समझौता एक्सप्रेस विस्फोट: अदालत ने कहा, सबूतों के अभाव में गुनहगारों को सजा नहीं मिल पाई

एनआईए अदालत के जज जगदीप सिंह ने अपने फैसले में कहा, 'मुझे गहरे दर्द और पीड़ा के साथ फैसले का समापन करना पड़ रहा है क्योंकि विश्वसनीय और स्वीकार्य साक्ष्यों के अभाव की वजह से इस जघन्य अपराध में किसी को गुनहगार नहीं ठहराया जा सका.'

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New Delhi: **FILE** File photo of Mecca Masjid blast accused Swami Aseemanand who was acquitted by a special NIA court in Hyderabad on Monday. PTI Photo (PTI4_16_2018_000050B)
New Delhi: **FILE** File photo of Mecca Masjid blast accused Swami Aseemanand who was acquitted by a special NIA court in Hyderabad on Monday. PTI Photo (PTI4_16_2018_000050B)

एनआईए अदालत के जज जगदीप सिंह ने अपने फैसले में कहा, ‘मुझे गहरे दर्द और पीड़ा के साथ फैसले का समापन करना पड़ रहा है क्योंकि विश्वसनीय और स्वीकार्य साक्ष्यों के अभाव की वजह से इस जघन्य अपराध में किसी को गुनहगार नहीं ठहराया जा सका.’

New Delhi: **FILE** File photo of Mecca Masjid blast accused Swami Aseemanand who was acquitted by a special NIA court in Hyderabad on Monday. PTI Photo (PTI4_16_2018_000050B)
स्वामी असीमानंद (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्लीः समझौता एक्सप्रेस विस्फोट मामले में स्वामी असीमानंद और तीन अन्य आरोपियों को बरी करने वाली पंचकुला की विशेष अदालत ने कहा कि विश्वसनीय और स्वीकार्य साक्ष्यों के अभाव की वजह से इस जघन्य अपराध के किसी गुनहगार को सजा नहीं मिल पाई.

इस मामले में चारों आरोपियों स्वामी असीमानंद, लोकेश शर्मा, कमल चौहान और राजिंदर चौधरी को अदालत ने बीते 20 मार्च को बरी कर दिया गया था.

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) अदालत के जज जगदीप सिंह ने अपने फैसले में कहा, ‘मुझे गहरे दर्द और पीड़ा के साथ फैसले का समापन करना पड़ रहा है क्योंकि विश्वसनीय और स्वीकार्य साक्ष्यों के अभाव की वजह से इस जघन्य अपराध में किसी को गुनहगार नहीं ठहराया जा सका. अभियोजन के साक्ष्यों में निरंतरता का अभाव था और आतंकवाद का मामला अनसुलझा रह गया.’

जज जगदीप सिंह ने 160 पेज के अपने फैसले में  कहा था कि अभियोजक पक्ष ने सबसे मजबूत सबूत अदालत में पेश नहीं किए. उन्होंने कहा कि स्वतंत्र गवाहों की कभी जांच नहीं की गई.

उन्होंने 28 मार्च को सार्वजनिक किए गए विस्तृत फैसले में कहा, ‘अदालत का फैसला सार्वजनिक धारणा या राजनीति से प्रेरित नहीं होना चाहिए बल्कि इसे मौजूदा साक्ष्यों को तवज्जो देते हुए वैधानिक प्रावधानों और इसके साथ तय कानूनों के आधार पर अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए.’

उन्होंने कहा, ‘संदेह चाहे कितना भी गहरा हो, साक्ष्य की जगह नहीं ले सकता.’

गौरतलब है कि अदालत ने 20 मार्च को नबा कुमार सरकार उर्फ स्वामी असीमानंद, कमल चौहान, राजिंद्र चौधरी और लोकेश शर्मा को बरी कर दिया था. इस विस्फोट में 43 पाकिस्तानी नागरिक, 10 भारतीयों और 15 अज्ञात लोगों सहित 68 लोगों की मौत हो गई थी.

यह विस्फोट 2007 में 18-19 फरवरी की रात को अटारी जाने वाली समझौता एक्सप्रेस में हुआ था. हरियाणा में दिवाना और पानीपत के बीच दो अनारक्षित कोचों में दो विस्फोट हुए थे. दो बम फटे ही नहीं, जिन्हें बाद में बरामद किया गया.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, तीन आरोपियों अमित चौहान (रमेश वेंकट मलहाकर), रामचंद्र काससंगरा और संदीप डांगे को अपराधी घोषित किया गया. एनआईए ने एक अन्य आरोपी सुनील जोशी को इस हमले का मास्टरमाइंड बताया, जिसकी मध्य प्रदेश के दिवास में दिसंबर 2007 में मौत हो गई थी.

जज ने अपने आदेश में कहा, ‘अभियोजक पक्ष के सबूतों में निरंतरता नहीं है और आतंकवाद का यह मामला अनसुलझा ही रह गया. आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता क्योंकि इस दुनिया में कोई भी धर्म हिंसा का पाठ नहीं पढ़ाता. अदालत का फैसला लोगों की भावनाओं और धारणा के आधार पर या राजनीति से प्रेरित नहीं होना चाहिए यह सबूतों के आधार पर होना चाहिए.’

जज ने कहा, ‘मौजूदा मामले में ऐसा कोई सबूत नहीं था कि इन आरोपियों ने इस अपराध को अंजाम दिया है. इस अपराध को अंजाम देने के लिए इन लोगों की मुलाकात और बातचीत को लेकर भी कोई सबूत पेश नहीं किया गया. इन आरोपियों की आपस में कड़ियों को जोड़ने, मुकदमे का सामना करने के लिए किसी तरह के ठोस मौखिक, दस्तावेजी और वैज्ञानिक सबूत को पेश नहीं किया गया. अपराधियों का इस अपराध में शामिल होने के उद्देश्य का कोई सबूत पेश नहीं किया जा सका.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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