सरकार मज़दूरों की सामाजिक सुरक्षा क्यों छीन रही है?

मज़दूरों को न्यूनतम सामाजिक सुरक्षा देने के लिए उनके कार्य क्षेत्र से जुड़े उपक्रमों पर एक उपकर (सेस) लगाया गया था, जिसे सरकार ख़त्म करती जा रही है.

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(फोटो: रॉयटर्स)

मज़दूरों को न्यूनतम सामाजिक सुरक्षा देने के लिए उनके कार्य क्षेत्र से जुड़े उपक्रमों पर एक उपकर (सेस) लगाया गया था, जिसे सरकार ख़त्म करती जा रही है.

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विभिन्न क्षेत्रों के मजदूरों की भलाई की अनेक योजनाओं के लिए पर्याप्त संसाधन प्रायः सरकार स्वयं उपलब्ध नहीं करवा पाती है. इन मजदूरों के स्वास्थ्य को बहुत ख़तरे बने रहते हैं. कम आय के कारण प्रायः उनके पास इलाज के लिए ज़रूरी पैसे भी नहीं होते हैं. अतः मजदूरों को न्यूनतम सामाजिक सुरक्षा देने की राह यह निकाली गई थी कि उनके कार्य क्षेत्र के उपक्रमों पर एक उपकर (सेस) लगा दिया जाए व इस उपकर से प्राप्त धनराशि का उपयोग मजदूरों की सुरक्षा के लिए किया जाए.

इनमें से सबसे अधिक चर्चित उपकर निर्माण कार्यों पर लगा उपकर रहा है, जिससे मजदूरों की भलाई के कार्यों के लिए अब तक लगभग 36,000 करोड़ रुपए प्राप्त हुए हैं पर इसके अतिरिक्त अनेक अन्य रोजगार के क्षेत्रों में भी उपकर लगे हैं.

पिछले वर्ष (2016) में जुलाई में वित्त मंत्रालय ने ऐसे अनेक उपकरों या सेस को हटा दिया जैसे कि डोलोमाईट, लाईमस्टोन, लौह अयस्क, कोयले, माईका, नमक, सिनेमा मजदूरों आदि की भलाई से जुड़ा उपकर. कुछ मजदूरों की भलाई की योजनाएं भी हटा दी गई हैं. अन्य मजदूरों की भलाई योजनाएं चाहे नहीं हटाई गईं पर यह सवाल तो खड़ा हो गया कि यदि उपकर की राशि उपलब्ध ही नहीं होगी तो इन कल्याणकारी योजनाओं के लिए धन उपलब्ध नहीं होगा.

इस उपकर को समाप्त करने वाला आदेश देने से पहले इन क्षेत्रों के मजदूरों व उनके प्रतिनिधियों से ज़रूरी विमर्श नहीं किया गया, जिसके कारण बहुत से मजदूरों को इस बारे में पता भी बहुत देर से चला. इसके बाद सबसे पहले तमिलनाडु के कुछ श्रमिक संगठन सक्रिय हुए और उनकी खोजबीन से पता चला कि उपकरों को हटाने का मामला जीएसटी यानी वस्तु व सेवा कर लाने की तैयारी से जुड़ा है. अतः इन मजदूर संगठनों ने जीएसटी विधेयक (उपकर समाप्ति) पर संयुक्त कार्यवाही समिति की स्थापना की.

इस समिति ने इस वर्ष मार्च में चेन्नई में एक सेमिनार का आयोजन किया, जिसमें कई केंद्रीय व स्थानीय श्रमिक संगठनों के प्रतिनिधियों, क़ानूनविदों व प्रशिक्षित नागरिकों ने मजदूरों की भलाई के कार्यों से जुड़े उपकरों को समाप्त करने या समाप्त करने की संभावना पर गहरी चिंता प्रकट करते हुए इसकी आलोचना की. इसके साथ ही उन्होंने यह चिंता भी व्यक्त की कि कहीं आगे चलकर निर्माण मजदूरों व बीड़ी मजदूरों की भलाई के कार्यों से जुड़े उपकर भी संकट में न पड़ जाएं.

इसी समय के आसपास कुछ सांसदों ने भी इस मामले को उठाया. राज्यसभा सदस्य शरद यादव ने वित्त मंत्री को पत्र लिखकर अनेक क्षेत्रों के मजदूरों की भलाई से जुड़े उपकरों को हटाने पर गहरी चिंता व्यक्त की व इस आदेश को वापस लेने के लिए कहा. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि निर्माण कार्यों से जुड़े मजदूरों की भलाई के कार्यक्रम व इसके लिए उपलब्ध उपकर बने रहने चाहिए.

देश के करोड़ों निर्माण कार्य में लगे मजदूरों की भलाई के लिए उपकर संबंधी क़ानून बनाने के लिए लंबा संघर्ष राष्ट्रीय अभियान समिति निर्माण मजदूर ने किया था. यह संघर्ष 25 वर्ष तक चला था,तब जाकर क़ानून बना था. इस समिति के समन्वयक सुभाष भटनागर ने केंद्रीय श्रम मंत्रालय के एक अधिकारी से इस बारे में बातचीत की तब एक अधिकारी ने उन्हें बताया कि यह उपकर भी समाप्त हो सकता है. सुभाष भटनागर एवं उनके साथियों ने इस बारे में दौड़-धूप शुरू की.

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सुभाष भटनागर का इस बारे में चिंता करना स्वाभाविक था क्योंकि उन्होंने अपना जीवन ही निर्माण मजदूरों की भलाई से संबंधित क़ानून व उपकर लगाने वाले क़ानून को बनवाने के लिए व इसके उचित क्रियान्वयन के लिए लगा दिया है. इन बढ़ती चिंताओं के बीच उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उन्हें सर्जरी के लिए अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा. कुछ स्वास्थ्य सुधार हुआ तो वे फिर इसी कार्य में लग गए व कई संसद सदस्यों से संपर्क करने का प्रयास किया.

उनकी एक चिंता यह है कि श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा के क़ानून के कोड बनाने के बाद निर्माण कार्य में लगे मजदूरों के बोर्ड से मजदूरों के हित के क़ानूनों को क्रियान्वित करवाना और मुश्किल हो सकता है.

एक दूसरे पक्ष का कहना है कि चूंकि कुछ मजदूरों के उपकर का समुचित उपयोग नहीं हो रहा था, इसलिए इन क्षेत्रों से उपकर समाप्त किया जा रहा है. बहुत से क्षेत्रों से उपकर हटाया गया. सभी क्षेत्रों में उपकर के उपयोग की स्थिति एक-सी नहीं थी.

पर जहां उपयोग उचित नहीं हो रहा था वहां ज़रूरत उपकर में सुधार की थी, उपकर हटाने की नहीं थी. मजदूरों के हित के लिए बने क़ानून का उपयोग ठीक से न हो तो इसमें ग़लती सरकार की है मजदूरों की नहीं. पहले उचित क्रियान्वयन न करो व फिर इसका बहाना बनाकर मजदूरों की भलाई का क़ानून ही हटा दिया जाए, तो यह उचित नहीं है.

इसलिए मजदूरों की मांग यह है कि जो उपकर हटाए गए हैं, वे वापस लाए जाएं तथा मजदूरों के हित में उनके उचित उपयोग की व्यवस्था की जाए. आगे भी मजदूरों की भलाई के लिए लगाए गए किसी उपकर को हटाने की तैयारी पर रोक लगाई जाए.

(भारत डोगरा स्वतंत्र पत्रकार हैं, जो कई सामाजिक आंदोलनों का हिस्सा रहे हैं.)

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