मध्य प्रदेश: भोपाल में हिंदुत्व का हवन, ज़रूरी मुद्दे स्वाहा

ग्राउंड रिपोर्ट: भोपाल लोकसभा सीट से भाजपा ने मालेगांव बम धमाकों की आरोपी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के ख़िलाफ़ चुनाव मैदान में उतारा है.

भोपाल से भाजपा की उम्मीदवार प्रज्ञा ठाकुर और कांग्रेस के उम्मीदवार दिग्विजय सिंह. (फोटो: पीटीआई)

ग्राउंड रिपोर्ट: भोपाल लोकसभा सीट से भाजपा ने मालेगांव बम धमाकों की आरोपी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के ख़िलाफ़ चुनाव मैदान में उतारा है.

भोपाल से भाजपा की उम्मीदवार प्रज्ञा ठाकुर और कांग्रेस के उम्मीदवार दिग्विजय सिंह. (फोटो: पीटीआई)
भोपाल से भाजपा की उम्मीदवार प्रज्ञा ठाकुर और कांग्रेस के उम्मीदवार दिग्विजय सिंह. (फोटो: पीटीआई)

यूं तो देश में 543 लोकसभा सीटें हैं जिन पर कि चुनाव हो रहे हैं. लेकिन पूरे देश की नजर मध्य प्रदेश की भोपाल लोकसभा सीट पर टिकी है. न तो यहां से वाराणसी की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उम्मीदवार हैं और न ही केरल के वायनाड की तरह राहुल गांधी. लेकिन फिर भी इस सीट की इतनी चर्चा है तो कारण अलग हैं.

कांग्रेस ने प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को यहां से मैदान में उतारा है, तो भाजपा ने मालेगांव बम धमाकों के आरोप में नौ साल जेल में रह कर आईं साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को लाकर उनके सामने खड़ा कर दिया है.

भोपाल की लड़ाई महज एक लोकसभा सीट से बढ़कर दो विचारधाराओं की हो गई है. जिसके केंद्र में हिंदुत्व ने जगह बना ली है.

बीते पांच सालों में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की केंद्र सरकार में देशभर में कट्टर हिंदुत्व को बढ़ावा मिला है. अगर भोपाल सीट की बात करें तो यहां मुद्दों में सड़क, पानी, बिजली, रोजगार, खेती-किसानी, ओद्योगिक विकास आदि शामिल नहीं हैं. मुद्दों में केवल हिंदुत्व समाया है.

एक तरफ प्रज्ञा ठाकुर हैं जो अपने कट्टर हिंदुत्ववादी विचारधारा के सहारे दिग्विजय सिंह पर हिंदू/भगवा आतंकवाद की गलत परिभाषा खड़ी करने का आरोप लगा रही हैं, 26/11 आतंकी हमलों में शहीद महाराष्ट्र के पुलिस अधिकारी हेमंत करकरे को दिग्विजय के इशारे पर खुद को टार्चर करने की कहानी सुना रही हैं, करकरे की मौत अपने श्राप से होना ठहरा रही हैं और बाबरी मस्जिद के ढांचे को अपने हाथों से गिराना उपलब्धि बता रही हैं. उनकी नजर में यह चुनावी मुकाबला नहीं, एक धर्म युद्ध है और दिग्विजय अधर्मी हैं.

दूसरी ओर दिग्विजय भी हिंदुत्व का जबाव हिंदुत्व से देने की मुद्रा में आ गए हैं. वे स्वयं को भाजपाइयों और संघ से बड़ा हिंदू ठहरा रहे हैं. साधु-संतों की टोलियों से अपना प्रचार करवा रहे हैं.

1984 से लगभग तीन दशक से भाजपा का गढ़ बनी इस सीट पर दिग्विजय सिंह को उतारना पहले तो मुख्यमंत्री कमलनाथ का एक ऐसा दांव माना गया था जिससे दिग्विजय का कद कम करके सत्ता में उनका हस्तक्षेप घटाया जा सके. लेकिन प्रज्ञा की उम्मीदवारी के बाद से यह चर्चाएं गुम हो गई हैं.

उल्टा कमलनाथ का यह दांव भाजपा पर भारी पड़ता दिख रहा है. यही कारण रहा कि भाजपा को अच्छे प्रदर्शन के बावजूद सांसद आलोक संजर का टिकट काटना पड़ा. दिग्विजय के खिलाफ उम्मीदवार उतारने में अंत समय तक मशक्कत करनी पड़ी.

कभी पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, कभी उमा भारती, कभी केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर तो कभी महापौर आलोक शर्मा के नाम पर विचार किया. आखिरकार चली संघ की और एक ही दिन में प्रज्ञा को भाजपा की सदस्यता दिलाकर भोपाल में उम्मीदवार बना दिया गया.

प्रज्ञा की दावेदारी का विरोध भी हुआ. स्थानीय भाजपा नेता भी प्रज्ञा की दावेदारी से खुश नहीं हुए. किसी ने दबी जुबां तो किसी ने खुलकर विरोध जताया.

भोपाल उत्तर विधानसभा सीट से कांग्रेस की उम्मीदवार रहीं फातिमा रसूल सिद्दीकी तो खुलेआम उनके विरोध में उतर आईं और उनके लिए प्रचार करने से इनकार कर दिया.

भोपाल भाजपा के अन्य नेता भी प्रज्ञा की दावेदारी से खुश नहीं हैं और प्रचार के दौरान नदारद हैं. लेकिन प्रज्ञा को मिले संघ के समर्थन के चलते कोई खुलकर सामने नहीं आ पा रहा है.

Bhopal: BJP candidate Sadhvi Pragya Singh Thakur waves at supporters during her election campaign for Lok Sabha polls, at Sewaniya Gond in Bhopal, Monday, May 6, 2019. (PTI Photo) (PTI5_6_2019_000131B)
भोपाल में चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा उम्मीदवार प्रज्ञा सिंह ठाकुर. (फोटो: पीटीआई)

एक वक्त ऐसा भी आया जब हेमंत करकरे पर प्रज्ञा के बयान ने भाजपा को बैकफुट पर ला दिया और चर्चाएं चलने लगीं कि हो सकता है कि पार्टी प्रज्ञा का नाम वापस ले ले. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. हां, चुनाव आयोग ने करकरे और बाबरी मस्जिद पर बयान के चलते प्रज्ञा के 3 दिन तक चुनाव प्रचार पर प्रतिबंध जरूर लगा दिया.

इस बीच प्रज्ञा का प्रचार हिंदुत्व के इर्द-गिर्द और जेल के अपने अनुभवों के सहारे सहानुभूति बटोरने तक ही सीमित रहा. वहीं, दिग्विजय को फिर से अपनी चुनावी रणनीति बदलनी पड़ी और वे कहते नजर आए कि मैंने कभी हिंदू या भगवा आतंकवाद कहा ही नहीं.

साथ ही चुनाव प्रचार के शुरुआती कुछ दिन दिग्विजय, प्रज्ञा ठाकुर के खिलाफ कुछ भी बोलने से परहेज करते रहे और विकास के एजेंडे पर चुनाव लड़ने की बात करते रहे. इस संबंध में उन्होंने भोपाल को लेकर अपना एक विजन डॉक्यूमेंट भी जारी किया.

लेकिन, समय बीतने के साथ-साथ शायद दिग्विजय को भी समझ आ गया कि हिंदुत्व का मुकाबला विकास से नहीं किया जा सकता है और वे भी हिंदुत्व के अखाड़े में खुद को बड़ा हिंदू ठहराते हुए उतर गए हैं.

भोपाल का वर्तमान नजारा ये है कि प्रज्ञा भगवा ध्वज लहरा-लहराकर प्रचार के लिए निकल रही हैं और मंदिरों में मजीरे बजा रही हैं तो दिग्विजय के लिए मिर्ची यज्ञ हो रहे हैं.

सत्ता के साथ पाला बदलने वाले कम्प्यूटर बाबा उनके लिए धुनि रमाकर बैठ गए हैं जहां दिग्विजय खुद साधु-संतों के जमावड़े के साथ अपनी जीत के लिए यज्ञ कर रहे हैं. हजारों साधुओं को रैली में लेकर प्रचार के लिए निकल रहे हैं.

वे साधु-संतों की चरण वंदना कर रहे हैं. वेशभूषा भी ऐसी ही बना रखी है. माथे पर तिलक-चंदन, कलाई में कलावा एवं भगवा अंगवस्त्र धारण कर मंदिर-मंदिर माथा टेक रहे हैं, गायों को चारा खिला रहे हैं. भोपाल में भव्य राम मंदिर बनाने का वादा कर रहे हैं. मंदिर के लिए जमीन दान कर रहे हैं.

लेकिन, हिंदुत्व के इस ओवरडोज में भोपाल की समस्याएं, स्थानीय जनता के मुद्दे, विकास की बातें नहीं हो रही हैं. दिग्विजय और प्रज्ञा दोनों ने ही हालांकि भोपाल के लिए अपने-अपने विजन पत्र तो जारी किए हैं जिनमें बढ़-चढ़कर कई दावे किए गए हैं.

सबसे पहले 21 अप्रैल को दिग्विजय सिंह ने अपना विजन डॉक्यूमेंट जारी किया था. उन्होंने भोपाल को लेकर अपना विजन 20 पृष्ठीय दस्तावेज में बताया था. यह वह समय था जब प्रज्ञा के नाम की घोषणा हुई ही थी. वे अपने जेल के अनुभव साझा कर रही थीं और दिग्विजय ने मीडिया में आकर साफ कर दिया था कि वे सिर्फ विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ेंगे.

उन्होंने अपने विजन डाक्यूमेंट में दिल्ली (एनसीआर) की तर्ज पर भोपाल-राज्य राजधानी क्षेत्र (एससीआर) की परिकल्पना रखी. भोपाल को टूरिस्ट हब बनाने, त्वरित हवाई सेवाएं, सशक्त किसान-जीवन आसान का नारा गढ़ते हुए फूड प्रोसेसिंग यूनिट, कोल्ड स्टोरेज और किसानों को बेहतर परिवहन उपलब्ध कराने की बात रखी.

भोपाल सीट के अंतर्गत आने वाले सीहोर ज़िले के संबंध में भी कई घोषणाएं रोजगार, उद्योग, शुगर मिल, पेयजल आपूर्ति, खेती-किसानी को लेकर कीं. सीहोर में मेडिकल कालेज हो या फिर खेल और खिलाड़ियों की सुविधाएं और छात्राओं के लिए छात्रावास सभी को विजन डॉक्यूमेंट में शामिल किया गया.

एक साइंस सिटी की परिकल्पना भी की गई. साथ ही भोपाल गैस कांड के पीड़ितों के दूरगामी इलाज के लिए शोध का भी प्रावधान रखा है. भोपाल फिल्म सिटी, आर्ट सिटी, उद्योग, व्यापार, रोजगार, स्वास्थ्य, खेल, सुगम यातायात, नर्मदा का जल भोपाल के हर घर तक पहुंचाना, वेस्ट मैनेजमेंट, गरीबों के लिए मकान जैसी आकर्षक घोषणाएं 20 पृष्ठीय विजन डॉक्यूमेंट में दिग्विजय सिंह ने की हैं.

कंप्यूटर बाबा के साथ हवन में शामिल दिग्विजय सिंह. (फोटो साभार: फेसबुक Artistry Life TV - BPSC)
कंप्यूटर बाबा के साथ हवन में शामिल दिग्विजय सिंह. (फोटो साभार: फेसबुक Artistry Life TV – BPSC)

कई स्थानीय पत्रकारों से चर्चा करने के बाद हमने पाया कि दिग्विजय के विजन डॉक्यूमेंट में लगभग भोपाल की हर समस्या को तवज्जो देने की कोशिश की गई है.

स्थानीय पत्रकार सैयद मोहम्मद अल्तमस कहते हैं, ‘दिग्विजय का विजन डॉक्यूमेंट अच्छा था. लेकिन अब उस पर कोई बात नहीं हो रही है. शुरुआत में दिग्विजय ने जरूर कहा था कि वे विकास के मुद्दे पर ही चुनाव लड़ेंगे. लेकिन अब तो भोपाल, भोपालवासी और उनकी समस्याओं पर दोनों में से कोई कुछ नहीं बोल रहा है. बस खुद को बड़ा हिंदू साबित करने की होड़ लगी है. इसलिए शक है कि डॉक्यूमेंट में जो वादे हैं, उन पर भी जीतने के बाद कितना अमल हो पाता है.’

सवाल उठता है कि ऐसा क्या हुआ कि विकास की बात करते-करते दिग्विजय हिंदुत्व की राह पर चल पड़े? क्या वे संघ के हिंदुत्व के जाल में फंस गए? या बात कुछ और है.

साध्वी प्रज्ञा ने भी मतदान से ऐन तीन दिन पहले 8 मई को भोपाल के लिए अपना भी संकल्प पत्र जारी कर दिया. दो पृष्ठीय उस पत्र में युवाओं को स्टार्टअप के लिए ऋण, किसान सम्मान निधि, पेंशन, भोपाल को वेयरहाउसिंग, लॉजिस्टिक हब बनाने के प्रयास, व्यापारियों के दुर्घटना बीमा, डिजिटल कनेक्टिविटी के तहत टेली-मेडिसिन, टेली-एजुकेशन और कृषि परामर्श, केंद्र की योजनाओं का लाभ हर नागरिक को मिलना सुनिश्चित करने की बात कही गई है.

वहीं, कुछ सपने भी दिखाए गए हैं. ‘आपके सपने हमारा संकल्प’ कॉलम के तहत पर्यटन बढ़ाने के लिए राजाभोज के जीवन पर लाइट एंड साउंड शो, भोपाल के लिए नई उड़ानें, अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों के लिए प्रयास, ट्रेनों की संख्या में बढ़ोत्तरी, भोपाल को स्वच्छ बनाना, स्मार्ट सिटी, एम्स अस्पताल में सुविधा सुधार जैसे वादे किए गए हैं.

भोपाल में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार राकेश दीक्षित कहते हैं, ‘मुद्दों पर दोनों ने बात तो की है, लेकिन केंद्र में हिंदुत्व ही है. दोनों उम्मीदवारों का विजन ओझल हो गया है. दिग्विजय के विजन पत्र की चर्चा तो चली लेकिन फिर हिंदुत्व में दब गई. क्योंकि साध्वी कट्टर हिंदुत्व पर सवार थीं तो दिग्विजय ने भी बराबर की टक्कर देने की ठानी.’

वे आगे कहते हैं, ‘दिग्विजय सिंह होशियार हैं. संघ के जाल में तो फंसेंगे नहीं. बस उन्हें ये मैसेज देना था कि मैं भी कम हिंदू नहीं हूं. वे बस मुकाबला दे रहे हैं. क्योंकि इस बार कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पकड़ी थी जो सफल हुई. अब वे उसी को रिपीट करना चाह रहे हैं.’

राकेश बताते हैं कि कम्प्यूटर बाबा को चुनावों में अपनी मौजूदगी दर्ज करानी थी. उन्होंने दिग्विजय के साथ वह तमाशा कर लिया. बाद में दिग्विजय को समझ आया कि ये तो बैकफायर कर रहा है. तब से दिग्विजय ऐसे आयोजनों से दूरी बरत रहे हैं.

भोपाल में रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक गिरिजा शंकर कहते हैं, ‘स्थानीय मुद्दे तो वैसे ही गायब हैं. भाजपा के लिए साध्वी को चुनाव लड़ाना या हिंदुत्व की बात करना कोई नई बात नहीं है. लेकिन उसी लाइन पर दिग्विजय का चलना अचरज पैदा करता है. यह एक नया प्रयोग है जो कांग्रेस का नहीं, दिग्विजय का है.’

वे आगे कहते हैं, ‘यह सीट इसलिए ही महत्वपूर्ण हो गई है क्योंकि यह देश की विशेषकर कांग्रेस की राजनीति की दशा और दिशा तय करेगी. ये कांग्रेस के लिए लेबोरेटरी है. भाजपा के तो पिछले पांच चुनावों से साधु-साध्वी सांसद रहे हैं. उनके लिए प्रज्ञा को उतारना नया नहीं है. लेकिन कांग्रेस कभी साधु-संत, हिंदुत्व, योग, यज्ञ-अनुष्ठान को लेकर चुनाव लड़ी हो ऐसा मेरे ध्यान में नहीं आता. यह पहली बार है. दिग्विजय ने जोखिम उठाया है. सफल होने पर कांग्रेस को अपनी पूरी रणनीति पर पुनर्विचार करना पड़ेगा कि क्या पार्टी हिंदुत्व के सहारे ही भाजपा को हरा सकती है? अभी ऐसा है कि भाजपा हिंदुत्व की बात करती है और कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता की.’

गिरिजा शंकर कहते हैं, ‘दिग्विजय कोई नए राजनेता नहीं हैं जो संघ के जाल में फंस जाएं. नर्मदा यात्रा के समय उन्होंने अपना एक स्टैंड तय किया कि हिंदुत्व भाजपा की बपौती नहीं है, हम भी हिंदू हैं. उसी स्टैंड को चुनाव में आगे बढ़ाया.’

भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड का कारखाना. (फोटो: रॉयटर्स)
भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड का कारखाना. (फोटो: रॉयटर्स)

वे आगे कहते हैं, ‘2014 में हार के बाद एके एंटनी कमेटी की रिपोर्ट के हवाले से अखबारों में लिखा गया कि एंटी-हिंदू छवि होने के कारण पार्टी को हार मिली. ये बहस चलती रही लेकिन कुछ निर्णय नहीं हुआ. राहुल जरूर मंदिर-मंदिर गए लेकिन हिंदुत्व अपनाने का स्टैंड पार्टी पूरी तरह ले नहीं पाई. ये पहली बार है जब दिग्विजय सिंह उस स्क्रिप्ट के साथ चुनाव लड़ रहे हैं.’

वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं, ‘मध्य प्रदेश में पहली बार हुआ है कि किसी लोकसभा के प्रत्याशी ने अपने संसदीय क्षेत्र के लिए दृष्टि पत्र निकाला है. दिग्विजय का विजन डॉक्यूमेंट काफी चर्चा में रहा. लेकिन आस्था को लेकर जो एक प्रयोग हिंदुत्व की प्रयोगशाला में हो रहा है उसे लेकर कांग्रेस खासतौर पर दिग्विजय काफी सतर्क हैं.’

वे आगे कहते हैं, ‘भाजपा प्रत्याशी ने धर्म और आस्था के मामलों को पहले ही मुद्दा बनाया हुआ है और भोपाल के मतदाता को भ्रमित करने का प्रयास हो रहा है. दिग्विजय आस्था के मामले में कोई कोताही इसलिए नहीं बरत रहे हैं कि कहीं ऐसा न हो कि जब ध्रुवीकरण की बात हो, भावनात्मक मुद्दों पर चुनाव हो तो उसमे वे पीछे रह जाएं.’

बहरहाल, ऐसे मुद्दों की एक लंबी फेहरिस्त है जो भोपाल की करीब 21 लाख जनता से सीधा जुड़ाव रखते हैं लेकिन हिंदुत्व की होड़ में वे चर्चा में पिछड़ गये हैं.

अल्तमस के मुताबिक, ‘भोपाल को बड़ा तालाब से पानी मिलता है. भोपाल में नर्मदा लाइन आई है लेकिन काफी इलाके इससे वंचित हैं. एम्स अस्पताल के हाल बुरे हैं. हमीदिया में दस माले का नया अस्पताल सालों से बन रहा है. लेकिन फिलहाल ऐसा कोई अस्पताल नहीं जहां एमरजेंसी इलाज के लिए जाया जा सके तो दिल्ली भागना पड़ता है. सेंट्रल यूनिवर्सिटी यहां एक भी नहीं. अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय खुला भी तो उसकी भद्द पिट गई. इमारत तक का आबंटन नहीं हुआ. अब तो मान्यता तक खत्म हो गई. स्थानीय स्तर पर रोजगार के बेहतर अवसर नहीं हैं.’

हरेकृष्ण दुबोलिया भोपाल में दैनिक भास्कर अखबार में विशेष संवाददाता हैं. वे बताते हैं, ‘भोपाल का वेस्ट मेनेजमेंट खराब है. कुछ समय पहले भानपुर खंटी में कचरे का पहाड़ लगा था और अब आदमपुर छावनी में कचरे के पहाड़ से पांच किलोमीटर के दायरे में बदबू आती है. लाखों की आबादी परेशान है. पिछले दिनों वहां आग लगी तो पांच दिन नहीं बुझी.’

वे आगे बताते हैं कि भोपाल में 400-500 झुग्गी बस्ती हैं. करीब 7-8 लाख आबादी इनमें रहती है. यही चुनाव की दशा-दिशा तय करते हैं. बल्क में वोट पड़ते हैं.

वे बताते हैं, ‘पुराने संयंत्र बंद हैं. नये इंडस्ट्रियल हब की जरूरत है. भोपाल में आबादी बढ़ी है तो रोजगार भी चाहिए. विजन पत्रों में रोजगार बढ़ाने की बात तो है, लेकिन कैसे? ये कोई कंक्रीट प्लान नहीं है और इस पर बात भी नहीं हो रही है.’

अंत में वे कहते हैं, ‘कोलार इलाके से बहने वाली कलियासोत नदी नाले में तब्दील हो गई है. बेतवा उसकी सहायक नदी है जो उसके कारण प्रदूषित हो रही है. वहीं, शहर की आवोहवा लगातार खराब है. अभी खतरनाक स्तर पर थी.’

ये ऐसे मुद्दे हैं जो कहीं न कहीं हिंदुत्व के शोर में दब गए हैं. ऐसा ही एक मुद्दा भोपाल गैस त्रासदी से जुड़ा है. यूनियन कार्बाइड (यूका) का हजारों टन कचरा यूका परिसर में पड़ा है. लेकिन न तो केंद्र सरकार और न ही पिछली राज्य सरकार और वर्तमान राज्य सरकार ने उसके निस्तारण के लिए कुछ किया है.

स्वच्छता सर्वेक्षण में देश की सबसे स्वच्छ राजधानी भोपाल में फैक्ट्री परिसर में यूका द्वारा बनाए सोलर इवैपोरेशन पॉन्ड (सैप) में गाड़ा गया रासायनिक कचरा भूजल में मिलकर जमीन के अंदर जहर घोल रहा है. 42 बस्तियां इसकी चपेट में आ गई हैं.

दोनों प्रत्याशियों के विजन डॉक्यूमेंट तक में इसके समाधान का कोई ज़िक्र नहीं है. हालांकि दिग्विजय ने गैस पीड़ितों के दूरगामी इलाज की बात तो की है लेकिन साध्वी ने तो गैस त्रासदी पर कोई बात ही नहीं की है.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

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