बिहार में बच्चों की मौत के लिए प्रशासनिक विफलता व राज्य की उपेक्षा ज़िम्मेदार: डॉक्टरों की टीम

बिहार में एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम से 150 से ज़्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है. अकेले मुज़फ़्फ़रपुर में तकरीबन 132 बच्चे इस बीमारी से मारे जा चुके हैं.

Relatives visit child patients who suffer from acute encephalitis syndrome at a hospital in Muzaffarpur, in the eastern state of Bihar, India, June 20, 2019. Picture taken on June 20, 2019. REUTERS/Alasdair Pal

बिहार में एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम से 150 से ज़्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है. अकेले मुज़फ़्फ़रपुर में तकरीबन 132 बच्चे इस बीमारी से मारे जा चुके हैं.

Relatives visit child patients who suffer from acute encephalitis syndrome at a hospital in Muzaffarpur, in the eastern state of Bihar, India, June 20, 2019. Picture taken on June 20, 2019. REUTERS/Alasdair Pal
मुजफ्फरपुर के एक अस्पताल में इंसेफलाइटिस से पीड़ित एक बच्चा. (फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से हुई बच्चों की हाल में हुई मौतों की स्वतंत्र जांच करने वाले डॉक्टरों के एक समूह ने इस त्रासदी के लिए प्रशासनिक विफलता और लोगों के प्रति राज्य की उपेक्षा को जिम्मेदार ठहराया है.

डॉक्टरों के समूह ने यह भी दावा किया गया है कि अधिकांश मृत बच्चों के माता-पिता की सार्वजनिक वितरण प्रणाली तक पहुंच नहीं थी, क्योंकि उनके पास राशन कार्ड नहीं थे.

प्रोग्रेसिव मेडिकोस एंड साइंटिस्ट्स फोरम (पीएमएसएफ) के बैनर तले डॉक्टरों की एक तथ्यान्वेषी टीम द्वारा तैयार प्रारंभिक रिपोर्ट में कहा गया है कि ज्यादातर बच्चे कुपोषित थे और किसी का भी इलाज नहीं हुआ था. इसके अलावा, उनमें से किसी के पास भी विकास निगरानी कार्ड नहीं थे.

समूह में नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉक्टर भी थे.

मालूम हो कि बिहार में एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम की चपेट में 150 से अधिक मौतें हुई हैं. अकेले मुजफ्फरपुर में अब तक 132 बच्चे मारे जा चुके हैं.

पीएमएसएफ के राष्ट्रीय संयोजक और एम्स रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (आरडीए) के पूर्व अध्यक्ष डॉ. हरजीत सिंह भाटी ने कहा कि ये मौतें पिछले दस वर्षों से हो रही हैं और अभी भी खास बीमारियों या क्षेत्र में अतिसार जैसी आम बीमारी के लिए कोई निवारक तंत्र और स्वास्थ्य जागरूकता नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘पेयजल की भारी कमी है और पूरे मुजफ्फरपुर में समुचित सीवरेज प्रणाली नहीं है. स्वास्थ्य केन्द्रों में सफाई की स्थिति खराब है.’

टीम ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है, ‘आशा कार्यकर्ता, उप-केंद्रों और आंगनबाड़ी सेवाओं की संख्या और कार्यों में कमी है और लोगों का स्थानीय स्वास्थ्य प्रणाली में विश्वास नहीं है. टीकाकरण सेवाएं खराब हैं.’

रिपोर्ट में कहा गया है कि मुजफ्फरपुर स्थित श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (एसकेएमसीएच), जहां सबसे ज्यादा बच्चों की मौत रिकॉर्ड की गई, यहां के आपातकालीन कक्ष में एक दिन में 500 रोगियों की देखभाल के लिए केवल चार डॉक्टर और तीन नर्स थे और दवाओं और उपकरणों की भारी कमी थी. इसके अलावा आईसीयू में भी पर्याप्त चिकित्सकीय सुविधाएं मौजूद नहीं थीं.

डॉक्टरों की टीम ने दावा किया कि विभिन्न स्तरों पर खामियों के बावजूद किसी अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया, ‘यह भी देखा गया कि कुछ मामलों में हाइपोग्लाइसीमिया से पीड़ित बच्चों को इलाज के बाद कुछ घंटों के अंदर डिस्चार्ज कर दिया गया और घर पर फिर से हाइपोग्लाइसीमिया की चपेट में आकर उनकी मौत हो गई.’

डॉक्टरों की टीम ने कहा, ‘इन परिस्थितियों में इस तरह की त्रासदी होनी ही थी. राज्य सरकार अपनी लापरवाही को छिपाने के लिए अज्ञात बीमारी का राग अलाप रही है. वैज्ञानिक इस पर शोध कर रहे हैं, तब तक राज्य को स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने पर गंभीरता से काम करना चाहिए, जिससे इस तरह की त्रासदी को रोका जा सके.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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