… तो देश को 1977 में ही मिल जाता पहला दलित प्रधानमंत्री

चुनावी बातें: 1977 के लोकसभा चुनाव में जीत के बाद जनसंघ के सांसद चाहते थे कि बाबू जगजीवन राम के रूप में पहला दलित प्रधानमंत्री देकर देश को नया संदेश दिया जाए, लेकिन राजनीतिक जटिलताओं के चलते ऐसा हो न सका.

/

चुनावी बातें: 1977 के लोकसभा चुनाव में जीत के बाद जनसंघ के सांसद चाहते थे कि बाबू जगजीवन राम के रूप में पहला दलित प्रधानमंत्री देकर देश को नया संदेश दिया जाए, लेकिन राजनीतिक जटिलताओं के चलते ऐसा हो न सका.

Babu Jagjivan Ram Wikipedia
बाबू जगजीवन राम (फोटो साभार: विकिपीडिया)

केआर नारायणन के रूप में देश को पहला दलित राष्ट्रपति तो 25 जुलाई, 1997 को ही मिल गया था, लेकिन पहले दलित प्रधानमंत्री का उसका इंतजार अभी तक खत्म नहीं हुआ है.

यह तब है, जब बसपा सुप्रीमो मायावती खुद वर्षों पहले तक ‘दलित की बेटी’ को प्रधानमंत्री बनाने के नाम पर ही वोट मांगा करती थीं. उनका नारा था-‘यूपी हुई हमारी है, अब दिल्ली की बारी है’ और उसे लगाने वाले कार्यकर्ताओं के जोशोखरोश को देखकर लगता था कि देश अपने पहले दलित प्रधानमंत्री से बस कुछ ही कदम दूर है.

लेकिन मतदाताओं ने उनके अरमानों पर ऐसा पानी फेरा कि न यूपी उनकी रह पाई और न ही दिल्ली हाथ आई. हालांकि अभी भी न वे नाउम्मीद हुई हैं और न उनके समर्थक.

बहरहाल, इस सिलसिले में सबसे दिलचस्प जानकारी यह है कि देश अपने पहले दलित प्रधानमंत्री के सबसे ज्यादा निकट 1977 के लोकसभा चुनाव में पहुंचा था. दूसरे शब्दों में कहें तो उसे पाते-पाते रह गया था!

पा जाता तो उसे अपना पहला दलित प्रधानमंत्री पहले दलित राष्ट्रपति से पहले मिल जाता. दरअसल, उस चुनाव में जनता पार्टी को बहुमत मिला, तो उसके संसदीय दल के नेता यानी प्रधानमंत्री का चुनाव विकट समस्या बन गया.

कारण यह कि वह कई कांग्रेस विरोधी दलों के विलय से बनी थी और उन सबके अपने-अपने दावे थे. अंततः प्रधानमंत्री के चयन की जिम्मेदारी उसके शिल्पकारों लोकनायक जयप्रकाश नारायण और जेबी कृपलानी को सौंपी गई तो तीन दावेदार सामने आये- मोरारजी देसाई, बाबू जगजीवन राम और चौधरी चरण सिंह.

मालूम हो कि पार्टी के जनसंघ घटक के सबसे ज्यादा, कुल 93 सांसद चुनकर आये थे लेकिन उसके नेताओं ने खुद को इस दौड़ से अलग रखा था. उसके बाद सबसे ज्यादा 71 सांसद चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व वाले भारतीय क्रांति दल के थे, जबकि बाबू जगजीवन राम की कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी और सोशलिस्ट पार्टी दोनों के 28-28 सांसद थे.

सोशलिस्ट पार्टी के जॉर्ज फर्नांडीज और मधु दंडवते तो जगजीवन राम के पक्ष में थे ही, जनसंघ के सांसद भी चाहते थे कि पहला दलित प्रधानमंत्री देकर देश को नया संदेश दिया जाए.

लालकृष्ण आडवाणी व्यक्तिगत रूप से मोरारजी के पक्ष में थे. चूंकि मोरारजी देसाई और चौधरी चरण सिंह की आपस में कतई नहीं बनती थी इसलिए संभावना थी कि दोनों ही तीसरे, जगजीवन राम के नाम पर सहमत हो जाएंगे. लेकिन चौधरी चरण सिंह को मोरारजी तो गवारा नहीं ही थे, जगजीवन राम को लेकर भी एतराज थे.

सबसे बड़ा यह कि इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल की बैठक में इमरजेंसी का प्रस्ताव खुद जगजीवन राम ने ही पेश किया था और वे उसका सुख भोगने के बाद तब कांग्रेस से बाहर आए थे, जब चुनाव की घोषणा हो गई और कांग्रेस का सूपड़ा साफ होने की संभावना जगजाहिर हो गई.

अंततः वे बीमार होकर अस्पताल चले गए और पार्टी की बैठकों आदि में भाग लेना बंद कर दिया. फिर भी बात अपने पक्ष में पलटती नहीं दिखी तो उन्होंने अस्पताल से ही लोकनायक को पत्र लिखकर मोरारजी का समर्थन कर दिया.

इसके बाद मोरारजी का नाम घोषित करते हुए कृपलानी ने कहा कि ऐसा करते हुए उन्हें कतई अच्छा नहीं लग रहा, परंतु कोई और विकल्प नहीं है. दो प्रधानमंत्री हो सकते तो हम जगजीवन राम को अवश्य चुनते.

प्रसंगवश, आगे चलकर भाजपा ने प्रधानमंत्री न सही, 1995 में मायावती के रूप में देश को पहला दलित मुख्यमंत्री दिया. तब मायावती की उम्र केवल 39 साल थी और वे उत्तर प्रदेश की तब तक की सबसे कमउम्र मुख्यमंत्री थीं.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)

ऐसे ही और चुनावी क़िस्से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq