाग भटका दें, लोगों के बीच कब क्या बात पहुंचा दें- इसलिए अगर देश में भारतीय जनता पार्टी को रोकना है तो हमें भी बहुत सावधान रहना है.

आरफ़ा – प्रियंका गांधी जो अब एक्टिव मोड ले चुकी हैं, उनको महासचिव बना दिया गया है. आप इसे कैसे देखते हैं?

अखिलेश – मैंने हमेशा इस बात को कहा है और इस बात को मानता हूं कि नया भारत तभी बनेगा, जब नए लोग राजनीति में आएंगे. ज्यादा से ज्यादा नए लोग आएं क्योंकि देश सबसे ज्यादा युवा है. कम से कम नई सोच आएगी. अच्छी बात है, हम तो बधाई देते हैं.

आरफ़ा – प्रियंका गांधी क्या बदलाव लाएंगी?

अखिलेश – इस पर अभी मैं कुछ नहीं कह सकता क्योंकि जनता ही तय करेगी. इस लोकतंत्र को जनता चलाएगी. हमें खुशी है इस बात की कि नए लोग राजनीति में आ रहे हैं. कांग्रेस पार्टी ने नए लोगों को जोड़ने की कोशिश की है.

आरफ़ा – लेकिन सियासी पंडित ये कह रहे हैं कि आप दूध से जले हैं और छाछ भी फूंककर पी रहे हैं. पिछले चुनावों में जो अलायंस हुआ था, एक तरह से उसे कैडर ने भी यही समझा और पार्टी नेताओं में भी इस पर एक राय बनी कि कांग्रेस पार्टी के साथ अलायंस आपको सूट नहीं किया.

अखिलेश – मैं ऐसा नहीं मानता. अगर लोग ऐसा सोचते हैं तो हो सकता है ये उनका विचार हो. गठबंधन था, गठबंधन आगे नहीं बढ़ पाया. साथ नहीं हैं तो वो अलग बात है.

आरफ़ा – आप दो सीटें तो देने को तैयार हैं, क्या उसके अलावा और सीटें छोड़ने को तैयार हैं?

अखिलेश – ये तो समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने तय किया है. मैं अकेला कैसे तय कर दूं.

आरफ़ा – बसपा और सपा ये तो नहीं चाहेंगे कि ये त्रिकोणीय मुकाबला बन जाए. कांग्रेस जब तक कमजोर थी, तब शायद इस गठबंधन को कोई खतरा नहीं था. लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि प्रियंका गांधी के आने से और जिस क्षेत्र में वे किरदार निभाएंगी वहां त्रिकोणीय मुकाबला होगा. आप जिस नई सरकार का सपना देख रहे हैं उसे नुकसान हो सकता है.

अखिलेश – जनता ने एक मन साफ बनाया हुआ है कि आज जो सरकार है वह सत्ता में नहीं आएगी. खासकर उत्तर प्रदेश के बारे में मैं ये कह सकता हूं. दूसरे प्रदेशों से भी यही सुनने को मिल रहा है.

हम और बहुजन समाज पार्टी मिलकर भाजपा को रोकना चाहते हैं लेकिन दूसरा दल (कांग्रेस) रोकना नहीं चाहता. अपनी पार्टी बनाना चाहता है. राजनीति में यही फर्क है. इसलिए सोचना होगा उन तमाम लोगों को जो सोचते हैं कि राजनीति किस दिशा में जाएगी.

भारतीय जनता पार्टी जैसी विचारधारा ने जहर घोल दिया है. हम अभी तक तो सिर्फ धर्म की नफरत में जी रहे थे, लेकिन अब हमें जातियों की नफरत में धकेल दिया है. आप क्या हैं, कैसे हैं, क्या पहन रहे हैं, क्या खाओगे… इसलिए उस विचारधारा से मुकाबला करना है, जिसे वे दो शपथ लेकर सत्ता में रहकर फैला रहे हैं. इसलिए सपा और बसपा मिलकर भाजपा को रोकना चाहते हैं.

आरफ़ा – क्या कांग्रेस पार्टी रोकना नहीं चाहती है?

अखिलेश – शायद वे अपनी पार्टी बनाना चाहते हैं. मुझे तो यही सुनने को मिला है.

आरफ़ा – चूंकि नई सरकार और नए प्रधानमंत्रियों की बात हो रही है तो क्या देश के अगले प्रधानमंत्री राहुल गांधी हैं?

अखिलेश – वैसे तो मैं समाजवादी हूं लेकिन सरकार बनाने में भाग्यवादी हूं. एक तो जिसका भाग्य होगा वही प्रधानमंत्री बनेगा. लेकिन अगर कोई उत्तर प्रदेश से प्रधानमंत्री बने तो मुझे खुशी होगी.

आरफ़ा – क्या आपको और आपके गठबंधन को राहुल गांधी प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार्य हैं या आपको लगता है कि गठबंधन के हित में है कि अभी किसी को प्रधानमंत्री के तौर पर घोषित न किया जाए. क्योंकि फुसफुसाहट हो रही है कि मोदी बनाम कौन?

अखिलेश – भाजपा यही चाहती है कि उनके चेहरे पर और उनकी पार्टी पर चुनाव लड़ा जाए लेकिन समाजवादी पार्टी और तमाम दल ऐसे हैं जो अपनी ताकत रखते हैं. इस देश में भारतीय जनता पार्टी को कोई रोकेगा तो वो क्षेत्रीय पार्टियां हैं. बंगाल में ममता बनर्जी रोकेंगी, बिहार में जो अलायंस बन रहा वो रोकेगा. उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा मिलकर सहयोगी दलों को साथ लेकर रोकेंगे.

आरफ़ा – इस सबके दौरान राहुल गांधी का तो नाम भी नहीं आया.

अखिलेश – अभी कोई प्रधानमंत्री का चुनाव थोड़े ही है. अभी तो लोकसभा के सांसदों का चुनाव है.

आरफ़ा – क्या आपको लगता है कि राहुल गांधी के अंदर वो योग्यता है कि वे देश के प्रधानमंत्री बन सकें? आप व्यक्तिगत तौर पर उन्हें पसंद करते हैं या नहीं?

अखिलेश – जनता जिसे चाहेगी वही प्रधानमंत्री बनेगा. हमारे चाहने न चाहने से नहीं होगा. अगर कोई यूपी से प्रधानमंत्री बने तो प्रदेश को गर्व होगा.

आरफ़ा – आप बार-बार उत्तर प्रदेश का जिक्र कर रहे हैं. कहीं ऐसा तो नहीं है कि आपने एक्सप्रेस-वे इसलिए बनवाया ताकि जल्दी लखनऊ से दिल्ली पहुंच जाएं.

अखिलेश – नहीं, मैं तो चाहता था कि बंगाल, बिहार के लोग भी जल्दी दिल्ली पहुंच जाएं. मैंने तो गाजीपुर तक ही एक्सप्रेस-वे बनवा दिया था. हम तो चाहते हैं पूरे देश में एक्सप्रेस-वे बने. सुना है गडकरी जी भी कोई एक्सप्रेस-वे बना रहे हैं. लगता है वे भी जल्दी दिल्ली आना चाहते हैं.

आरफ़ा – इसका मतलब अखिलेश यादव प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं.

अखिलेश – प्रधानमंत्री बनने का मेरा कोई सपना नहीं है लेकिन हां, कोई नया प्रधानमंत्री बने ये मेरा सपना है.

आरफ़ा – तो ये बताइए कि आप प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं या आपका कैडर आपको प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहता है? मायावती प्रधानमंत्री बनना चाहती हैं इसमें कोई दोराय नहीं है लेकिन दो पार्टियों का एक गठबंधन, दोनों में दो प्रधानमंत्री के उम्मीदवार.

अखिलेश – हमारे दो गठबंधन हैं या हमारे जितने भी गठबंधन हैं, मैं तो प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहता.

आरफ़ा – क्या अमित शाह ठीक ही कह रहे हैं कि सप्ताह के हर दिन के लिए एक प्रधानमंत्री हैं?

अखिलेश – बहुत जल्दी उनका कैलेंडर बदलने वाला है.

आरफ़ा – आपने बताया कि आपके और कांग्रेस के बीच शिकायतों के बावजूद समझदारी भी है. लेकिन आपकी पार्टी और बसपा में भी ये समझदारी है कि एक दिल्ली का रोल निभाएगा और एक राज्य की कमान थामेगा. इसमें से कौन दिल्ली में है और कौन राज्य में?

अखिलेश – इसमें मुझे कोई जल्दीबाजी नहीं है. फिलहाल सपा, बसपा और तमाम अलायंस मिलकर भारतीय जनता पार्टी को रोकेंगे.

आरफ़ा – आप सवाल का जवाब दीजिए, क्या वाकई ये अंदरुनी समझ है?

अखिलेश – किसी शर्त के साथ समझौता नहीं है. इसमें लोगों का, विचारों का संगम है क्योंकि देश ऐसे ही चलेगा, जब अलग-अलग विचारधारा और अलग-अलग जगहों से लोग आकर मिलेंगे. यही तो हमारे देश की खूबसूरती है. ये हमारे विचारों का संगम है, जो आने वाले दिनों में आपको दिल्ली में दिखाई देगा.

आरफ़ा – बहुत सारे लोगों में आशंका या अंदेशा था कि ये गठबंधन हो पाएगा या नहीं? उसकी सबसे बड़ी वजह थी लोकतांत्रिक संस्थाएं, इनवेस्टिगेटिव एजेंसियों का दुरुपयोग, चाहे वो सीबीआई हो या एनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट, इनकम टैक्स आदि. क्या अखिलेश यादव को सीबीआई से डर लगता है?

अखिलेश – उस डर को कांग्रेस ने निकाल दिया. जिस दिन मैं मायावती जी से मिला, उसके अगले ही दिन मुझे पता चला कि किसी योजना पर सीबीआई जांच हो गई है. फिर पता चला ईडी भी पीछे लगा दिया गया है. अगर ये संस्थाएं मेरे से कुछ पूछताछ करेंगी तो जरूर जवाब दूंगा.

बीजेपी ने बहुत-से गठबंधन किए हैं, दो गठबंधन और सही. लेकिन चुनाव ये गठबंधन नहीं, जनता लड़ेगी. सीबीआई और ईडी से वोट नहीं मिलने वाला है. इन संस्थाओं से आप खिलवाड़ करेंगे तो इनसे आपका भी हाथ जलेगा. लग रहा है राजनीति में ये एक नया हुनर है.

आरफ़ा – क्या इन संस्थाओं का कांग्रेस पार्टी से ज्यादा बीजेपी ने दुरुपयोग किया है?

अखिलेश – मैं इसकी तुलना नहीं करूंगा और आकलन भी नहीं करूंगा. लेकिन ये संस्थाएं ठीक से काम करें तो देश को लाभ होगा. इन संस्थाओं के माध्यम से आप अपने राजनीतिक दुश्मनों से हिसाब-किताब लें, ये राजनीतिक शिष्टाचार नहीं है. जब हम सत्ता में आ जाएंगे तो इनका इस्तेमाल आपके खिलाफ करेंगे और आप हमारे खिलाफ.

चलो अच्छा है बीजेपी ने कुछ तो सीखा. लोकतंत्र में संस्थाओं को खत्म करना, एक संस्था नहीं कई संस्थाओं को. हमारे देश में जरूरत है नौजवानों को नौकरियां मिलें. किसानों की तकलीफ दूर हों. नोटबंदी से कितने लोगों को लाभ मिला है. पूरा व्यापार खत्म कर दिया. कहा था कि ‘खाऊंगा न खाने दूंगा’ लोग खाए भी और भाग भी गए.

आरफ़ा – लेकिन ये बहुत ही दिलचस्प और बहुत ही हास्यास्पद बात है कि नरेंद्र मोदी के सरकार को पांच साल गुजर रहे हैं, शायद ये ऐसे पहले प्रधानमंत्री होंगे और एक ऐसी पहली सरकार होगी जो पांच साल बाद अपने नहीं बल्कि विपक्ष के भ्रष्टाचार के गुनाहों को दिखा रही है. पांच साल बाद जिस तरह की जवाबदेही विपक्ष की तरफ से मांगी जानी चाहिए, वो कन्विक्शन नज़र नहीं आ रहा है.

क्यों ऐसा नहीं होता जब प्रधानमंत्री अपनी राजनीति को ऐसे डिजाइन कर रहे हैं और वे बहुत कामयाबी के साथ कर पा रहे हैं, पांच सालों तक सत्ता उनके पास रही, तमाम पावर उनके पास थीं, लेकिन जवाबदेही है विपक्ष की. क्यों विपक्ष एकजुट होकर, एक स्वर में प्रधानमंत्री से इसका जवाब नहीं मांगता?

अखिलेश – कभी-कभी जो बात हम कहलवाना चाहें या दूसरे लोग जबरदस्ती कहलवाना चाहें नहीं हो पाता. लेकिन भगवान की कृपा देखो, उसने खुद ही वह बात कह दी. आपने भी लोकसभा में गौर नहीं किया होगा, लोकसभा में प्रधानमंत्री ने कहावत कही थी ‘उल्टा चोर ….’. उन्होंने ये किसके लिए कही थी. हम तो समझ गए, देश भी समझ जाएगा.

आरफ़ा – आप कह रहे हैं कि आपका सीबीआई का डर निकल गया है.

अखिलेश – क्यों डरेंगे? किस बात के लिए डरेंगे? राजनीति कर रहे हैं सेवा के लिए. लोगों के दुख-दर्द को दूर करने के लिए. हम सीबीआई से बचने के लिए राजनीति नहीं करते.

आरफ़ा – विपक्ष के नेता, जिनके खिलाफ ये तमाम मामले हैं, जिनको नरेंद्र मोदी सरकार डराना चाहती है, वे सब एकजुट होकर क्यों नहीं कहते कि हमारे खिलाफ स्पीडी ट्रायल करिए, मामले साबित करिए, हम जेल जाने को तैयार हैं? कभी इस तरह की बात सुनने में नहीं आई.

अखिलेश – ये देश अच्छे लोगों के भी हाथ में है. अगर कोई चीज खराब लोगों के हाथ में चली जाए तो अच्छा आदमी भी उसके साथ क्या-क्या हो जाता है. संस्था में क्यों झगड़ा है. सीबीआई से सबको डराया जा रहा है लेकिन डायरेक्टर से खुद डर रहे हैं.

आरफ़ा – यहां महत्वपूर्ण सवाल ये उठ रहा है कि आपने कहा कांग्रेस ने संस्थाओं का दुरुपयोग किया है. कांग्रेस ने सीबीआई का डर निकाल दिया.

अखिलेश – वह मैंने इसलिए कहा क्योंकि हम राजनीति की शुरुआत में थे, सीबीआई होने से हमारी बैलेंस शीट ठीक हो गई. अब बीजेपी वालों ने सीबीआई कर दी है तो हमारा बैलेंस सीट तो पहले से ठीक है.

आरफ़ा – क्या आपको लगता है कि ममता बनर्जी भी अपने राज्य में इन संस्थानों का गलत इस्तेमाल कर रही हैं. खासकर इस बात पर जोर देना चाहूंगी. एक, जिस तरह से वहां पुलिस अधिकारी उनके साथ धरने पर बैठे, दूसरा भाजपा के लोगों को वहां कैंपेन करने की इजाज़त नहीं दे रही हैं. कभी हेलिकॉप्टर उतरने की इजाज़त नहीं देतीं तो कभी कोई दूसरी बात होती है. क्या आपको नहीं लगता कि उनका पूरा व्यवहार, पहला- संस्थानों का गलत इस्तेमाल है और दूसरा- अलोकतांत्रिक है?

अखिलेश – ममता बनर्जी ने सही किया. उन्होंने जिन लोगों को अपने राज्य में नहीं घुसने दिया, हम यूपी में उनके भुक्तभोगी हैं. इनकी भाषा जहर घोलने वाली है. मुख्यमंत्री कह रहे थे, ‘ठोंक देंगे’ ये कैसी भाषा है. ये कोई मुख्यमंत्री की भाषा है. हमारे मुख्यमंत्री क्या कहकर सत्ता में आए थे, आज प्रदेश की क्या हालत है?

मुख्यमंत्री जी किसलिए बंगाल जा रहे हैं, पहले यूपी को संभालें. बेटियों के साथ क्या हो रहा है, विधायकों के साथ क्या हो रहा है, थानों में क्या हो रहा है? इलाज करने से पहले जाति पूछी जाती है. हमारे यहां की कानून-व्यवस्था क्या है?

मुझे याद है कि पिछले चुनावों में कहा जा रहा था कि सब थानों में यादव हैं. आज गिनती करो थानों में कौन ज्यादा हैं? जो अधिकारी ट्रांसफर रुकवाना चाहते हैं. उन्हें एनकाउंटर करवा दिया जाता है. उसी से उनका एनकाउंटर  रुक जा रहा है.

नोएडा में जितेंद्र यादव को गोली मार दी गई, एक गुर्जर लड़के को गोली मार दी, एक राजभर लड़के को गोली मार दी, उनको क्या न्याय मिला? हमारे क्षेत्र में दो-दो, तीन-तीन जिला पंचायतों, परिषदों के सदस्यों पर 376 की धाराएं लगाई है. हम पूछते हैं आप लोग क्या कर रहे हैं? पुलिस के लोग सुनने वाले नहीं हैं. उनसे आप क्या उम्मीद करोगे. बंगाल में उन पर बैन लगाया है तो ठीक लगाया है.

आरफ़ा – क्या उनको राजनीति करने का अधिकार नहीं है?

अखिलेश – हम राजनीति करने से नहीं रोकते, कम से कम भाषा तो अच्छी रखो. इसीलिए मैंने कहा था अच्छे दिन के बहाने बहुत सारे अच्छे लोगों ने उनका समर्थन किया था. अब वे सब उनकी बात समझ गए हैं.

आरफ़ा – मैं आपसे पूछना चाहती हूं कि इन सबके बावजूद कि क्या आपकी इन बातों से सहमति है? जिस तरह के बयानों की बात आप कर रहे हैं क्योंकि देश का संविधान इस तरह की राजनीति के बावजूद उनको पोलिटिकल कैंपेन करने से नहीं रोक सकता.

अखिलेश – इसलिए मैं कह रहा हूं विचारधारा की लड़ाई, विचारधारा से हरायी जा सकती है. देश की खूबसूरती ये नहीं है, लोग मंच पर खड़े होकर जहर घोलें. आपने तो शुरुआत में ही कहा था श्मशान और कब्रिस्तान की बात. मैं तो मंदिरों को भी पैसा दे रहा था. मैं आज भी दावे के साथ ये कह सकता हूं कि दो साल से हमारी सरकार नहीं है. आप मथुरा, वृंदावन का हिसाब निकलवा लीजिए काम के लिए सबसे ज्यादा पैसा किसने दिया था. अयोध्या-फैज़ाबाद में सबसे ज्यादा समाजवादियों ने काम करवाया है. जो अंडरग्राउंड केबलिंग बनारस में हो रही है, उसे भी समाजवादियों ने शुरू किया है.

आरफ़ा – अगर उत्तर प्रदेश में आपकी सरकार होती तो आप भाजपा के लोगों को कैंपेन करने के लिए घुसने नहीं देते?

अखिलेश – शायद, उनकी ये जो भाषा है उसके लिए तो कुछ होना चाहिए. आचार संहिता भी तो कुछ होती है.

आरफ़ा – इसका मतलब है आप घुसने नहीं देते? इसलिए आप कह रहे हैं कि ममता बनर्जी ने जो किया वह सही है.

अखिलेश – मैं ये नहीं कह रहा हूं. लेकिन ममता बनर्जी ने बिल्कुल ठीक किया. हमारे मुख्यमंत्री जी की भाषा आपने नहीं सुनी? वहां क्या भाषा बोलकर आए. वे उत्तर प्रदेश का विकास बताते, कहते कि हम यूपी से अच्छा बंगाल का विकास करेंगे. जिस तरह से यूपी में उन्होंने दूसरी पार्टियों के नेताओं को तोड़ा था. क्या बंगाल में भी वही नहीं कर रहे हैं. उनका प्रचारतंत्र तो इतना खूबसूरत है कि पता नहीं क्या-क्या कहने लगे. उनका वाट्सएप गैंग, उनका इंटरनेट आतंकवाद कैसा है? कहां की तस्वीर, कहां मिलाकर न जाने कहां पहुंचा देंगे.

आरफ़ा – मोदी जी को भाषण के लिए आपने नया विषय दे दिया है कि ‘देखिए मोदी को कैसे रोका जा रहा है’ वे अगले भाषण में यही बोलेंगे. मोदी को बोलने नहीं दिया जा रहा है.

अखिलेश – अब कोई मोदी को सुन नहीं रहा है. अब लोग कुछ और सुनना चाहते हैं. अगर उनका भाषण सुनें तो उनका भाषण शौचालय से शुरू होकर शौचालय पर खत्म हो जाता है. मुझे लगा था शायद ये उनका आखिरी बजट है तो शौचालय में पानी आ जाएगा, लेकिन इस बजट में भी शौचालय में पानी नहीं आया. क्या वे उनके डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया में ऐसे शौचालय बनाएंगे जिसमें पानी ही नहीं है.

आरफ़ा – लेकिन बीजेपी के पास पूरा आंकड़ा है कि उनकी जो स्कीम हैं, देश के हर व्यक्ति को किसी न किसी तरह छुआ है. वो ये कह रहे हैं कि किसी को उन्होंने टॉयलेट दिया, किसी को सिलेंडर दिया, किसी को आमदनी दी.

अखिलेश – ये आंकड़े यूपी में हमारे पास भी थे. लेकिन जनता कुछ और चाहती है. उत्तर प्रदेश में कई लोगों की जान सांड से गई. वहां पता ही नहीं चलता कि सांड किस कोने से आ जाए. किसान सांडों के डर से खेतों में वायर लगा रहे हैं. इस देश के यूपी में खेतों को बचाओ सांडों से. ये बात नहीं बोलनी चाहिए थी लेकिन बोलना पड़ रहा है.

आरफ़ा – आपका क्या प्लान है?

अखिलेश – मैं कोई प्लान नहीं बताऊंगा क्योंकि बीजेपी वाले सुन लेंगे. हमारा वही प्लान है जो हमने गोरखपुर में किया और कैराना में किया. उन्हीं का फार्मूला उन्हीं पर लगा दिया.

आरफ़ा – मैं अगले मुद्दे की ओर बढ़ना चाहती हूं. जो रफाल और नौकरियों से जुड़ा हुआ है. मैं ये जानना चाहती हूं कि क्या राहुल गांधी और उनकी पार्टी सिंगल हैंडेडली इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाने में कामयाब हुए हैं. आप मानते हैं या नहीं?

अखिलेश – जिस समय जंतर-मंतर में समाजवादी पार्टी का कार्यक्रम हुआ था, उस समय मुझसे पूछा गया था कि आप रफाल पर क्या चाहते हैं? मैंने उस समय जेपीसी की मांग की थी. उस समय पूरा देश सुप्रीम कोर्ट की तरफ देख रहा था. बाद में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया, उसके बाद लोगों ने और सभी राजनीतिक पार्टियां जेपीसी की मांग करने लगे. शायद ये जिम्मेदारी बड़ी पार्टी की है, कोई देश का इतना बड़ा सवाल हो, वो ये न सोचें कि ये सवाल उन्हीं का है. देश का सवाल है. सभी दलों को साथ लेकर उसमें लड़ाई लड़ना चाहिए. बस ये मेरा सुझाव है. लेकिन अब वक्त कम है देश जान गया है. मुद्दा रफाल भी है बेरोजगारी भी है. इनके अलावा और भी चीजें हैं. किसानों का सवाल भी है.

आरफ़ा –  मैं आपसे ये जानना चाहती हूं खासकर रफाल को लेकर. ये याद रखना बहुत जरूरी है कि देश की जनता ने जिन खास मुद्दों पर नरेंद्र मोदी को वोट दिया था, उनमें एक सबसे बड़ा मुद्दा भ्रष्टाचार था, मोदी की छवि भ्रष्ट नहीं थी बल्कि वे भ्रष्टाचार भी करने नहीं देंगे की थी. क्या सिंगल हैंडेडली राहुल गांधी और उनकी पार्टी इस इमेज में डेंट लगाने में कामयाब रहे. दूसरी बात आपकी जैसी पार्टियां रफाल के मुद्दे को उतना बढ़-चढ़कर आगे क्यों नहीं रखती हैं, जितना कांग्रेस पार्टी कर रही है?

अखिलेश – हमारी पार्टी भी बोलती है. हम भी समय संदर्भ में बोलते हैं. लेकिन आप जो कह रही हैं वो भी सच है. जिसका दामन जितना साफ-सुथरा होगा, उसका धब्बा दूर से दिखाई देगा. जो ये कहते हैं कि हमारा दामन साफ है, और धब्बा दिखाई दे रहा है तो उनकी जिम्मेदारी ज्यादा है. लोकसभा में भगवान ने उनसे क्या कहलवा दिया. वो बात सबको समझनी चाहिए. पूरा देश समझ रहा है. जहां रफाल एक मुद्दा है वहां किसानों का भी मुद्दा है.

आरफ़ा – किसानों का मुद्दा खासकर पिछले बजट में जो घोषणाएं हुई हैं, प्रधानमंत्री किसान निधी योजना का मैं जिक्र करना चाहूंगी, जिसमें आमदनी की बात कही गई है. आपको नहीं लगता कि ये किसानों की फायदे की स्कीम है. इससे ग्रामीण भारत में भाजपा की पैठ मजबूत होगी.

अखिलेश – लेकिन भारतीय जनता पार्टी को ये भी बताना पड़ेगा कि यूरिया में और डीएपी में जो पिछले पांच सालों से 5 किलो काट रहे हैं, इसका जवाब कौन देगा? जो पिछले पांच सालों से 5-5 किलो काटा गया है, वही पांच सौ रुपये वापस दे रहे हैं. ये बात किसान समझता है.

आरफ़ा – यानी इस स्कीम का असर नहीं होगा. क्योंकि सरकार गारंटी का जिक्र कर रही है.

अखिलेश – ऐसे तो सरकार ने ये भी कहा था कि हम एमएसपी देगें. लेकिन आज तक जगह नहीं बताई कहां पर देंगे. बीजेपी ने कहा था 14 दिनों के अंदर गन्ना किसानों का भुगतान हो जाएगा. महीनों गुजर गए नहीं हुआ. हमारे उत्तर प्रदेश में तो कहा था इन्वेस्टमेंट मीट है, लाखों करोड़ का इन्वेस्टमेंट होगा, लोग पिछले कई वर्षों से इंतजार कर रहे हैं. अच्छे दिनों का वादा किया था वो अच्छे दिन आए नहीं. जनता भाजपा पर भरोसा नहीं कर रही है.

आरफ़ा – धर्मनिरपेक्षता की बात करें तो आपने कुछ समय पहले बार-बार भगवा राजनीति का जिक्र किया. आपने कहा कि देश का सोशल फेबरिक किस तरह से बदल रहा है. आप और आपके पिता मुलायम सिंह यादव अपनी राजनीति में धर्मनिरपेक्षता को कैसे प्रैक्टिस करते हैं. उसमें क्या फर्क है?

अखिलेश – मुझे लगता है कोई फर्क नहीं है. भारत में किसी भी जाति-धर्म का शख्स हो, हम सबको बराबर देखते हैं. नेताजी भी इसी तरह से देखते थे.

आरफ़ा – लेकिन ये माना जाता है कि आप कहीं न कहीं जो पहचान की राजनीति है, उसे अलग कर देना चाहते हैं. इसका उदाहरण पिछले विधानसभा चुनाव में साफ तौर पर देखने को मिला. आप पर ये भी आरोप है कि मुज़फ़्फ़रनगर दंगों में सरकार को जो राजधर्म निभाना चाहिए था, वह नहीं निभाया. वहां जिस तरह की अक्षमता भी थी, उससे भी कहीं ज्यादा ये डर था कि जो हिंदू वोट बैंक है उसका बैकलॉस हो सकता है.

अखिलेश – दुर्भाग्य था कि मुज़फ़्फ़रनगर जैसी घटना हुई. उस पर मैंने कई बार जवाब दे चुका हूं. सरकार उनकी जितना मदद कर सकती थी, उनके दुख-दर्द में उनके साथ खड़ी रही. आज भी मैं भरोसा दिलाता हूं कि जहां भी लोगों के साथ अन्याय होगा वहां समाजवादी उनके साथ खड़े होंगे और अन्याय होने नहीं देंगे. हक और सम्मान की लड़ाई लड़नी भी पड़ी तो जमीन पर लड़ेंगे, कानूनी तौर पर भी हक और सम्मान दिलाएंगे.

आरफ़ा – लेकिन आपकी सरकार के रहते इतना बड़ा दंगा कैसे हुआ?

अखिलेश – पुरानी बातें भूल जाएं. क्योंकि कमिशन ने रिपोर्ट दी है. उसके साथ ही एक्शन टेकन रिपोर्ट भी है. सदन में मैं पेश कर चुका हूं, ये सार्वजनिक है. क्योंकि उस समय बहुत सारी बातें हुईं. उस समय सरकार जो जिम्मेदारियां निभा सकती थी निभाई है. जो कार्रवाई किया जा सकता था समाजवादी पार्टी ने किया.

आरफ़ा – सवाल इसलिए भी उठता है क्योंकि उस समय सरकार और मुख्यमंत्री के तौर आपकी जो जिम्मेदारी थी, माना ये जा रहा है कि आपने उस जिम्मेदारी को नहीं निभाया. दूसरी बात धर्मनिरपेक्षता की प्रतिबद्धता को भी नहीं निभाई गई. आप कह रहे हैं पुरानी बातें भूल जाएं. मैं नई बात से शुरू करती हूं. योगी आदित्यनाथ दर्जनों की संख्या में दंगों के मामले वापस ले रहे हैं. एक बार भी नहीं सुना गया कि आपकी पार्टी ने इस मुद्दे को उठाया.

अखिलेश – भाजपा ने जहां से आग लगाई थी, वहीं पर आग बुझाने का काम किसी ने किया है तो कैराना की जीत ने किया है. मैं वहां के लोगों को धन्यवाद देता हूं. जहां तक केसों का सवाल है या और घटनाओं का सवाल है- समय-समय पर समाजवादी पार्टी ने इसका विरोध किया है. आज मैं इस मंच से भी विरोध करता हूं. जो दोषी हैं उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए. सरकार कुछ भी करे हमें कोर्ट पर भरोसा करना होगा.

आरफ़ा – आप ये कह रहे हैं कि मुज़फ़्फ़रनगर दंगा के दौरान आपके प्रशासन और पुलिस अधिकारियों से कोई गलती नहीं हुई है.

अखिलेश – मैं कह रहा हूं हमें कोर्ट पर भरोसा करना होगा. जो दोषी हैं उनके खिलाफ कार्रवाई हुई है और कार्रवाई होनी चाहिए.

आरफ़ा – राजनीतिक पंडितों का कहना है कि 2017 के चुनावों में आपका राजनीतिक स्टाइल मुलायम सिंह यादव से बिल्कुल अलग दिखा – वह ये कि आप अपनी छवि विकास पुरुष के तौर पर आगे लाना चाहते थे, एक ऐसा व्यक्ति जो पहचान की राजनीति से दामन छुड़ा कर 21वीं सदी की राजनीति करना चाहता था. क्या आपकी वह कोशिश विफल रही. इसलिए 2019 में अब जो नेता हैं अखिलेश यादव, दरअसल मुलायम सिंह यादव के ही बेटे हैं.

अखिलेश – देखिए, नेताजी से तुलना होगी और ये कभी हटेगी नहीं. लेकिन नई पीढ़ी की भी नई सोच होती है. उनका भी कुछ अलग करने का मन होता है. जितना भी काम समाजवादियों ने किया, वह इसलिए किया क्योंकि आने वाली पीढ़ियों को कुछ देकर जाएं. बड़े काम मैंने इसलिए किए ताकि आने वाली पीढ़ी ये स्वीकार करे कि समाजवादी लोग किस रास्ते पर देश को ले जाना चाहते थे. ये जिम्मेदारी हर सरकार की है. जो नेताजी ने हमें दिया, हमने उसे समय और परिस्थितियों के अनुकूल आगे बढ़ाया.

आरफ़ा – मध्यप्रदेश में गौ-हत्या के आरोप में तीन लोगों के ऊपर रासुका (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) लगी है. इसे कैसे जवाब देंगे?

अखिलेश – कई प्रदेशों में इसी तरह के कानून बने हैं. अगर कोई गैरकानूनी काम करता है तो उस पर कार्रवाई हो रही है.

आरफ़ा – यानी आप इसके विरोध में हैं, ऐसा नहीं लगना चाहिए था?

अखिलेश – मैंने कहा कई प्रदेशों ने कानून बनाया है और कई प्रदेशों में कानून नहीं है. अभी चुनाव बहुत करीब हैं हम समाजवादियों से ऐसी कोई बात मत कहलवाइए, हमारी नीयत बिल्कुल साफ है. अगर कोई गलत करेगा तो कार्रवाई होगी. वहां की सरकार अपने चुनावी घोषणापत्र में वादा किया था इसलिए उसे अमल कर रही है. मध्य प्रदेश में हमारी सरकार तो है नहीं, हमने सहयोग किया था. उस सहयोग को भी वे भूल गए. यही तो कांग्रेस की खासियत है.

आरफ़ा – नरेंद्र मोदी सरकार ने सवर्ण आरक्षण लागू कर दिया है इस पर आप क्या कहेंगे? क्योंकि यह सवाल आपके दिल के पास है.

अखिलेश – हम और आप सब गिन लिए जाएं, जो जितना है उन्हें उस आधार पर हक और सम्मान मिल जाए. सवर्णों को भी गिन लिया जाए, उनको भी आबादी के हिसाब से हक मिल जाए. लगता है उन्हें कम मिला है.

आरफ़ा – कहा जाता है कि सबको आरक्षण मिल गया है मतलब किसी को आरक्षण नहीं मिला है.

अखिलेश – ये बहस बाद में हो सकती है. पहले हम और आप सब गिन लिए जाएं. सरकारों ने आकड़ों को क्यों रोके हुए हैं. कांग्रेस पार्टी ने सदन में सबको भरोसा दिलाया था कि ये आंकड़े निकालेंगे और जनता के समक्ष रखेंगे. लेकिन आज तक आंकड़े नहीं आए. बीजेपी के लोग भी कहते हैं ‘सबका साथ – सबका विकास’ लेकिन किसका साथ किसका विकास पता ही नहीं चल रहा है.

आरफ़ा – इसका मतलब ये है कि आपको सवर्ण आरक्षण से कोई दिक्कत नहीं है?

अखिलेश – मैं तो यही कहूंगा कि इस बहाने सबकी गिनती हो जाए. हमारे देश में जमीनी स्तर पर हर समाज ये समझता है कि हम आबादी में ज्यादा हैं लेकिन हमें कुछ नहीं मिल रहा है. उसी का लाभ राजनीति करने वाले उठाते हैं. उत्तर प्रदेश में पिछले लोकसभा चुनाव में कहा था कि सब नौकरियां यादवों को मिल गई. एक कमिशन बिठाया गया लेकिन रिपोर्ट अभी तक जारी नहीं की गई. हम रिपोर्ट का इतंज़ार कर रहे हैं. रिपोर्ट इसलिए नहीं आ रही क्योंकि हम नौकरियों में नहीं हैं. अगर देश को खुशहाली की राह पर ले जाना है तो सबको समान रूप से हक और सम्मान मिलना चाहिए. यही सबका साथ- सबका विकास है.

आरफ़ा – आपकी पत्नी डिंपल यादव का आपकी पार्टी में क्या जगह है? भविष्य में उनकी भूमिका को किस तरह देखना चाहते हैं? क्या उनके लिए राष्ट्रीय मानचित्र में कोई रोल है या उत्तर प्रदेश में?

अखिलेश – डिंपल बिल्कुल आज़ाद हैं. हालांकि वह मेरी पत्नी हैं. अपने निर्णय लेने के लिए वे पूरी तरह से आज़ाद हैं. अगर वे चाहती हैं तो राजनीति करें, लोकसभा चुनाव लड़े. महिलाओं का सवाल उठाएं. हमारी तरफ से पूरी आज़ादी है.

आरफ़ा – कहा जा रहा है कि अखिलेश यादव दिल्ली की तरफ कूच करना चाहते हैं और डिंपल यादव उत्तर प्रदेश संभालेंगी.

अखिलेश – आपने डिंपल को बहुत बड़ा सपना दिखा दिया. अभी हमारे तीन छोटे बच्चे हैं पहले उनकी पढ़ाई पूरी हो जाए यही सबसे बड़ी ख़ुशी होगी.

(इस साक्षात्कार को पूरा देखने के लिए नीचे क्लिक करें.)

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