नॉर्थ ईस्ट डायरी: पूर्वोत्तर के राज्यों से इस सप्ताह की प्रमुख ख़बरें

इस हफ़्ते नॉर्थ ईस्ट डायरी में मणिपुर, त्रिपुरा, असम, नगालैंड, मिज़ोरम और अरुणाचल प्रदेश के प्रमुख समाचार.

Women hold placards during a protest against the Armed Forces Special Powers Act (AFSPA) in New Delhi January 25, 2008. Dozens of women from the northeastern Indian state of Manipur protested on Friday against the AFSPA, which gives troops the right to arrest and shoot at suspected rebels. REUTERS/Adnan Abidi (INDIA) - RTR1W9HG

इस हफ़्ते नॉर्थ ईस्ट डायरी में मणिपुर, त्रिपुरा, असम, नगालैंड, मिज़ोरम और अरुणाचल प्रदेश के प्रमुख समाचार.

प्रतीकात्मक फोटो (अदनान अबिदी/रॉयटर्स)

मणिपुर: न्याय पाने के अभियान की सैनिक हैं ग़ैर न्यायिक हत्याओं के शिकार लोगों की विधवाएं

उस दिन गुड फ्राइडे था. 6 अप्रैल 2007 को अवकाश के दिन रेणु तकहेलाबाम के पति मुंग हेंगजो स्कूटर से बाज़ार गए थे पर जब कई घंटे बीतने पर वे नहीं लौटे तो रेणु परेशान हो गईं. इस बीच उनका शव एक स्थानीय अस्पताल में लावारिस पड़ा था. उस समय उनका बेटा नौ माह का था.

हेंगजो की मौत मणिपुर में दशकभर से चल रहे अलगाववादी उग्रवाद का एक अन्य आंकड़ा बनकर रह गई है. आफ्सपा के तहत वहां सुरक्षा बलों के पास ताकत है कि वे घरों पर छापेमारी कर सकते हैं, संदिग्धों को हिरासत में ले सकते हैं और यहां तक कि क़ानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए किसी की जान भी ले सकते हैं.

इस महीने की शुरुआत में जब भारत सरकार संयुक्त राष्ट्र के मंच पर आफ्सपा का बचाव कर रही थी तब रेणु और मणिपुर की अन्य विधवाएं उच्चतम न्यायालय के आदेश पर फर्जी मुठभेड़ों और ग़ैर न्यायिक हत्याओं के शिकार सभी 1,528 पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के मामलों का दस्तावेजीकरण करने में व्यस्त थीं.

ऐसी ही 12 माताओं ने वर्ष 2004 मे मणिपुर की राजधानी इम्फाल में विरोध प्रदर्शन किया था, जिसमें उन्होंने बैनर पर लिखा था कि भारतीय सेना हमारे साथ बलात्कार करती है.

इन महिलाओं ने एक युवती की बलात्कार के बाद हत्या के विरोध में यह प्रदर्शन किया था.

इस अभियान में रेणु और इडिना याईखोम जैसी महिलाएं भी थीं जो वर्तमान अभियान की सिपाही हैं. इन सबकी उम्र लगभग 30 साल के करीब है और लगभग 10 वर्ष पहले ये अपने पतियों को खो दिया था.

मणिपुर में बीते कुछ वर्षों में ग़ैर न्यायिक हत्याओं में एक पैटर्न नज़र आ रहा है जिसमें व्यक्ति पहले गायब हो जाता है और फिर मृत मिलता है.

आफस्पा के ख़िलाफ़ खड़े ‘एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल एग्जिक्यूशन विक्टिम फैमिलीज एसोसिएशन’ की ज़्यादातर सदस्य कम उम्र की विधवाएं हैं. ये समूह हत्याओं की जवाबदेही तय करने की मांग को लेकर अदालत में याचिकाएं दायर करता है. समूह की अध्यक्ष रेणु ने महज़ 24 साल की आयु में अपने पति को खो दिया था.

पिछले साल उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 1979 से मई 2012 के बीच मणिपुर पुलिस और सैन्य बलों द्वारा की गई 1,528 कथित ग़ैर न्यायिक हत्याओं की जानकारी मांगी थी, जिसे यह समूह एकत्र कर रहा है. अब तक यह समूह 748 मामलों के सबूत अदालत को दे चुका है.

पांच दिन में दो बार माउंट एवरेस्ट चढ़ने वाली पहली महिला बनीं अंशु

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गुवाहाटी में दलाई लामा के साथ अंशु (बाएं से तीसरी). (फोटो: पीटीआई)

ईटानगर: अरुणाचल प्रदेश की पर्वतारोही अंशु जमसेनपा ने पांच दिनों के अंदर दूसरी बार माउंट एवरेस्ट फतह कर रविवार को इतिहास रच दिया. ऐसा करने वाली वह पहली महिला हैं.

इससे पहले साल 2012 यह कारनामा छूरिम शेरपा ने किया था, लेकिन इसके लिए उन्होंने एक हफ्ते का समय लिया था. दो बच्चों की मां अंशु 16 मई को चौथी बार दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर पहुंची थीं.

उनके पति सेरिंग वांग ने बताया कि अंशु ने शुक्रवार को चढ़ाई शुरू की थी. नेपाली पर्वतारोही फुरी शेरपा के साथ अंशु रविवार सुबह आठ बजे चोटी पर पहुंचीं.

इसके पहले 16 मई को सुबह नौ बजकर 15 मिनट पर उन्होंने एवरेस्ट फतह किया था. पांच दिनों के अंदर दो बार माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली वह पहली महिला हैं. यह एक रिकॉर्ड है.

इसके साथ ही वह पहली भारतीय महिला हैं जिन्होंने पांच बार माउंट एवरेस्ट फतह की है.

अरुणाचल प्रदेश में बोमडिला शहर की रहने वाली 32 वर्षीय अंशु इससे पहले तीन बार सफलतापूर्वक माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई पूरी कर चुकी हैं. उन्होंने 12 से लेकर 21 मई 2011 के बीच दस दिनों में लगातार दो बार एवरेस्ट फतह किया और तीसरी बार 18 मई 2013 में चढ़ाई पूरी की. इस साल उन्होंने नेपाल की ओर से चढ़ाई की थी.

दो किशोर बेटियों की मां को बधाई देते हुये राज्य के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने कहा. ‘मैं आपके भविष्य के प्रयासों में सफलता की कामना करता हूं और कामना करता हूं कि आप देश का गौरव बढ़ाती रहें.

मिज़ोरम: 31 साल पुराने शांति समझौते की समीक्षा के लिए बनी कमेटी

31 साल पहले मिज़ो नेशनल फ्रंट और तत्कालीन केंद्र और राज्य सरकार के बीच हुए शांति समझौते की समीक्षा के लिए राज्यपाल निर्भय शर्मा ने एक कमेटी का गठन किया है.

स्थानीय मीडिया ने 6 मई को ‘आधिकारिक स्रोतों’ का हवाला देते हुए बताया कि राज्यपाल ने इस कमेटी को ‘शांति समझौता समीक्षा कमेटी’ का नाम दिया है. रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि 2 मई को जारी एक आदेश में राज्यपाल ने इस कमेटी को बनाने के कारण के बारे में कुछ नहीं कहा है, पर ऐसा अनुमान है कि कमेटी का गठन शांति समझौते के तहत केंद्र सरकार द्वारा राज्य के लोगों से किए गए उन वादों के बारे में हैं, जिस पर अब तक कोई काम नहीं किया गया है.

मुख्यमंत्री लाल थनहवला इस कमेटी के अध्यक्ष हैं, वहीं गृहमंत्री आर लाल जिरलियाना को उपाध्यक्ष बनाया गया है. पूर्व मंत्री लालरिनमाविया कमेटी के सचिव हैं.

सूत्रों के अनुसार कमेटी के तीन सदस्य मिजो नेशनल फ्रंट के अंडरग्राउंड कैडर से हैं. जहां स्थानीय प्रशासन मंत्री पीसी लालथनलियाना पूर्व कैडर थे, वहीं राज्य मुक्य सचिव लालमलसव्मा अंडरग्राउंड मिजो नेशनल फ्रंट के पूर्व ‘रक्षा मंत्री’ थे. इसके अलावा आर ज़ामाविया ‘सेना प्रमुख’ थे.

बांग्लादेश के चटगांव पहाड़ियों में मिजो नेशनल आर्मी के युद्ध मुख्यालय के पूर्व कमांडर रहे लालरॉनलियाना को कमेटी के विशेषज्ञ के रूप में नियुक्त किया गया है.

राज्य में लगभग दो दशकों तक चली अशांति के बाद मिजो नेशनल फ्रंट और तत्कालीन केंद्र और राज्य सरकारों के बीच 30 जून 1986 को यह शांति समझौता हुआ था. तबसे अशांति से जूझते बाकी उत्तर पूर्वी राज्यों की तुलना में मिजोरम अपेक्षाकृत शांत राज्य है.

त्रिपुरा: सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोग्य ठहराए गए शिक्षकों के लिए कथित तौर पर बनाए 13 हज़ार पद

त्रिपुरा सरकार ने पिछले दिनों राज्य शिक्षा विभाग में 13,000 ग़ैर-शैक्षणिक पदों की घोषणा की है. ऐसा कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोग्य पाए जाने के बाद जिन 10,323 शिक्षकों की नौकरी गई है, ये उन्हें रोजगार देने की कवायद है.

गौरतलब है कि 7 मई, 2014 को त्रिपुरा हाईकोर्ट ने 58 याचिकाओं के जवाब में राज्य सरकार द्वारा 2010 से 2013 के बीच नियुक्त किए गए 10,323 शिक्षकों की नियुक्ति रद्द कर दी थी. कोर्ट का कहना था कि इन शिक्षकों की भर्ती शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 में बताई गई योग्यता नीतियों के अनुरूप नहीं की गई थी. बीते 29 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के इस आदेश को क़ायम रखा. हालांकि शीर्ष कोर्ट ने प्रभावित शिक्षकों को इस साल 31 दिसंबर तक अपने पद पर काम करते रहने की छूट दी है.

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के अनुसार राज्य में 31 मई तक टेट के माध्यम से नई नियुक्तियां करके इसे 31 दिसंबर तक पूरा करने को कहा है. उन्होंने यह भी कहा कि टेट में वे अध्यापक भी हिस्सा ले सकते हैं, जिनकी नियुक्ति रद्द हुई है.

त्रिपुरा में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, जहां भाजपा की पूरी कोशिश 19 साल से सत्ता पर काबिज़ माणिक सरकार को हटाने की रहेगी, ऐसे में इस मुद्दे का उठना चुनावी सरगर्मी को बढ़ा रहा है.

स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार 17 मई को राज्य के शिक्षा विभाग द्वारा 13,000 नए ग़ैर-शैक्षणिक पद लाने का ये फैसला इसी मुद्दे को मद्देनज़र रखते हुए लिया गया है. रिपोर्ट के अनुसार इस फैसले के बाद शिक्षा विभाग में स्कूल असिस्टेंट के 5,600, अकादमिक काउंसलर के 1,200, स्टूडेंट काउंसलर  के 4,300, लाइब्रेरी असिस्टेंट के 1,500 और हॉस्टल वॉर्डन के 300 पद बनाए गए हैं, जिन्हें एकमुश्त मासिक तनख्वाह दी जाएगी.

राज्य के शिक्षा मंत्री तपन चक्रवर्ती ने बताया है कि कैबिनेट द्वारा शिक्षा विभाग और सामाजिक कल्याण और सामाजिक शिक्षा इकाइयों में इन पदों को मंजूरी देने के अलावा नियुक्तियों के लिए एक संशोथित नीति बनाई गई है, जिसकी सभी आधिकारिक प्रक्रियाएं पूरी होने के बाद सूचना दी जाएगी.

17 मई को अगरतला में पत्रकारों को से बात करते हुए तपन चक्रवर्ती ने बताया, ‘एकेडेमिक काउंसलर, स्टूडेंट काउंसलर, स्कूल लाइब्रेरी असिस्टेंट और हॉस्टल वार्डन के पदों (कुल 12,000 पद) के लिए पांच साल का शैक्षणिक अनुभव चाहिए होगा, वहीं स्कूल असिस्टेंट के पद के लिए 3 साल का शैक्षणिक अनुभव अनिवार्य होगा.’

उन्होंने यह भी बताया कि विभाग इन पदों पर भर्ती के लिए जल्द ही साक्षात्कार के लिए आवेदन आमंत्रित करेगा.

एकेडमिक काउंसलर के लिया 12,000 रुपये मासिक तनख्वाह तय की गई है, वहीं स्टूडेंट काउंसलर और स्कूल लाइब्रेरी असिस्टेंट को 10,500 रुपये और हॉस्टल वार्डन को 8,500 रुपये मासिक वेतन मिलेगा.

हालांकि चक्रवर्ती ने मीडिया से यह नहीं कहा कि कैबिनेट का ये फैसला सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अयोग्य हुए शिक्षकों को ध्यान में रखकर लिया गया है. ज्ञात हो कि राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किए गए इन अध्यापकों में 1,100 शिक्षक पोस्टग्रेजुएट थे, वहीं 4,617 ग्रेजुएट और 4,606 अंडरग्रेजुएट थे.

चीन सीमा के पास भारत के सबसे लंबे पुल का उद्घाटन 26 मई को होगा

Dhola Sadiya Bridge PTI
धोला सादिया पुल. (फोटो: पीटीआई)

डिब्रूगढ़ (असम): चीन की सीमा के नज़दीक भारत में किसी नदी पर बने सबसे लंबे पुल का उद्घाटन 26 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे. यह पुल 60 टन वजनी युद्ध टैंक का भार वहन करने में सक्षम है.

ब्रह्मपुत्र नदी पर बने 9.15 किलोमीटर लंबे धोला-सादिया पुल के उद्घाटन के साथ ही प्रधानमंत्री असम के पूर्वी हिस्से से राजग सरकार के तीन साल पूरे होने का जश्न शुरू करेंगे.

इस पुल के निर्माण को भारत-चीन सीमा पर भारत के रक्षा से जुड़े बुनियादी ढांचे को मज़बूत करने के तौर पर देखा जा रहा है. यह क्षेत्र में संपर्क सुधारने की केंद्र की कोशिश का भी हिस्सा है.

यह मुंबई में बांद्रा-वर्ली समुद्र संपर्क पुल से 3.55 किलोमीटर लंबा है और इस तरह यह भारत का सबसे लंबा पुल है.

असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने कहा, ‘प्रधानमंत्री सामरिक रूप से अहम इस पुल को 26 मई को देश को समर्पित करेंगे. यह पूर्वोत्तर में सड़क संपर्क को भी आसान बनाएगा क्योंकि रक्षा बलों द्वारा बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करने के अलावा पुल का उपयोग असम और अरुणाचल प्रदेश के लोग भी करेंगे.’

पुल का निर्माण साल 2011 में शुरू हुआ था और परियोजना की लागत 950 करोड़ रुपये थी. इस का डिजाइन इस तरह बनाया गया है कि पुल सैन्य टैंकों का भार सहन कर सके.

सोनोवाल ने कहा, ‘असम और अरुणाचल प्रदेश का देश के लिए अत्यंत सामरिक महत्व है. पुल चीन के साथ हमारी सीमा के करीब है लिहाजा टकराव के समय यह सैनिकों और तोपों की तेजी से आवाजाही में मदद करेगा.’

पुल असम की राजधानी दिसपुर से 540 किलोमीटर और अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर से 300 किलोमीटर दूर है. इसकी चीनी सीमा से हवाई दूरी 100 किलोमीटर से कम है.

सोनोवाल ने कहा कि वर्ष 2014 में मोदी सरकार के बनने के बाद से पुल के निर्माण में तेजी लाई गई. पुल का उद्घाटन 2015 में होना था. गौरतलब है कि असम में भाजपा सरकार 25 मई को अपना एक साल पूरा कर रही है.

नगालैंड: नए क्षेत्रीय दल का गठन, बढ़ सकती हैं सत्तारूढ़ एनपीएफ की मुश्किलें

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(फोटो साभार: Morung Express)

राज्य में सत्तारूढ़ नेशनल पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) में बढ़ रही खींचतान का नतीजा एक नए दल के रूप में सामने आया है. 17 मई को एनपीएफ के पूर्व सदस्यों ने साथ आकर एक नए दल का गठन किया है.

डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) नाम के इस दल के अध्यक्ष पूर्व सांसद चिंग्वांग कोनयाक होंगे. ज्ञात हो कि चिंग्वांग ने हाल ही में एनपीएफ से इस्तीफा दिया था. हालांकि स्थानीय मीडिया में कहा जा रहा है कि इसके पीछे वर्तमान सांसद और एनपीएफ नेता नेफ्यू रियो हैं. कोनयाक रियो के करीबी माने जाते हैं, जब रियो मुख्यमंत्री थे तब कोनयाक उनके राजनीतिक सलाहकार थे.

ज्ञात हो कि 2014 में रियो को अपना पद एनपीएफ नेता और प्रतिद्वंद्वी टीआर जेलियांग के लिए छोड़ना पड़ा था पर पिछले साल फरवरी में स्थानीय निकाय चुनावों में महिलाओं को 33% आरक्षण देने के फैसले पर रोक लगाने के सरकार के फैसले के बाद जेलियांग को भी मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा और एनपीएफ अध्यक्ष शुरहोज़ेले लिजित्सू मुख्यमंत्री बने.

ख़बरों की मानें तो आने वाले दिनों में एनपीएफ के और कई नेता डीपीपी में आ सकते हैं, साथ ही डीपीपी 2018 में होने वाले विधानसभा चुनाव में एनपीएफ के सामने बड़ी चुनौती बनकर उभर सकता है.

17 मई को दीमापुर में अपनी पहली आम बैठक के बाद कोनयाक ने मीडिया को बताया कि चुनाव आयोग में पंजीकृत हो जाने के बाद पार्टी को जून में औपचारिक रूप से लॉन्च किया जाएगा.

कोनयाक इससे पहले नगालैंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे, इसके बाद वे कुछ समय भाजपा में रहकर कांग्रेस में लौटे और आखिरकार एनपीएफ में शामिल हुए.

खबर यह भी हैं कि रियो और कोनयाक साथ मिलकर विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन के मामले पर बात कर रहे हैं. हालांकि 2003 से भाजपा एनपीएफ के साथ गठबंधन में हैं. नगालैंड के अलावा भाजपा और एनपीएफ की मणिपुर में भी गठबंधन की सरकार है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के आधार पर)

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