साहित्यकार और आलोचक नामवर सिंह का निधन

हिंदी साहित्य का लिविंग लीजेंड कहे जाने वाले नामवर सिंह जनवरी से अस्पताल में भर्ती थे. मंगलवार देर रात आखिरी सांस ली.

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हिंदी साहित्यकार नामवर सिंह (फोटो साभार: राजकमल प्रकाशन)

हिंदी साहित्य का लिविंग लीजेंड कहे जाने वाले नामवर सिंह जनवरी से अस्पताल में भर्ती थे. मंगलवार देर रात आखिरी सांस ली.

हिंदी साहित्यकार नामवर सिंह (फोटो साभार: राजकमल प्रकाशन)
हिंदी साहित्यकार नामवर सिंह (फोटो साभार: राजकमल प्रकाशन)

नई दिल्लीः हिंदी के लोकप्रिय साहित्यकार और समालोचक नामवर सिंह का निधन हो गया. उन्होंने  दिल्ली के एम्स अस्पताल में मंगलवार रात 11.50 बजे अंतिम सांस ली. वह 92 वर्ष के थे.

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वह इस साल जनवरी में अपने घर में ही गिर गए थे, जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था.

हिंदी के वरिष्ठ पत्रकार और लेखक ओम थानवी ने फेसबुक पोस्ट के जरिए नामवर सिंह के निधन की जानकारी दी.

उन्होंने फेसबुक पोस्ट में कहा, ‘हिंदी में फिर सन्नाटे की खबर. नायाब आलोचक, साहित्य में दूसरी परंपरा के अन्वेषी, डॉ. नामवर सिंह नहीं रहे. मंगलवार आधी रात होते-न-होत कोई 11.50 पर उन्होंने आखिरी सांस ली. वे कुछ समय से एम्स मे भर्ती थे.’

थानवी ने कहा, ‘उनका (नामवर) का अंतिम संस्कार बुधवार को अपराह्न संभवतः लोधी दाहगृह में होगा. समय का परिजनों से सुबह पता चलेगा. 26 जुलाई को नामवर जी 93 वर्ष के हो जाते. उन्होंने अच्छा जीवन जिया, बड़ा जीवन पाया.’

नामवर सिंह का जन्म 28 जुलाई 1926 को वाराणसी के जीयनपुर गांव में हुआ था. उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से पीएचडी की डिग्री ली और बीएचयू में ही पढ़ाने लगे. वह कई अन्य विश्वविद्यालयों में भी हिंदी साहित्य के प्रोफेसर रहे.

उन्होंने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में भारतीय भाषा केंद्र की स्थापना की और 1992 में जेएनयू से रिटायर हो गए.

उन्हें हिंदी साहित्य का ‘लीविंग लेजेंड’ कहा जाता था. उनकी प्रमुख कृतियों में ‘कविता के नए प्रतिमान’, ‘छायावाद’ और ‘दूसरी परंपरा की खोज’ हैं.

उन्हें ‘कविता के नए प्रतिमान’ के लिए 1971 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था. उनकी हिंदी के अतिरिक्त उर्दू, एवं संस्कृत भाषा पर भी पकड़ थी.

वह ‘जनयुग’ और ‘आलोचना’ पत्रिकाओं के संपादक भी रहे. वह ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन (एआईपीडब्ल्यूए) के पूर्व अध्यक्ष थे.

उन्होंने 1959 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर उत्तर प्रदेश के चंदौली से लोकसभा चुनाव भी लड़ा था लेकिन वह हार गए थे.

एनडीटीवी के मुताबिक, नामवर सिंह की शख़्सियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले साल उनके जन्मदिन के उपलक्ष्य में दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित ‘नामवर संग बैठकी’ कार्यक्रम में लेखक विश्वनाथ त्रिपाठी ने उन्हें अज्ञेय के बाद हिंदी का सबसे बड़ा ‘स्टेट्समैन’ कहा था.

उस कार्यक्रम में नामवर सिंह के छोटे भाई काशीनाथ सिंह ने कहा था कि हिंदी आलोचकों में भी ऐसी लोकप्रियता किसी को नहीं मिली जैसी नामवरजी को मिली. वहीं लेखक गोपेश्वर सिंह ने कहा था, ‘नामवर सिंह ने अपने दौर में देश का सर्वोच्च हिंदी विभाग जेएनयू में बनवाया, हमने और हमारी पीढ़ी ने नामवरजी के व्यक्तित्व से बहुत कुछ सीखा है.’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रसिद्ध साहित्यकार नामवर सिंह के निधन पर गहरा शोक प्रकट करते हुए कहा कि ‘दूसरी परंपरा की खोज’ करने वाले नामवर जी का जाना साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति है।

प्रधानमंत्री ने अपने ट्वीट में कहा, ‘हिंदी साहित्य के शिखर पुरुष नामवर सिंह जी के निधन से गहरा दुख हुआ है। उन्होंने आलोचना के माध्यम से हिन्दी साहित्य को एक नई दिशा दी। ‘दूसरी परंपरा की खोज’ करने वाले नामवर जी का जाना साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति दे और परिजनों को संबल प्रदान करे।’

गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने नामवर सिंह के निधन पर शोक प्रकट करते हुए कहा कि प्रख्यात साहित्यकार एवं समालोचक डा. नामवर सिंह के निधन से हिंदी भाषा ने अपना एक बहुत बड़ा साधक और सेवक खो दिया है।

सिंह ने ट्वीट किया, ‘वे आलोचना की दृष्टि ही नहीं रखते थे बल्कि काव्य की वृष्टि के विस्तार में भी उनका बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने हिंदी साहित्य के नए प्रतिमान तय किए और नए मुहावरे गढ़े।’ उन्होंने कहा कि डॉ नामवर सिंह का जाना मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति भी है। विचारों से असहमति होने के बावजूद वे लोगों को सम्मान और स्थान देना जानते थे । उनका निधन हिंदी साहित्य जगत एवं हमारे समाज के लिए एक अपूरणीय क्षति है।

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)