सरकारी ख़र्चे से कराए जाएं चुनाव, कॉरपोरेट चंदे पर लगे पाबंदी: पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त

मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में 2004 में आम चुनाव कराने वाले टीएस कृष्णमूर्ति ने कहा कि कॉरपोरेट चंदे के माध्यम से धन जुटाने का अपारदर्शी तरीका चिंता पैदा करने वाला है.

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पूर्व चुनाव आयुक्त ​टीएस कृष्णमूर्ति. (फोटो: पीटीआई)

मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में 2004 में आम चुनाव कराने वाले टीएस कृष्णमूर्ति ने कहा कि कॉरपोरेट चंदे के माध्यम से धन जुटाने का अपारदर्शी तरीका चिंता पैदा करने वाला है.

पूर्व चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति. (फोटो: पीटीआई)
पूर्व चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति. (फोटो: पीटीआई)

हैदराबाद: पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति ने मंगलवार को चुनावों के लिए सरकारी कोष से खर्च करने के लिए राष्ट्रीय चुनाव निधि बनाने की वकालत की जिसमें चंदे के माध्यम से धन आए. उन्होंने चुनाव सुधारों के तहत राजनीतिक दलों को कॉरपोरेट चंदे पर पाबंदी का समर्थन किया.

मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में 2004 में आम चुनाव कराने वाले कृष्णमूर्ति ने एक संगठन की इस रिपोर्ट पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी कि हाल के लोकसभा चुनाव में करीब 60 हजार करोड़ रुपये खर्च किए गए.

हालांकि उन्होंने कहा कि उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों की संख्या बढ़ने से खर्च बढ़ सकता है. कृष्णमूर्ति ने कहा कि कॉरपोरेट चंदे के माध्यम से धन जुटाने का अपारदर्शी तरीका चिंता पैदा करने वाला है.

उन्होंने कहा कि जब कंपनियां राजनीतिक दलों को चंदा देती हैं तो इससे एक गिरोह बन जाता है. इसके बजाय लोग एक राष्ट्रीय चुनाव निधि में चंदा दे सकते हैं और अपने दान पर शत प्रतिशत कर छूट हासिल कर सकते हैं.

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने सुझाव दिया, ‘चुनाव आयोग इस धन का इस्तेमाल सभी राजनीतिक दलों के परामर्श से बनाये गये दिशानिर्देशों के आधार पर करेगा.’

उन्होंने कहा, ‘सरकारी खर्च से चुनाव…. यही एकमात्र तरीका है. राजनीतिक दलों को चंदा देने में कॉरपोरेट शामिल नहीं होने चाहिए.’

स्क्रॉल डॉट इन के अनुसार, 2004 के आम चुनाव को याद करते हुए कृष्णमूर्ति ने कहा कि उन्होंने सरकार को चुनाव सुधार से संबंधित लगभग 20 सुझाव दिए थे.

उन्होंने दुख जताते हुए कहा, ‘कई अन्य संस्थाओं के साथ कानून मंत्रालय ने भी इस मामले पर अपना सुझाव दिया था और सिस्टम में खामियों की ओर ध्यान दिलाया था. हालांकि, किसी राजनीतिक दल ने उन सुझावों को गंभीरता से नहीं लिया.’

उन्होंने कहा, ‘व्यक्तिगत रूप से वे (राजनेता) खुश नहीं है (चुनाव प्रणाली से), लेकिन एक समूह में वे यथास्थित से खुश नजर आते हैं.’ ईवीएम को लेकर उठ रहे सवालों पर उन्होंने कहा कि बिना वोटर-वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल सिस्टम (वीवीपीएटी) के भी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें विश्वसनीय हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)