नमो टीवी: नियमों के दुरुपयोग का ऐसा दुस्साहस पहले कभी नहीं किया गया

आखिर टाटा, भारती एयरटेल और ज़ी समूह जैसे एक से अधिक डीटीएच ऑपरेटर्स सिर्फ एक स्पेशल सर्विस चैनल के प्रति इतनी ज़्यादा उदारता क्यों दिखा रहे हैं?

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फोटो साभार: ट्विटर/नरेंद्र मोदी

आखिर टाटा, भारती एयरटेल और ज़ी समूह जैसे एक से अधिक डीटीएच ऑपरेटर्स सिर्फ एक स्पेशल सर्विस चैनल के प्रति इतनी ज़्यादा उदारता क्यों दिखा रहे हैं?

फोटो साभार: ट्विटर/नरेंद्र मोदी
फोटो साभार: ट्विटर/नरेंद्र मोदी

सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने नमो टीवी को लेकर चुनाव आयोग को अपने जवाब में कहा, ‘ब्रांड लोगो के तौर पर प्रधानमंत्री के चित्र वाला ‘नमो टीवी’ सभी डीटीएच प्लैटफॉर्म्स पर चलनेवाला एक ‘स्पेशल सर्विस’ ब्रॉडकास्ट (‘विशेष सेवा’ प्रसारण) चैनल है.

इसलिए इसे सरकार से किसी लाइसेंस या इजाजत की जरूरत नहीं है. लेकिन सूचना और प्रसारण मंत्रालय और मोदी सरकार का जवाब इसके अलावा और हो भी क्या सकता था?

वास्तव में, मंत्रालय वही दोहरा रहा है, जो भाजपा प्रवक्ता टेलीविजन की बहसों में कह रहे हैं. सबसे मनोरंजक यह है कि एक प्रतिनिधि ने यह स्वीकार करते हुए कि उसे यह नहीं पता है कि नमो टीवी का मालिक कौन है, भाजपा की अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला दिया.

यहां तक कि मोदी ने एबीपी टीवी को एक इंटरव्यू में कहा, ‘मुझे इस बात की जानकारी मिली कि कुछ लोगों ने एक चैनल लॉन्च किया है, लेकिन मुझे खुद इसे देखने का समय नहीं मिला है.’

साफ है कि प्रधानमंत्री उस ‘स्पेशल सर्विस चैनल’ की पूरी तरह से जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं दिख रहे हैं, जो लोगो के तौर पर उनकी तस्वीर का इस्तेमाल करते हुए चल रहा है, जिसको उनकी छवि के प्रसार के लिए शुरू किया है.

इस उद्योग के सूत्रों का कहना है कि यह पहली बार है कि कोई स्पेशल सर्विस चैनल टाटा स्काई, एयरटेल और डिश टीवी समेत कई डीटीएच प्लेटफॉर्म्स पर एक साथ लॉन्च किया गया है. इसमें से आखिरी चैनल के मालिक राज्यसभा सांसद सुभाष चंद्रा हैं.

सवाल उठता है कि आखिर टाटा, भारती एयरटेल और जी समूह जैसे एक से अधिक डीटीएच ऑपरेटर्स सिर्फ एक स्पेशल सर्विस या एडवरटाइजिंग (विज्ञापन) चैनल के प्रति इतनी अधिक उदारता क्यों दिखा रहे हैं?

इन डीटीएच प्लैटफॉर्म्स पर स्पेशल सर्विस स्लॉट्स का इस्तेमाल प्रायः मालिकों द्वारा अपने कार्यक्रमों, मसलन टाटा स्काई पर कुकिंग या एक्टिंग कक्षाओं के प्रचार या रिटेल विज्ञापन के दूसरे रूपों के लिए किया जाता है. टाटा स्काई के डीटीएच प्लैटफॉर्म पर इन्हें ‘एक्टिव सर्विसेज’ कहा जाता है.’

अपने सर्विस प्लैटफॉर्म पर किसी थर्ड पार्टी- जैसा कि नमो टीवी के साथ है- को अपने खुद के ब्रांड लोगो (मोदी के चेहरे) का इस्तेमाल करने की इजाजत देना भी असामान्य है. इस रियायत को सत्ताधारी दल पर खास मेहरबानी के तौर पर देखा जा सकता है.

अब भाजपा का यह दावा है कि नमो टीवी ऐसे ‘स्पेशल सर्विसेज’ का हिस्सा है, इसलिए चैनल को सैटेलाइट के जरिए अपलिंक-डाउनलिंक के लिए लाइसेंस की जरूरत नहीं है. सूचना प्रसारण मंत्रालय से उन इजाजतों की जरूरत नहीं है, जो समाचार चैनलों के लिए अनिवार्य तौर पर जरूरी होते हैं.

दिलचस्प यह है कि टाटा स्काई ने अपनी पहली आधिकारिक प्रतिक्रिया में नमो टीवी का उल्लेख एक हिंदी समाचार सेवा (हिंदी न्यूज सर्विस) के तौर पर किया. लेकिन इसे जल्दी ही वापस ले लिया गया और तब हमें बताया गया कि यह एक स्पेशल सर्विस या विज्ञापन (एडवरटाइजिंग) चैनल है.

उद्योग के अधिकारियों ने द वायर को बताया कि एक विज्ञापन चैनल के तौर पर भी यह भारतीय केबल टीवी अधिनियम 1995 के तहत आता है, जिसमें केबल टीवी द्वारा प्रसारित किए जानेवाले विज्ञापन कार्यक्रमों के लिए नियम हैं.

भारतीय केबल टीवी संघ के अध्यक्ष रूप शर्मा के मुताबिक विज्ञापन कार्यक्रमों की सामग्री पर भी पाबंदियां हैं. इस बात की जांच की जानी चाहिए कि क्या पक्षपातपूर्ण राजनीतिक सामग्री का प्रसारण करनेवाला एक विज्ञापन चैनल केबल टीवी नेटवर्क अधिनियम के अनुरूप है या नहीं?

उद्योग जगत के सूत्रों का यह भी कहना है कि आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद टीवी चैनलों पर अपने संदेश का प्रसारण करने के लिए किसी राजनीतिक दल द्वारा खरीदे गए 30 सेकेंड के स्लॉट के लिए भी चुनाव आयोग के प्रमाण-पत्र की जरूरत होती है. यानी अगर कोई राजनीतिक पार्टी किसी चैनल पर विज्ञापन के 10 स्लॉट खरीदती है, तो इसे हर स्लॉट के लिए चुनाव आयोग के प्रमाण-पत्र की जरूरत होगी.

आयोग को इस बात की जांच जरूर करनी चाहिए कि नमो टीवी पर भी यही नियम लागू होने चाहिए या नहीं क्योंकि वास्तव में यह 24 घंटे नरेंद्र मोदी और भाजपा का प्रचार करने वाला चैनल है.

नमो टीवी को लेकर कानूनी और परिभाषागत भ्रम पैदा होने का एकमात्र कारण यह है कि अब तक किसी ने भी मौजूदा प्रसारण नियमों की कमजोरियों का गलत फायदा इतने बड़े पैमाने पर नहीं उठाया है. अपारदर्शिता का आलम यह है कि किसी को यह तक मालूम नहीं है कि नमो टीवी की सामग्री का स्रोत क्या है?

जहां तक नियमों का सवाल है, ट्राई के पूर्व अध्यक्ष राहुल खुल्लर ने 2014 में यह चेताया था कि भारत भर में हजारों स्थानीय चैनल सूचना प्रसारण मंत्रालय से लाइसेंस या इजाज़त के बगैर चल रहे थे. ये चैनल अंडरग्राउंड फाइवर नेटवर्क के द्वारा स्थानीय कंटेंट को आगे बढ़ा रहे थे और उन पर कोई नियम लागू नहीं किया जा रहा था.

खुल्लर ने द वायर  को बताया, ‘मैंने इन चैनलों के लिए कुछ दिशा-निर्देश बनाने का सुझाव दिया था, जब मैंने महसूस किया कि उत्तर-पूर्व और जम्मू-कश्मीर के संवेदनशील इलाकों में ऐसे चैनलों की बड़ी संख्या अस्तित्व में आ गई थी.

खुल्लर ने अकाली दल, अन्नाद्रमुक, द्रमुक जैसी क्षेत्रीय पार्टियों से नजदीकी तौर पर जुड़े समाचार और समसामयिक घटनाओं के चैनलों के चैनलों के खिलाफ सक्रिय तरीके से आवाज उठाई थी. लेकिन ट्राई की सिफारिशों को अनसुना कर दिया गया.

आज ऐसा लगता है कि भाजपा भी अपना चैनल चलानेवाली पार्टियों की जमात में शामिल हो गई है. यह अलग बात है कि ऐसा उसने पिछले दरवाजे से किया है. अपनी पार्टी को नियमों की कमजोरी का इस तरह से फायदा उठाने देना प्रधानमंत्री की छवि को खराब करने वाला है.

इससे भी बढ़कर मोदी ने एक तरह से यह संकेत दिया कि कुछ उत्साही लोगों ने यह चैनल शुरू किया है जिसे देखने का उन्हें वक्त नहीं मिला. नियमों का इस तरह से दुरुपयोग होने देना सरकार के मुखिया के पद की नैतिक गरिमा के खिलाफ है, क्योंकि नीति-निर्माता के तौर पर उनका काम ऐसी कमजोरियों को दूर करना होता है.

प्रधानमंत्री जी, आपका जवाब गले से नीचे उतरने वाला नहीं है.

नोट: 7 अप्रैल को इस लेख के अंग्रेज़ी में प्रकाशन के बाद चुनाव आयोग ने 10 अप्रैल को नमो टीवी पर प्रतिबंध लगाने की बात कही थी, जिसके बाद भाजपा ने यह स्वीकार किया कि नमो टीवी, नमो ऐप का एक फीचर है जो भाजपा की आईटी सेल द्वारा संचालित है. 11 अप्रैल को चुनाव आयोग ने कहा कि चैनल का सारा कंटेंट फौरन हटाया जाए क्योंकि इसे आयोग द्वारा सर्टिफिकेट नहीं दिया गया है. साथ ही आगे से जो भी रिकॉर्डेड कार्यक्रम प्रसारित किए जाएं उन्हें दिल्ली चुनाव आयोग की मीडिया सर्टिफिकेशन और मॉनिटरिंग कमेटी द्वारा प्रमाणित होना चाहिए. 

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