मोदी सरकार के दावे और उनकी ज़मीनी हक़ीक़त पर विशेष सीरीज: किशोर लड़कियों को सशक्त बनाने के लिए लॉन्च की गई किशोरी शक्ति योजना को मोदी सरकार ने एक अप्रैल 2018 को बंद कर दिया. अब इस दिशा में सबला योजना चलाई जा रही है लेकिन इस योजना के तहत लाभार्थियों की संख्या छह गुना कम हो गई.
नई दिल्ली: साल 2006-07 में किशोरवय लड़कियों को सशक्त बनाने के लिए एक योजना लॉन्च की गई थी. इस योजना का नाम था ‘किशोरी शक्ति योजना’. भारत जैसे विकासशील देश के लिए यह एक आवश्यक और शानदार कदम था.
यह योजना असल में आईसीडीएस (एकीकृत बाल विकास कार्यक्रम) का ही विस्तार थी. इस योजना के तहत 11 से 18 साल की लड़कियों को लक्षित किया गया था और इसमें 6118 ब्लॉक को शामिल किया गया था.
इस योजना का मकसद था कि लड़कियों को शारीरिक और मानसिक तौर पर मजबूत बनाया जाए, उन्हें स्कूल जाने के लिए प्रेरित किया जाए, वे अपने सामाजिक वातावरण को समझ सकें और उन्हें एक बेहतर नागरिक बनाया जा सके.
लेकिन क्या आपको पता है कि मोदी सरकार ने एक अप्रैल 2018 को इस योजना को बंद कर दिया और इसकी जगह ‘स्कीम फॉर अडॉलेसेंट गर्ल’ यानी कि एसएजी लॉन्च किया. यह जानना जरूरी है कि किशोरी शक्ति योजना को लेकर मोदी सरकार क्या कहती है.
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से मिले आरटीआई जवाब के अनुसार, 2010 में पूरे देश में इस योजना के तहत (किशोरी शक्ति योजना) 6118 प्रोजेक्ट चल रहे थे. इसका अर्थ है कि सभी ब्लॉक में कम से कम एक प्रोजेक्ट चल रहा था.
साल 2010 में ‘सबला’ या ‘राजीव गांधी स्कीम फॉर एडॉलेसेंट गर्ल’ के लॉन्च होने के बाद, इन प्रोजेक्ट्स की संख्या में कमी आई और यह 6118 से घटकर 4194 हो गई.
यानी, किशोरी शक्ति योजना से करीब 33 फीसदी ब्लॉक को बाहर कर दिया गया और संभवत: उसे ‘सबला’ योजना के तहत भेज दिया गया, जिसमें यूपी के 22, एमपी के 15, बिहार के 12, महाराष्ट्र के 11 और राजस्थान के 10 जिले शामिल हैं.
‘सबला’ योजना के क्रियान्वयन के बाद, साल 2010-11 में सरकार ने इस योजना पर 3365 करोड़ खर्च किए गए और 24.81 लाख लड़कियों को कौशल विकास के लिए प्रशिक्षण दिया गया.
साल 2014-15 के दौरान जब मोदी सरकार केंद्र की सत्ता में आ चुकी थी, सरकार ने लड़कियों को कौशल विकास प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए अपने पहले बजट में किशोरी शक्ति योजना पर किया जाने वाला खर्च कम कर के 1489 करोड़ रुपये कर दिया.
दिलचस्प रूप से किशोरी शक्ति योजना पर विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा किया जाने वाला खर्च 1602 करोड़ रुपये था. इस पैसे से लगभग 15.18 लाख लड़कियों को कौशल विकास प्रशिक्षण मिल सका.
साल 2017-18 में किशोरी शक्ति योजना को हटाने से पहले भारत सरकार ने 6.28 लाख लड़कियों को कौशल विकास प्रदान करने के लिए केवल 464 करोड़ रुपये ही आवंटित किए गए.
क्या है सबला स्कीम की स्थिति
जैसा कि हमने पहले ही बताया, 2010 में सबला स्कीम को भी समान लक्ष्य के साथ ही शुरू किया गया था, इसलिए हमने यह जानने की कोशिश की कि आखिर इस योजना से क्या बदलाव आ सका.
इस स्कीम को दो भागो में बांटा गया था. पहला- गर्ल टू गर्ल अप्रोच फॉर द एज ग्रुप 11-15, जिनके परिवार की आय प्रति वर्ष 6400 रुपये से कम है. वहीं, दूसरी योजना के तहत 11-18 वर्ष की आयु की सभी किशोर लड़कियों तक पहुंचना था.
इसके तहत सेवाओं की एक एकीकृत पैकेज बनाई गई थी. इसके तहत, प्रतिदिन 600 कैलोरी, 18-20 ग्राम प्रोटीन, माइक्रोन्यूट्रिएंट प्रतिदिन देना शामिल है. योजना के तहत एक वर्ष में 300 दिनों तक यह सुविधा देनी थी.
भाजपा सरकार के सत्ता में आने से पहले सबला और किशोरी शक्ति योजना चल रही थी. लेकिन, नई सरकार ने एक अप्रैल 2018 को किशोरी शक्ति योजना को ही बंद कर दिया. 14 नवंबर 2018 को मिले आरटीआई जवाब के मुताबिक, सरकार ने 17 नवंबर 2017 से इस योजना के तहत लाभार्थियों की उम्र सीमा 18 से घटा कर 14 कर दी थी.
16 अगस्त 2018 को दिए एक अन्य उत्तर में, मंत्रालय ने उल्लेख किया है कि 2014-15 के दौरान, वर्तमान सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के बीच 610.32 करोड़ की राशि का वितरण किया था, जबकि उन राज्यों ने 110फीसदी पैसे यानी 674.24 करोड़ की राशि का उपयोग किया था.
लेकिन धीरे-धीरे इस मद में अनुदान की मात्रा साल दर साल कम होती गई. 2017-18 में कुल अनुदान 446 करोड़ पर आ गया था. इसमें से केवल 23.54 करोड़ रुपये युवा लड़कियों के कौशल विकास के लिए खर्च किए गए.
साल 2013-14 के दौरान लाभार्थियों की संख्या 35.07 लाख थी. जब नरेंद्र मोदी सत्ता में आए तो यह संख्या 6.28 लाख तक सिमट गई. 2013-14 की तुलना में लगभग छठवां हिस्सा. क्या यही स्किल इंडिया था, जिसके विज्ञापन पर भारी-भरकम खर्च किया गया है?
(मोदी सरकार की प्रमुख योजनाओं का मूल्यांकन करती किताब वादा-फ़रामोशी का अंश विशेष अनुमति के साथ प्रकाशित. आरटीआई से मिली जानकारी के आधार पर यह किताब संजॉय बासु, नीरज कुमार और शशि शेखर ने लिखी है.)
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