निगमीकरण के विरोध में देश भर की 41 ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियों के 82 हज़ार कर्मचारी एक महीने की हड़ताल पर

केंद्र सरकार द्वारा आयुध फैक्ट्रियों के निगमीकरण का प्रस्ताव पास करने के विरोध में यह हड़ताल ऑर्डनेंस फैक्ट्रियों के बोर्ड के तीन मजदूर संघों ने की है. यूनियनों का आरोप है कि सरकार निगमीकरण के बहाने फैक्ट्रियों का निजीकरण करना चाहती है.

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केंद्र सरकार द्वारा आयुध फैक्ट्रियों के निगमीकरण का प्रस्ताव पास करने के विरोध में यह हड़ताल ऑर्डनेंस फैक्ट्रियों के बोर्ड के तीन मजदूर संघों ने की है. यूनियनों का आरोप है कि सरकार निगमीकरण के बहाने फैक्ट्रियों का निजीकरण करना चाहती है.

Ordnance Factory Protest Khadki Facebook Page
पुणे के खड़की आयुध कारखाने के बाहर प्रदर्शन करते कर्मचारी (फोटो साभार: फेसबुक)

कोलकाता/नई दिल्ली: सेना के लिए हथियार और गोला-बारूद बनाने वाली देश की 41 आर्डनेंस फैक्ट्रियों के बोर्ड (ओएफबी) के करीब 82 हजार असैन्य कर्मचारी देश भर में अपनी रक्षा विनिर्माण इकाइयों (डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग यूनिट) में मंगलवार से एक महीने की हड़ताल पर चले गए हैं.

केंद्र ने हाल ही में इन फैक्ट्रियों के निगमीकरण का प्रस्ताव पास किया है और कर्मचारी इसका विरोध कर रहे हैं. उनका आरोप है कि सरकार एक तरफ सेना को मजबूत करने के दावे करती है, वहीं, दूसरी ओर सुरक्षा संस्थानों को निजी हाथों में सौंपने की साजिश रच रही है.

यह हड़ताल तीन मजदूर संघों ने की है. वे सरकार की ‘कॉरपोरेटीकरण’ की योजना फौरन वापस लेने की मांग कर रहे हैं.

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, ये कर्मचारी यूनियन ऑल इंडिया डिफेंस एम्प्लाइज फेडरेशन (एआईडीईएफ) इंडियन नेशनल डिफेंस वर्कर्स फेडरेशन (आईएनडीडब्ल्यूएफ) और भारतीय प्रतिरक्षा मजदूर संघ (बीपीएमएस) के बैनर तले इकट्ठे हुए हैं. बीपीएमएस आरएसएस से जुड़े भारतीय मजदूर संघ का अंग है.

हालांकि, बोर्ड के अध्यक्ष सौरभ कुमार ने बताया कि केंद्र के प्रस्तावित कदम का उद्देश्य फैसले लेने में स्वायत्तता बढ़ाना है.

यूनियनों का आरोप है कि सरकार निगमीकरण या सार्वजनिक उपक्रम (पीएसयू) के बहाने फैक्ट्रियों का निजीकरण करना चाहती है. यूनियनों की ओर से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को लिखे पत्र में कहा है कि निगमीकरण या पीएसयू बनाने से कर्मचारियों का भविष्य बर्बाद हो जाएगा.

जनसत्ता की रिपोर्ट के अनुसार इस पत्र में यूनियन के महासचिवों द्वारा कहा गया कि यदि ऑर्डनेंस फैक्ट्रियों का निगमीकरण हुआ, तो 82000 कर्मचारियों और उनके परिजनों का भविष्य प्रभावित होगा. इन 82,000 में से 44,000 को जनवरी 2004 के बाद ही नौकरी मिली है. ये सभी बड़ी उम्मीदों के साथ फैक्टरियों से जुड़े थे. पेंशन का अधिकार उनसे पहले ही लिया जा चुका है. ऐसे में निगमीकरण के फैसले से कर्मचारी और अधिकारी अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं. सरकार को यह फैसला वापस लेना चाहिए.

वहीं, सरकार का कहना है कि वह ऑर्डनेंस फैक्ट्रियों के निजीकरण नहीं बल्कि इनको रक्षा क्षेत्र का सार्वजनिक उपक्रम बनाने पर विचार कर रही है. 16 अगस्त को रक्षा मंत्रालय ने एक बयान में कहा, ‘ओएफबी के निजीकरण को लेकर अफवाहें फैलाई जा रही हैं. ये भ्रामक हैं और इनका मकसद कर्मचारियों को गुमराह करना है.’

बता दें कि ओएफबी के कर्मचारियों द्वारा 20 अगस्त से हड़ताल पर जाने का नोटिस देने के बाद रक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों की एक समिति ने ओएफबी अध्यक्ष समेत विभिन्न कर्मचारी संगठनों के पदाधिकारियों के साथ बैठक की थी.

बैठक के बाद बताया गया कि समिति ने कर्मचारी संगठनों को बताया है कि ओएफबी के निजीकरण का कोई प्रस्ताव नहीं है. जिस प्रस्ताव पर सरकार विचार कर रही है वह इसे रक्षा क्षेत्र का सार्वजनिक उपक्रम (डीपीएसयू) बनाने का है, जो 100 प्रतिशत सरकारी स्वामित्व वाला होगा.

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार सरकार का कहना है कि डीपीएसयू, निजी क्षेत्र की मदद से टर्नओवर 5 गुना हुआ है. देश में 9 डीपीएसयू हैं. साल 2018-19 में इनका टर्नओवर 45,776 करोड़ रुपये था. निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी 16 हजार करोड़ रुपये की रही. जबकि 2018-19 में ऑर्डनेंस फैक्ट्रियों का टर्नओवर 13,920 करोड़ रुपये का था.

अमेठी के कोरवा में हड़ताल स्थल पर लगा एक बैनर (फोटो साभार: फेसबुक)
अमेठी के कोरवा में हड़ताल स्थल पर लगा एक बैनर (फोटो साभार: फेसबुक)

वहीं यूनियनों को आशंका है कि सरकार निगमीकरण के बहाने फैक्ट्रियों को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी कर रही है.

गौरतलब है कि इंडियन ऑर्डनेंस फैक्ट्रीज संगठन के तहत 41 आयुध कारखाने आते हैं और इनका मुख्यालय ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड के नाम से कोलकाता में है. रक्षा उत्पादन में इसे 200 साल से ज्यादा का अनुभव है.

217 साल पुराने आर्डनेंस बोर्ड की 10 राज्यों में 41 फैक्ट्रियां हैं, जिनमें चंडीगढ़ में 1, उत्तराखंड में 2,उत्तर प्रदेश में 9, बिहार में 1, मध्य प्रदेश में 6, पश्चिम बंगाल में 4, ओडिशा में 1, तेलंगाना में 1, महाराष्ट्र में 10, तमिलनाडु में 6 फैक्टरियां हैं. इन फैक्ट्रियों में करीब 3.5 लाख कर्मचारी हैं.

कर्मचारियों को भविष्य की चिंता

कर्मचारियों के अनुसार उनके लाखों साथियों के भविष्य को लेकर भी अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है. जबलपुर ऑर्डनेंस फैक्ट्री में 23,000 कर्मचारी हैं. हड़ताली कर्मचारियों का कहना है कि सरकार का यह फैसला देश की सुरक्षा के लिए घातक है. अगर निगमीकरण का फैसला अमल में लाया गया तो अकेले जबलपुर में ही लाखों कर्मचारियों के सामने रोजी-रोटी का संकट हो जाएगा.

हिंदुस्तान की खबर के अनुसार कानपुर की पांच ऑर्डनेंस फैक्टरियों में काम करने वाले आठ हजार कर्मचारी और अधिकारियों ने भी सौ फीसदी काम ठप रखा.

भारतीय प्रतिरक्षा मजदूर संघ के राष्ट्रीय महामंत्री मुकेश सिंह ने बताया कि बुधवार को दिल्ली में फिर एक बैठक है. जब तक सरकार निगमीकरण का फैसला वापस नहीं लेगी, हड़ताल जारी रहेगी. बातचीत का दौर चलता रहेगा लेकिन लिखित आश्वासन के बिना कदम पीछे नहीं लिए जाएंगे.

अगर कर्मचारियों की यह हड़ताल महीने भर तक जारी रहती है तो अनुमान है कि पिछले चार सालों के उत्पादन के हिसाब से करीब 1100 करोड़ रु. के हथियारों उत्पादन ठप हो सकता है और 150 तरह के गोला-बारूद, हथियारों के उत्पादन पर असर हो सकता है.

भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक फैक्ट्रियां सेना के लिए एडवांस प्लेटफार्म बना रही हैं और हड़ताल के चलते कुछ बड़े प्रोजेक्ट प्रभावित हो सकते हैं, जिनमें 155 एमएम की धनुष तोपें, असॉल्ट राइफल और पैदल सेना लड़ाकू वाहन शामिल हैं.

आयुध फैक्ट्रियों में 150 तरह के एम्युनिशन बन रहे हैं, जिनमें विस्फोटक, गोले, 155 एमएम एम्युनिशन के लिए प्रोपेलेंट, आर्टिलरी एम्युनिशन, डिफेंस एम्युनिशन, कैनन गन एम्युनिशन, बम, फ्यूज, डेटोनेटर्स और इग्नाइटर्स शामिल हैं.ओएफबी का निर्यात 250 करोड़ रुपए का है.