दूरदर्शन, आकाशवाणी के महानिदेशक की नियुक्ति का अधिकार अपने पास रखना चाहती थी मोदी सरकार

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने एक मसौदा तैयार किया था, जिसके तहत दूरदर्शन और आकाशवाणी के महानिदेशक की नियुक्ति का अधिकार केंद्र सरकार को मिल जाता लेकिन मंत्रालय ने इस मसौदा विधेयक को कुछ ही दिनों के भीतर वापस ले लिया.

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सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने एक मसौदा तैयार किया था, जिसके तहत दूरदर्शन और आकाशवाणी के महानिदेशक की नियुक्ति का अधिकार केंद्र सरकार को मिल जाता लेकिन मंत्रालय ने इस मसौदा विधेयक को कुछ ही दिनों के भीतर वापस ले लिया.

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केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय. (फोटोः फेसबुक)

नई दिल्लीः केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने एक मसौदा तैयार किया था, जिसके तहत दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो (आकाशवाणी) के महानिदेशकों की नियुक्ति के अधिकार सीधे तौर पर केंद्र सरकार के अधीन हो जाता लेकिन मंत्रालय ने इस मसौदा विधेयक को कुछ ही दिनों के भीतर वापस ले लिया.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, विशेषज्ञों के मुताबिक, प्रसार भारती संशोधन विधेयक 2019 के मसौदे में ऐसे प्रावधान थे कि अगर यह प्रभावी हो जाता तो राष्ट्रीय प्रसारणकर्ताओं की स्वायत्ता समाप्त हो जाती.

साल 1990 में प्रसार भारती अधिनियम के पारित होने के बाद प्रसार भारती की एक स्वायत्त संस्था के तौर पर स्थापना हुई थी.

एक अप्रैल को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने नियुक्ति बोर्ड की स्थापना करने के प्रावधान को हटाकर एक मसौदा विधेयक जारी किया था और दूरदर्शन एवं ऑल इंडिया रेडियो के महानिदेशकों की नियुक्ति के अधिकार की शक्तियां सीधे तौर पर केंद्र सरकार को दे दी थी.

इस मसौदा विधेयक पर जनता का फीडबैक जानने के लिए एक अधिसूचना जारी की गई थी, जिसे मंत्रालय की वेबसाइट पर जारी करने के एक सप्ताह से भी कम समय में हटा दिया गया और आठ अप्रैल को मंत्रालय ने एक और नाटिस जारी करते हुए कहा कि इस मामले को अगले आदेश तक रद्द किया जाता है.

एक अप्रैल को जारी किए गए नोटिस में कहा गया कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय प्रसार भारती अधिनियम 1990 में संशोधन करने की प्रक्रिया में है, जिसका एक ड्राफ्ट नोट अंतर मंत्रालयी चर्चा के लिए केंद्रीय कैबिनेट को भेजा गया था.

इस नोटिस में कहा गया कि सभी संबंधित मंत्रालयों और विभागों से प्रतिक्रिया और टिप्पणी मिलने के बाद प्रसार भारती संशोधन विधेयक 2019 का मसौदा तैयार किया गया था.

इस मसौदे विधेयक के नोट में कहा गया कि प्रसार भारती अधिनियम की धारा नौ के अनुसार सार्वजनिक प्रसारणकर्ता के अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति भर्ती बोर्ड की सलाह के बाद होगी, जिसकी स्थापना अधिनियम की धारा 10 के तहत की गई.

हालांकि प्रसार भारती नियुक्ति बोर्ड (पीबीआरबी) की स्थापना कुछ कारणों से नहीं हो सकी और अब मंत्रालय ने पीबीआरबी की स्थापना नहीं करने और इस अधिनियम की संबद्ध धारा को हटाने का फैसला किया है, जो प्रसार भारती को नियुक्ति बोर्ड की स्थारना करने की शक्ति देता है.

इस नोट में कहा गया, अधिनियम की धारा 10 को हटाने और धारा नौ (पीबीआरबी के जरिए आकाशवाणी और दूरदर्शन के महानिदेशकों और अन्य अधिकारियों की नियुक्तियों का अधिका देने) में संशोधन करने का प्रस्ताव दिया गया ताकि केंद्र सरकार महानिदेशकों की नियुक्ति कर सके और अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए यूपीएससी/एसएससी को सक्षम कर सके.

विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम राष्ट्रीय प्रसारणकर्ताओं की स्वायत्ता को ख़त्म कर देगा. प्रसार भारती के पूर्व सीईओ जौहर सरकार ने कहा कि यह प्रसार भारती की आजादी को पूर्ण रूप से छीन लेगा. उन्होंने कहा कि सरकार ने जानबूझकर इतने वर्षों में पीबीआरबी के गठन की मंजूरी नहीं दी.

प्रसार भारती के चेयरमैन ए. सूर्य प्रकाश ने कहा, ‘मुझे खुशी है कि इन संशोधनों को रद्द कर दिया गया.’