क्या मोदी-शाह ‘विनाश काले विपरीत बुद्धि’ को चरितार्थ कर रहे हैं?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण उनके समर्थकों में हिट हो सकते हैं मगर तटस्थ, विरोधी और नए मतदाताओं को लुभाने वाले कतई नहीं हैं.

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नई दिल्ली स्थित भाजपा मुख्यालय पर 8 अप्रैल 2019 को भाजपा का घोषणापत्र जारी करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह. (फोटो: रॉयटर्स)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण उनके समर्थकों में हिट हो सकते हैं मगर तटस्थ, विरोधी और नए मतदाताओं को लुभाने वाले कतई नहीं हैं.

नई दिल्ली स्थित भाजपा मुख्यालय पर 8 अप्रैल 2019 को भाजपा का घोषणापत्र जारी करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह. (फोटो: रॉयटर्स)
नई दिल्ली स्थित भाजपा मुख्यालय पर 8 अप्रैल 2019 को भाजपा का घोषणापत्र जारी करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह. (फोटो: रॉयटर्स)

नरेंद्र मोदी के भाषण पहेली बनते जा रहे हैं. समझ नहीं आ रहा है कि वे चुनाव को ले कर घबराए हुए हैं या अपने को जीता मान बैठ इस आत्मविश्वास में हैं कि वे कुछ भी बोलें लेकिन उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा.

हां, विरोधी नेताओं को जेल में डालने, राजीव गांधी को भ्रष्टाचारी नंबर वन कहने, कांग्रेस उनको मरवा देना चाह रही जैसे वाक्यों से मुझे लगता है कि उनकी हालत विनाश काले विपरित बुद्धि वाली हो गई है. पर फिर ख्याल आता है कि मोदी-शाह तो पल-पल जमीनी फीडबैक ले रहे होंगे. ऐसे में ये ममता बनर्जी, शरद पवार, मायावती, राहुल गांधी आदि सबसे इतना भारी पंगा कैसे ले रहे हैं?

सचमुच बतौर व्यक्ति, बतौर प्रधानमंत्री, बतौर राष्ट्रीय नेता के नाते नरेंद्र मोदी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में जैसा बोला है वह उनके व्यक्तित्व-कृतित्व में पुण्यता जोड़ने वाला नहीं है बल्कि उसे काला बनाने वाला है. 72 साल के आजाद भारत के इतिहास में किस प्रधानमंत्री ने ऐसे वाक्य बोले हैं जैसे नरेंद्र मोदी ने चुनावी अधिसूचना के बाद बोले हैं?

नरेंद्र मोदी को इतना तो ख्याल होना चाहिए कि आने वाली पीढ़ियों में बतौर प्रधानमंत्री उनके मनसा, वाचा, कर्मा में उनके वाक्य भी बानगी होंगे. तात्कालिकता में जनता कितनी ही मूर्खता में रहे, उसे कितना ही मूर्ख बना लें लेकिन भविष्य तो मोदी द्वारा देश को मूर्खताओं में ले जाने और उसके लिए बोले जुमलों का मोदीनामा लिए होगा.

मोदी कैसे प्रधानमंत्री थे और उन्होंने वोट, सत्ता के लिए जनता को बांटने, विपक्ष को देशद्रोही, पाकिस्तानी एजेंट बताने, संस्थाओं के दुरूपयोग में कैसे-क्या किया यह इतिहास तो लिखा ही जाना है. कैसे ये बातें इतिहास में विलुप्त हो सकती हैं कि मोदी सेना को वोट का कटोरा बना कर वोट मांगने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री थे!

उन्होंने चुनाव काम, उपलब्धियों पर नहीं लड़ा बल्कि गालियों, हिंदुओं को डरा कर, विपक्ष को धमका कर लड़ा!

मोदी का यह ताजा बयान मूल सवाल पर लौटाता है कि उन्हें क्यों यह कहने की जरूरत हुई कि राजीव गांधी उर्फ मिस्टर क्लीन का जीवन भ्रष्टाचारी नंबर वन के रूप में खत्म हुआ. ध्यान रहे राजीव गांधी के ऊपर बोफोर्स तोप घोटाले का जो आरोप लगा था वह लंबी जांच, वाजपेयी सरकार की कानूनी कार्रवाइयों के बावजूद सही साबित नहीं हुआ था.

फिर अभी जब नरेंद्र मोदी-अमित शाह के पास राहुल, सोनिया, प्रियंका, रॉबर्ट वाड्रा का पूरा परिवार निशाने पर है तो उसी पर टिके रहने के बजाय एक दिवंगत प्रधानमंत्री पर बोलने की मोदी को भला क्यों जरूरत हुई?

एक वजह शायद राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा का घबराना नहीं है. भाई-बहन दोनों जिस हिम्मत से चुनाव लड़ रहे हैं उससे मोदी-शाह निश्चित ही हैरान हैं. राहुल गांधी ने गजब की हिम्मत दिखाई है. राफेल सौदे में नरेंद्र मोदी को चोर बताने और साथ में अंबानियों-अदानियों-खरबपतियों के खिलाफ जो साहस राहुल गांधी ने दिखाया है वह बेमिसाल है.

सोचें, यदि नरेंद्र मोदी, चौकीदार चोर का हल्ला नहीं होता और राहुल गांधी से ले कर ममता बनर्जी जनसभाओं में चौकीदार चोर के जनता से नारे नहीं लगवा रहे होते तो इस चुनाव में नरेंद्र मोदी को घेरने वाला मुद्दा क्या होता? राहुल गांधी को दस तरह से डराने, दबाने की कोशिश हुई लेकिन राहुल ने रत्ती भर चिंता नहीं की. आज भी पूरे देश में, विपक्ष की जनसभाओं में, राहुल-ममता बनर्जी से ले कर राज ठाकरे सभी की जनसभाओं में चौकीदार चोर है का नारा गूंजता रहता है.

तब नरेंद्र मोदी क्यों राजीव गांधी उर्फ मिस्टर क्लीन को भ्रष्टाचारी नंबर वन बोल कर बदला नहीं लें? इसलिए राहुल गांधी और ममता बनर्जी से नरेंद्र मोदी बदला लेते हुए दिख रहे हैं. पर क्या बात इतनी सीधी है? मैं नहीं मानता. मैं मानता हूं कि वक्त खराब है, विनाशकाले विपरित बुद्धि है इसलिए मोदी-शाह एक के बाद एक गलती कर रहे हैं.

24 मार्च से ले कर अब तक नरेंद्र मोदी ने जितने भाषण दिए, जैसा नरेटिव बनाया उससे उनके प्रति मन ही मन उन सबमें खुन्नस, एलर्जी बनी होगी जिनका 23 मई के बाद मोदी-शाह को साथ चाहिए. मोदी के भाषण भक्तों में हिट हो सकते हैं मगर तटस्थ मतदाताओं, विरोधी मतदाताओं को लुभाने, उनके दिल-दिमाग से नाराजगी मिटाने वाले, नए वोट पटाने वाले कतई नहीं है.

मोदी-शाह के भाषण और प्रचार शोरगुल का एक ऐसा कमरा या चैंबर है जिसके इको से, उसी का हल्ला सुन-सुन कर मोदी-शाह तीर मार लेने की खामोख्याली में हैं. खुद के बजवाएं नगाड़ों से ही जीत के मुगालते में हैं.

यदि यह गलत है तो मानना होगा कि मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बनना तयशुदा मान रहे हैं. नरेंद्र मोदी को आगे की चिंता नहीं है. नरेंद्र मोदी ने जितनी तरह से गालियां, धमकियां विरोधी नेताओं को दी है उसका अर्थ है कि उनमें तनिक भी चिंता नहीं है कि यदि उन्हे 200 से कम सीटें मिली तो उनको कौन समर्थन देगा?

यह चिंता नहीं है कि यदि वापस प्रधानमंत्री नहीं बने तो अगली सरकार उनकी और अमित शाह की क्या दशा करेगी? फिर सवाल उठता है जब ऐसा है तो भला राजीव गांधी पर भ्रष्टाचारी नंबर वन की गाली चस्पाने की प्रधानमंत्री पद को जरूरत क्यों हुई?

इस बिंदु पर फिर लगता है मोदी में घबराहट है. खराब वक्त में विनाश काले विपरीत बुद्धि है. यदि नरेंद्र मोदी जीत तयशुदा मान रहे होते तो न सेना के कटोरे की जरूरत होनी थी और न मतदाताओं को मूर्ख बनाने के लिए दस तरह के जुमले बोलने थे. आप भी सोचिए मोदी किस मनोदशा में हैं.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

यह लेख मूल रूप से नया इंडिया वेबसाइट पर प्रकाशित हुआ है.

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