मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में किया था सीआरपीएफ की वेतन बढ़ोतरी का विरोध

पूर्व-अर्धसैनिक बलों के कल्याण संघों के महासचिव रणबीर सिंह कहते हैं कि सेना के किसी निचले रैंकिंग के सैनिक का वेतन उसी रैंकिंग के सीआरपीएफ सैनिक के वेतन से 50 फीसदी अधिक होता है और इसका असर पेंशन पर भी पड़ता है.

पूर्व-अर्धसैनिक बलों के कल्याण संघों के महासचिव रणबीर सिंह कहते हैं कि सेना के किसी निचले रैंकिंग के सैनिक का वेतन उसी रैंकिंग के सीआरपीएफ सैनिक के वेतन से 50 फीसदी अधिक होता है और इसका असर पेंशन पर भी पड़ता है.

कश्मीर में सेना और बीएसएफ के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (फोटो साभार: ट्विटर/नरेंद्र मोदी)
कश्मीर में सेना और बीएसएफ के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (फोटो साभार: ट्विटर/नरेंद्र मोदी)

नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर के पुलवामा में बीते 14 फरवरी को हुए आत्मघाती हमले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के 40 जवान शहीद हो गए थे. इस हमले के बाद सुरक्षा में खामियों और सीआरपीएफ जवानों को मुहैया कराए जा रहे संसाधनों पर सवाल उठने लगे.

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार, सीआरपीएफ के पूर्व अधिकारियों का मानना है कि संकटग्रस्त हालात में अभियान की जिम्मेदारी संभालने के लिए सबसे पहुंचने के बावजूद उनके साथ सेना जैसा व्यवहार नहीं किया जाता है.

पूर्व-अर्धसैनिक बलों के कल्याण संघों के महासचिव रणबीर सिंह के अनुसार, सेना के किसी निचले रैंकिंग के सैनिक का वेतन उसी रैंकिंग के सीआरपीएफ सैनिक के वेतन से 50 फीसदी अधिक होता है और इसका असर पेंशन पर भी पड़ता है.

इसके बावजूद, केंद्र सरकार ने सीआरपीएफ और अन्य केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) के अधिकारियों की वेतन बढ़ोतरी की मांग का विरोध किया था. वेतन बढ़ोतरी की यह मांग यह सुनिश्चित करने के लिए थी कि किसी विशेष समय से सेवा देने वाले सभी अधिकारियों को रैंक की परवाह किए बिना वृद्धि दी गई. हालांकि आईएएस और आईपीएस सहित अन्य सरकारी अधिकारियों को इस तरह की वेतन बढ़ोतरी मिली थी.

सरकारी कर्मचारियों के लिए पदोन्नति के अवसरों की कमी को देखते हुए छठे वेतन आयोग ने साल 2006 में नॉन-फंक्शनल फाइनेंशियल अपग्रेडेशन ’ (एनएफएफयू) का खाका पेश किया था.

शुरुआत में यह केवल ‘संगठित ग्रुप ए सेवाओं’ के लिए आईएएस अधिकारियों पर लागू होता था जिसे बाद में बढ़ाकर आईएफएस और आईपीएस अधिकारियों के लिए भी कर दिया गया. सीएपीएफ चाहता था कि इस योजना का लाभ उन्हें भी मिले लेकिन केंद्र सरकार ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उनकी सेवाएं ‘संगठित ग्रुप ए सेवाओं’ के तहत नहीं आती हैं.

सीएपीएफ के अधिकारियों ने केंद्र सरकार के फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती जिसने उनकी मांगें मान लीं. केंद्र ने मामले का विरोध करते हुए कहा कि सीएपीएफ कर्मियों के लिए एनएफएफयू देने से परिचालन और कार्यक्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.

बार एंड बेंच में सैन्य कानून विशेषज्ञ मेजर नवदीप सिंह लिखते हैं, ‘यह रुख असंगत था, क्योंकि इस तरह के अपग्रेडेशन से कठिन परिस्थितियों में काम करने वाले महिलाओं और पुरुषों को प्रेरणा मिलेगी.

दरअसल, विभिन्न जगहों पर सीएपीएफ के वरिष्ठ अधिकारियों को सीधे उनके तहत काम करने वाले ग्रुप-ए के जूनियर नागरिक अधिकारियों की तुलना में कम वेतन और कम ग्रेड वाली सुविधाएं मिल ही थीं जिसकी वजह से उनका काम प्रभावित होता था.

मेजर सिंह का कहना है कि पदोन्नति और वेतन के मामले में सबसे अधिक भेदभाव का सामना करने वाली सीआरपीएफ और अन्य बलों को अपग्रेडेशन का हिस्सा नहीं बनाए जाने से एनएफएफयू का मूल उद्देश्य पूरा नहीं हो सका.

केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जिसे 5 फरवरी, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया.

जस्टिस एमआर शाह और रोहिंटन नरीमन की पीठ ने कहा, ‘एनएफएफयू दिए जाने का उद्देश्य ग्रुप-ए के उन अधिकारियों राहत देना था जो कई सालों से एक ही पद पर बने रहते थे क्योंकि विभिन्न कारणों से उनकी नियमित पदोन्नति नहीं हो पाती थी. रिकॉर्ड में यह देखा गया है कि सीपीएमएफ को बहुत सी परेशानियां का सामना करना पड़ता है. एक ओर जहां उन्हें पदोन्नति नहीं मिलती है तो दूसरी ओर उन्हें एनएफएफयू देने से भी इनकार कर दिया जाता है.’

बता दें कि दिल्ली हाईकोर्ट में सीएपीएफ कर्मियों को एनएफएफयू देने का विरोध यूपीए सरकार ने किया था जबकि दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का काम मौजूदा मोदी सरकार ने किया.

मेजर सिंह ने कहा, ‘हाईकोर्ट के फैसले के बाद मामले को चुनौती देने की बजाय इस काम को पूरी मानवता और सम्मान के साथ पूरा करना चाहिए था. सुप्रीम कोर्ट का फैसला कुछ हद तक तो सीएपीएफ अधिकारियों में समानता भाव लाएगा.’

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