सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार से कहा, अरावली को कुछ भी किया तो आप मुसीबत में होंगे

हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार ने पंजाब भूमि संरक्षण कानून, 1900 में संशोधन कर दिया था. आरोप है कि इससे हज़ारों एकड़ वन भूमि क्षेत्र रियल इस्टेट की गतिविधियों के लिए खोल दी गई है. स्थानीय नागरिक और सामाजिक कार्यकर्ता इस संशोधन का विरोध कर रहे हैं.

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Chandigarh: Haryana Chief Minister Manohar Lal Khattar addresses a press conference, in Chandigarh, Thursday, Sept 13, 2018. (PTI Photo)(PTI9_13_2018_000093B)
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर. (फोटो: पीटीआई)

हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार ने पंजाब भूमि संरक्षण कानून, 1900 में संशोधन कर दिया था. आरोप है कि इससे हज़ारों एकड़ वन भूमि क्षेत्र रियल इस्टेट की गतिविधियों के लिए खोल दी गई है. स्थानीय नागरिक और सामाजिक कार्यकर्ता इस संशोधन का विरोध कर रहे हैं.

Chandigarh: Haryana Chief Minister Manohar Lal Khattar addresses a press conference, in Chandigarh, Thursday, Sept 13, 2018. (PTI Photo)(PTI9_13_2018_000093B)
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली:  उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को हरियाणा सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर उसने निर्माण की अनुमति देने के लिए कानून में संशोधन करके अरावली की पहाड़ियों या वन क्षेत्र को कोई नुकसान पहुंचाया तो वह खुद मुसीबत में होगी.

हरियाणा के अरावली क्षेत्र में निर्माण की इजाजत देने वाले संशोधित कानून के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार को कड़ी चेतावनी दी है.

जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब हरियाणा सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वह न्यायालय को इस बात से संतुष्ट करेंगे कि पंजाब भूमि संरक्षण कानून, 1900 में संशोधन किसी की मदद के लिए नहीं किए गए हैं.

पीठ ने मेहता से कहा, ‘हमारा सरोकार अरावली को लेकर है. यदि आपने अरावली या कांत एनक्लेव के साथ कुछ किया तो फिर आप ही मुसीबत में होंगे. यदि आप वन के साथ कुछ करेंगे तो आप मुसीबत में होंगे, हम आपसे कह रहे हैं.’

पीठ ने एक मार्च को भूमि संरक्षण कानून में संशोधन करने के लिए हरियाणा सरकार को आड़े हाथ लेते हुए कहा था कि न्यायालय की अनुमति के बगैर सरकार इस पर काम नहीं करेगी.

हरियाणा विधानसभा ने 27 फरवरी को कानून में संशोधन पारित कर दिया था. आरोप है कि इससे हज़ारों एकड़ वन भूमि क्षेत्र रियल इस्टेट की गतिविधियों के लिए खोल दी गई है. ये इलाका एक सदी से भी अधिक समय से इस कानून के तहत संरक्षित था.

राज्य विधानसभा ने विपक्षी दलों के सदस्यों के जबर्दस्त विरोध और बहिष्कार के बीच ये संशोधन पारित किए थे. 

पर्यावरण के लिए काम कर रहे कार्यकर्ताओं और स्थानीय नागरिकों ने भी हरियाणा सरकार की ओर से किए गए संशोधन का विरोध किया है. इन लोगों को डर है कि इस संशोधन से अरावली क्षेत्र- गुड़गांव से फरीदाबाद में हुए अवैध निर्माणों को वैधता मिल जाएगी.

इसमें कांत एनक्लवे भी है, जिसे पिछले साल सितंबर महीने में सुप्रीम कोर्ट ने वन क्षेत्र घोषित कर दिया था. उस वक्त कोर्ट ने आदेश दिया था कि 18 अगस्त 1992 से वहां बने सभी अवैध निर्माणों को गिरा दिया जाए.

इस विपरीत हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा था कि पंजाब भूमि संरक्षण (हरियाणा संशोधन) विधेयक, 2019 समय की मांग है और चूंकि यह कानून बहुत ही पुराना है और इस दौरान काफी बदलाव हो चुके हैं.

सॉलिसीटर जनरल ने शुक्रवार को सुनवाई के दौरान पीठ से कहा कि विधानसभा ने विधेयक पारित किया है लेकिन यह अभी कानून नहीं बना है.

तुषार मेहता ने कहा कि मीडिया की खबरों में दावा किया गया है कि राज्य सरकार द्वारा पारित ये संशोधन रियल इस्टेट डेवलपर्स के लिए किए गए हैं जो सही नहीं है. उन्होंने कहा, ‘मैंने उन्हें (संशोधनों) देखा है. इसमें ऐसा नहीं कहा गया है जैसा कि अखबार कह रहे हैं.’

उन्होंने कहा, ‘यह मामला जब सुनवाई के लिए आएगा तो मैं न्यायालय को संतुष्ट करने में सफल होऊंगा कि ये (संशोधन) किसी की मदद के लिए नहीं हैं.’

मेहता ने कहा कि वह संशोधनों की एक प्रति न्यायालय में पेश करेंगे.

इसके बाद पीठ ने इस मामले को अप्रैल के प्रथम सप्ताह के लिए सूचीबद्ध कर दिया.

इससे पहले, न्यायालय को सूचित किया गया था कि कांत एनक्लेव में कुछ ढांचों को गिराने के शीर्ष अदालत के आदेश के बावजूद राज्य सरकार ने वन क्षेत्र और इस कानून के दायरे में आने वाले क्षेत्रों में निर्माण की अनुमति देने के लिए पंजाब भूमि संरक्षण कानून में संशोधन किए हैं.

एनडीटीवी की ख़बर के अनुसार, इससे पहले भी सुनवाई में हरियाणा सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा था. सुप्रीम कोर्ट ने अरावली क्षेत्र में निर्माण की इजाजत देने वाले संशोधित कानून के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी थी.

इसके साथ ही अरावली क्षेत्र में किसी भी तरह के निर्माण पर रोक के सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अनदेखी करने के लिए हरियाणा सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए न्यायालय की अवमानना की चेतावनी भी दी गई थी.

बता दें, बीते साल अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान के अरावली क्षेत्र में 31 पहाड़ियों के ‘गायब’ हो जाने पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए राजस्थान सरकार को 48 घंटे के भीतर 115.34 हेक्टेयर क्षेत्र में गैरकानूनी खनन बंद करने का आदेश दिया.

साथ ही कोर्ट ने कहा था कि यद्यपि राजस्थान को अरावली में खनन गतिविधियों से करीब पांच हजार करोड़ रुपये की रॉयल्टी मिलती है लेकिन वह दिल्ली में रहने वाले लाखों लोगों की जिंदगी को ख़तरे में नहीं डाल सकता क्योंकि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रदूषण का स्तर बढ़ने की एक वजह इन पहाड़ियों का गायब होना भी हो सकता है.

सुनवाई के दौरान पीठ ने केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति की रिपोर्ट का भी ज़िक्र किया जिसमें कहा गया है कि भारतीय वन सर्वेक्षण द्वारा लिए गए 128 नमूनों में से 31 पहाड़ियां गायब हो गई हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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