क्या गोरखपुर ऑक्सीजन कांड में डॉ. कफ़ील ख़ान को बलि का बकरा बनाया गया?

साल 2017 में गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में हुए ऑक्सीजन कांड में आरोपी डॉ. कफ़ील ख़ान से संबंधित जांच रिपोर्ट आ गई है. रिपोर्ट के अनुसार, उन पर ऑक्सीजन की कमी की सूचना अधिकारियों को न देने और कर्तव्यों का पालन न करने के आरोप साबित नहीं हो पाए हैं.

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New Delhi: Paediatrician Kafeel Khan addresses a press conference in New Delhi, Saturday, Sept. 28, 2019.Two years after over 60 children died in less than a week at the BRD Medical College, Uttar Pradesh government inquiry has given a clean chit to paediatrician Khan who was arrested after the tragedy.(PTI Photo/ Shahbaz Khan)(PTI9_28_2019_000123B)

साल 2017 में गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में हुए ऑक्सीजन कांड में आरोपी डॉ. कफ़ील ख़ान से संबंधित जांच रिपोर्ट आ गई है. रिपोर्ट के अनुसार, उन पर ऑक्सीजन की कमी की सूचना अधिकारियों को न देने और कर्तव्यों का पालन न करने के आरोप साबित नहीं हो पाए हैं.

New Delhi: Paediatrician Kafeel Khan addresses a press conference in New Delhi, Saturday, Sept. 28, 2019.Two years after over 60 children died in less than a week at the BRD Medical College, Uttar Pradesh government inquiry has given a clean chit to paediatrician Khan who was arrested after the tragedy.(PTI Photo/ Shahbaz Khan)(PTI9_28_2019_000123B)
डॉ. कफ़ील ख़ान. (फोटो: पीटीआई)

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर स्थित बीआरडी मेडिकल कॉलेज में हुए ऑक्सीजन कांड में आरोपित किए गए डॉ. कफ़ील अहमद ख़ान को विभागीय जांच में मुख्य दो आरोपों से दोषमुक्त किए जाने के बाद साल 2017 में हुई इस बहुचर्चित घटना को लेकर हुई जांच पर फिर से सवाल उठने लगे हैं.

डॉ. कफ़ील ख़ान को ऑक्सीजन कांड के बाद महानिदेशक (चिकित्सा शिक्षा) डॉ. केके गुप्ता की जांच के आधार पर निलंबित किया गया था.

इस जांच के आधार पर ही डॉ. कफ़ील ख़ान के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई थी और डॉ. केके गुप्ता खुद वादी बने थे.

अब जब डॉ. गुप्ता की जांच के दो मुख्य आरोप ही डॉ. कफ़ील ख़ान पर साबित नहीं हुए हैं तो यह सवाल उठना लाजमी है कि आखिर उन्हें पूरी घटना का मुख्य आरोपी क्यों साबित किया गया? क्या ऑक्सीजन कांड से उत्तर प्रदेश सरकार और विशेषकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की हो रही सख्त आलोचना की आंच धीमी करने के लिए डॉ. कफ़ील ख़ान को बलि का बकरा बनाया गया?

डॉ. कफ़ील ख़ान पर आरोपों की जिस विभागीय जांच की रिपोर्ट दो दिन से चर्चा में है, वह जांच रिपोर्ट 18 अप्रैल को ही पूरी हो गई थी और उसे प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा को भेज दिया गया था है.

इस बारे में 27 सितंबर की शाम को शासन स्तर से जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि जिन दो बिंदुओं (आरोप संख्या एक और दो) पर आरोप सिद्ध पाया गया है उस पर डॉ. कफ़ील से जवाब मांगा गया था, जो 26 अगस्त 2019 को शासन में प्राप्त हो गया है और जिस पर अब तक अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है.

इस विज्ञप्ति में यह भी कहा गया है कि डॉ. कफ़ील को विभागीय जांच में क्लीनचिट दिए जाने संबंधी समाचार भ्रामक है. उनके ऊपर लगाए कुल चार आरोपों में से दो आरोप उनके विरूद्ध सिद्ध पाए गए हैं, जिस पर निर्णय लिए जाने की कार्यवाही विचाराधीन है. इस विज्ञप्ति में संक्षिप्त जांच रिपोर्ट भी दी गई है जिसमें ऑक्सीजन कांड से जुड़े दो आरोप जांच में सिद्ध नहीं पाए जाने का उल्लेख है.

इस विज्ञप्ति में यह भी कहा गया है कि डॉ. कफ़ील के विरूद्ध तीन आरोपों के साथ एक अन्य विभागीय कार्यवाही भी चल रही है. यह कार्यवाही निलंबन अवधि के दौरान 22 सितंबर 2018 को डॉ. कफ़ील के बहराइच स्थित जिला अस्पताल में जाने के मामले से जुड़ा हुआ है.

इसके साथ ही उन पर निलबंन अवधि में सम्बद्धता स्थल कार्यालय महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण पर योगदान न देकर सोशल मीडिया पर सरकारी विरोधी राजनीतिक टिप्पणियां करने का आरोप है.

इस आरोप में उन्हें 31-07-2019 को निलंबित किया गया. इसकी विभागीय कार्यवाही की जांच के लिए इसी महीने की 18 तारीख को प्रमुख सचिव चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण को जांच अधिकारी नामित किया गया है.

(फोटो साभार: एएनआई)
(फोटो साभार: एएनआई)

इस जांच के लिए पूर्व में दो अधिकारी नामित किए गए थे लेकिन एक अधिकारी अवकाश पर चले गए जबकि दूसरे ने अत्यधिक व्यस्तता के कारण असमर्थता जता दी.

ऑक्सीजन कांड में डॉ. कफ़ील पर हुई विभागीय कार्यवाही में जांच अधिकारी प्रमुख सचिव, स्टाम्प एवं निबंधन, भूतत्व एवं खनिकर्म हिमांशु कुमार को बनाया गया था.

उन्हें इस घटना में आरोपी बनाए गए दो अन्य आरोपियों- बीआरडी मेडिकल कॉलेज के तत्कालीन प्रधानाचार्य डॉ. राजीव मिश्र और एनेस्थीसिया विभाग के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. सतीश कुमार के खिलाफ भी लगाए गए आरोपों की जांच का भी जिम्मा सौंपा गया था. हिमांशु कुमार ने तीनों पर लगे आरोपों की जांच पूरी कर रिपोर्ट शासन को भेज दी है.

नियमनुसार जांच रिपोर्ट में साबित पाए गए आरोपों पर आरोपी अधिकारी का पक्ष लिया जाता है और उसके बाद शासन स्तर पर अंतिम निर्णय लिया जाता है.

जांच अधिकारी ने चार आरोपों में से दो आरोप सिद्ध पाए हैं जिस पर डॉ. कफ़ील से उनका पक्ष जानने के लिए बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य के जरिये उन्हें तीन अगस्त 2019 को जांच रिपोर्ट दी गई. डॉ. कफ़ील ने अपना जवाब 26 अगस्त 2019 को दे दिया. अब इसी पर सरकार को अंतिम निर्णय लेना है.

डॉ. राजीव मिश्र और डॉ. सतीश कुमार की विभागीय जांच की रिपोर्ट अभी सार्वजनिक नहीं है और मीडिया तक भी इसकी पहुंच नहीं हो पाई है, इसलिए यह कहना मुश्किल है कि इन दोनों अधिकारियों पर लगे आरोपों पर जांच अधिकारी ने क्या रिपोर्ट दी है.

यहां बताना जरूरी है कि ऑक्सीजन कांड में डॉ. कफ़ील सहित कुल नौ लोग आरोपी बनाए गए थे.

इन आरोपियों में लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन आपूर्तिकर्ता पुष्पा सेल्स के निदेशक मनीष भंडारी के अलावा सात लोग- डॉ. कफ़ील ख़ान, डॉ. राजीव मिश्र, डॉ. सतीश कुमार, फार्मासिस्ट गजानंद जायसवाल, कनिष्ठ लिपिक संजीव त्रिपाठी, सहायक लिपिक सुधीर कुमार पांडेय और कनिष्ठ सहायक लेखा अनुभाग उदय प्रताप शर्मा बीआरडी मेडिकल कालेज से जुड़े थे.

नौवीं आरोपी वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्साधिकारी डॉ. पूर्णिमा शुक्ल बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. राजीव मिश्र की पत्नी हैं और घटना के वक्त वह मेडिकल कालेज स्थित होम्योपैथिक रिसर्च सेंटर में तैनात थीं.

उन पर मेडिकल कालेज के प्रशासनिक कार्यों में अपने पति के पद के प्रभाव का उपयोग कर दखल देने का आरोप लगाया गया था.

पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर इन सभी आरोपियों को गिरफ्तार किया था. सभी आरोपी इस वक्त जमानत पर रिहा हैं.

पुलिस ने सभी नौ में से सात आरोपियों- डॉ. पूूर्णिमा शुक्ल, गजानंद जायसवाल, डॉ. सतीश कुमार, सुधीर कुमार पांडेय, संजय कुमार त्रिपाठी, उदय प्रताप शर्मा, मनीष भंडारी के खिलाफ 26 अक्टूबर 2017 को और डॉ. राजीव मिश्रा व डॉ. कफ़ील ख़ान के खिलाफ 22 नवंबर 2017 को अदालत में चार्जशीट दाखिल की थी.

Dr Kafeel Khan BRD Medical Investigation Report by The Wire on Scribd

चार्जशीट में 93 लोगों की परिस्थितिजन्य साक्ष्य की गवाही है जिसमें मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर, कर्मचारी, कॉलेज कैंपस के दुकानदार, 10 और 11 अगस्त 2017 को मारे बच्चों के अभिभावकों के नाम हैं. इस वक्त आरोपियों पर आरोप निर्धारण की प्रक्रिया चल रही है.

घटना के बाद डॉ. राजीव मिश्र, डॉ. सतीश कुमार, डॉ. कफ़ील ख़ान, उदय शर्मा, गजानंद जायसवाल, संजय त्रिपाठी, सुधीर शुक्ल, डॉ. पूर्णिमा शुक्ल को निलंबित कर दिया गया था.

इनमें से पांच- डाॅ कफ़ील, डाॅ. राजीव मिश्र, डॉ. सतीश, डॉ. पूर्णिमा शुक्ल, गजानंद जायसवाल के खिलाफ विभागीय जांच शुरू की गई जो अब पूरी हो चुकी है.

मेडिकल कॉलेज के तीन कर्मचारियों- उदय शर्मा, सुधीर कुमार पांडेय और संजय कुमार त्रिपाठी के खिलाफ घटना के दो वर्ष बाद भी विभागीय जांच शुरू ही नहीं हो पाई है. अभी तक इन तीनों पर लगे आरोपों की जांच के लिए किसी अधिकारी को जिम्मेदारी भी नहीं दी गई है.

डॉ. कफ़ील ख़ान पर विभागीय जांच में चार आरोप लगाए गए थे. इसमें से दो उनकी प्राइवेट प्रैक्टिस से संबंधित थे जबकि दो ऑक्सीजन कांड से जुड़े हुए थे.

सबसे गंभीर आरोप (आरोप संख्या-3) यह था कि बीआरडी मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग में बच्चों की आकस्मिक मौत की घटना के समय वह मौजूद थे और वे 100 बेड एईएस वार्ड के नोडल प्रभारी थे. उन्होंने जीवन रक्षक ऑक्सीजन की कमी जैसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम को तत्काल उच्चाधिकारियों से अवगत नहीं कराया जो उनकी मेडिकल नेग्लिजेंस का परिचायक है. इस आरोप में यह भी जोड़ा गया था कि डॉ. कफ़ील की तत्कालीन प्राचार्य डॉ. राजीव मिश्र से साठगांठ थी जिसके कारण साजिश करते हुए दोनों शासकीय नियमों का उल्लंघन किया.

इस आरोप के साक्ष्य के बतौर जांच अधिकारी को महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण डॉ. केके गुप्ता की जांच रिपोर्ट और उत्तर प्रदेश सरकारी कर्मचारी आचरण नियमावली 1956 की नियम-3 की प्रति उपलब्ध कराई गई थी.

डॉ. कफ़ील ने इन आरापों के जवाब में जांच अधिकारी को साक्ष्य दिया कि वह 100 बेड के एईएस वार्ड के नोडल अधिकारी कभी थे ही नहीं. यह कार्यभार बाल रोग विभाग के सह आचार्य डॉ भूपेंद्र शर्मा के पास था.

डॉ. कफ़ील ने यह भी बताया कि मेडिकल कॉलेज में लिक्विड ऑक्सीजन के रखरखाव, टेंडर, भुगतान, ऑर्डर, सप्लाई और प्रबंधन में उनकी कोई भूमिका ही नहीं थी. घटना के दिन 10 अगस्त 2017 को वह अवकाश पर थे. रात में मेडिकल कॉलेज स्टाफ के वॉट्सऐप ग्रुप में उन्हें लिक्विड ऑक्सीजन की कमी के बारे में संदेश मिला.

उनके अनुसार, यह संदेश मिलने के बाद उन्होंने तत्कालीन प्राचार्य डॉ. राजीव मिश्र, कार्यवाहक प्राचार्य डॉ. रामकुमार, बाल रोग विभागाध्यक्ष डॉ. महिमा मित्तल सहित विभाग के अपने सहयोगियों से संपर्क किया. डॉ. कफ़ील ने इसके प्रमाण में अपने मोबाइल की कॉल डिटेल भी उपलब्ध कराई है.

डॉ. कफ़ील का कहना था कि उपरोक्त व्यक्तियों से मोबाइल से संपर्क करने के बाद वह खुद रात में ही स्थिति को संभालने और अपने सेवा देने मेडिकल कॉलेज पहुंच गए. उन्होंने अपने स्तर पर वार्ड का प्रबंधन और जम्बो ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था की जो लिक्विड ऑक्सीजन की अचानक आपूर्ति न होने के कारण उत्पन्न हुई थी.

डॉ. कफ़ील ने जांच अधिकारी को दिए गए जवाब में कहा है कि उनकी ईमानदार कोशिश के कारण 11 अगस्त 2017 और 12 अगस्त 2017 को दिन दिन के भीतर अलग-अलग कंपनियों से 500 जम्बो ऑक्सीजन सिलेंडर प्राप्त किए. इन सिलेंडरों में वह सात सिलेंडर भी शामिल हैं जो उन्होंने 11 अगस्त 2017 को अपने पैसे से मयूर गैस प्राइवेट लिमिटेड से खरीदे थे जिसका भुगतान आज तक उन्हें नहीं किया गया है.

डॉ. कफ़ील ने कहा, ‘उन्होंने बहुत ही लगन से सभी आवश्यक कदम उठाए और वह बाल रोग विभागाध्यक्ष, प्राचार्य, कार्यवाहक प्राचार्य, मुख्य चिकित्सा अधीक्षक, स्थानीय प्रशासन, जिला मजिस्टेट, सीएमओ, एडी हेल्थ, डीआईजी एसएसबी, सेंट्रल पाइप लाइन ऑपरेटर के संपर्क में रहे. उन्होंने 10 अगस्त की रात से 12 अगस्त 2017 के बीच 26 लोगों को फोन किया.’

Gorakhapur BRD Medical College PTI
(फाइल फोटो: पीटीआई)

उन्होंने बताया, ‘हाईकोर्ट ने उन्हें जमानत देते हुए टिप्पणी की थी कि उनके खिलाफ चिकित्सा लापरवाही का कोई सबूत नहीं पाया गया है, वह लिक्विड ऑक्सीजन टेंडर प्रक्रिया का हिस्सा नहीं थे और उनके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 7 (13) के तहत आरोप पुलिस जांच के दौरान हटा दिए गए हैं.’

जांच आधिकारी हिमांशु कुमार ने आरोप संख्या तीन का विश्लेषण करते हुए अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ‘महानिदेशक की जांच रिपोर्ट में कहीं भी प्रश्नगत आरोप के संबंध में कोई टिप्पणी नहीं की गई है. इस आरोप के संबंध में न तो कोई जांच की गई है और न ही उनकी जांच रिपोर्ट में इस तरह के आरोप का कोई उल्लेख है. जांच अधिकारी ने अपनी टिप्पणी में लिखा है कि आरोप संख्या 3 के संबंध में विभाग द्वारा प्रस्तुत किए गए साक्ष्य असंगत हैं. इस संबंध में आरोपी अधिकारी द्वारा दिया गया उत्तर संतोषजनक प्रतीत होता है. यह आरोप आरोपी अधिकारी पर सिद्ध नहीं पाया जाता है.’

डॉ. कफ़ील पर यह आरोप लगाया गया था, ‘वह 100 बेड एईएस वार्ड के नोडल अधिकारी थे. बाल रोग विभाग जैसे संवेदनशील विभाग में दी जाने वाली सुविधाओं, उपचार तथा स्टाफ के प्रबंधन आदि का संपूर्ण उत्तर दायित्व उनका था, लेकिन उनका आचरण अनुत्तरदायित्वपूर्ण था. उन्होंने अपने शासकीय कर्तव्यों एवं दायित्वों का निर्वहन नहीं किया और न ही अधीनस्थों पर समुचित नियंत्रण रखा. यह अपकृत्य कदाचार उत्तर प्रदेश कर्मचारी आचरण नियमावली 1956 के नियम-3 (1) का उल्लंघन है.’

जांच अधिकारी ने इस आरोप को भी खारिज कर दिया है. उन्होंने लिखा है, ‘आरोप की पुष्टि में दिए गए साक्ष्य अपर्याप्त और असंगत हैं. यह आरोप आरोपी अधिकारी पर सिद्ध नहीं पाया जाता है.’

इस तरह से देखा जाए तो ऑक्सीजन कांड से सीधे तौर पर जुड़े इन दो आरोपों में डॉ. कफ़ील के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं मिला है. ऐसे में इस जांच रिपोर्ट से जुड़ी ख़बर को मीडिया द्वारा गलत तरीके से प्रस्तुत करने संबंधी उत्तर प्रदेश सरकार का बयान समझ से परे नजर आता है.

आरोप संख्या एक और दो डॉ. कफ़ील ख़ान की प्राइवेट प्रैक्टिस से संबंधित थे. आरोप संख्या एक में डॉ. कफ़ील पर बीआरडी मेडिकल कॉलेज में बाल रोग विभाग में सीनियर रेजीडेंट और बाद में प्रवक्ता पद पर रहते प्राइवेट प्रैक्टिस जारी रखने का आरोप लगाया गया था.

आरोप संख्या दो में डॉ. कफ़ील पर नियम विरूद्ध निजी नर्सिंग होम संचालित करने, प्राइवेट प्रैक्टिस करते हुए मेडिकल कालेज में राजकीय चिकित्सक के रूप में कार्य करने का आरोप लगाया गया था.

डॉ. कफ़ील बीआरडी मेडिकल कालेज में 23 मई 2013 को बाल रोग विभाग में सीनियर रेजीडेंट नियुक्त हुए थे. बाद में वह लोक सेवा आयोग से 03 अगस्त 2016 को बाल रोग विभाग में प्रवक्ता के पद पर नियुक्त हुए और ऑक्सीजन कांड के समय तक इसी पर पर कार्य कर रहे थे.

डीजी मेडिकल एजुकेशन डॉ केके गुप्ता ने अपनी जांच रिपोर्ट में कहा था कि सीनियर रेजीडेंट की नियुक्ति आदेश में शर्त संख्या-3 में स्पष्ट रूप से प्राइवेट प्रैक्टिस की अनुमति नहीं है.

इसी तरह बाल रोग विभाग में प्रवक्ता के बतौर उन्हें प्राइवेट प्रैक्टिस करने की अनुमति नहीं थी. रोक के बावजूद उन्होंने प्राइवेट प्रैक्टिस की. यहीं नहीं उन्होंने राजकीय सेवा में होने के 30 दिन के अंदर सीएमओ कार्यालय को अपनी नियुक्ति संबंधी जानकारी नहीं दी.

इन आरोपों पर डॉ. कफ़ील का कहना था, ‘वह एनआरएचएम में सीनियर रेजीडेंट नियुक्त हुए थे और उन्हें नॉन प्रैक्टिस भत्ते का भुगतान नहीं किया जा रहा था. लोक सेवा आयोग द्वारा प्रवक्ता पद पर कार्य करने के दौरान निजी प्रैक्टिस नहीं की और मेरे खिलाफ निजी प्रैक्टिस करने का कोई सबूत भी नहीं है.’

जांच अधिकारी ने अपनी जांच में पाया, ‘08 जुलाई 2017 के बाद आरोपी अधिकारी द्वारा प्राइवेट प्रैक्टिस किए जाने का कोई साक्ष्य अभिलेख में उपलब्ध नहीं है किन्तु आरोपी लोक सेवा चयन आयोग की नियुक्ति आदेश की सेवा शर्त और सीनियर रेजीडेंट पर तैनाती संबंधी सेवा शर्त के उल्लंघन का कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे सके हैं. आरोपी अधिकारी द्वारा राजकीय सेवा में होने के 30 दिन के अंदर सीएमओ, गोरखपुर को औपचारिक रूप से अवगत कराया जाना अपेक्षित था, जो उनके द्वारा नहीं किया गया है. जांच अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि प्राइवेट प्रैक्टिस के आरोप में डॉ. कफ़ील ने स्पष्ट उत्तर न देकर भ्रामक एवं आरोप से परे जाकर उत्तर दिया है. स्पष्ट है कि उनके द्वारा नियम-शर्तों का उल्लंघन का अनधिकृत रूप से प्राइवेट प्रैक्टिस किया जा रहा था.’

A room containing oxygen tanks is seen in the Baba Raghav Das hospital in Gorakhpur district, India August 13, 2017. REUTERS/Cathal McNaughton
(फोटो: रॉयटर्स)

जांच अधिकारी ने आरोप संख्या दो को सिद्ध पाया है. उन्होंने रिपोर्ट में लिखा है, ‘डॉ. कफ़ील अहमद ख़ान प्रवक्ता, बाल रोग के पद पर योगदान करने के दिनांक 08/08/16 के पश्चात 24/04/2017 तक मेडिस्प्रिंग हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर से जुड़े हुए थे और 24/04/2017 के बाद डॉ. ख़ान मेडिस्प्रिंग हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर से अलग हुए.’

ऑक्सीजन कांड में डॉ. कफ़ील पर लगे आरोप खारिज होने से एक बार फिर पुराने सवाल जिंदा हो गए हैं कि आखिरकार इस घटना के लिए कौन जिम्मेदार था और किसको बचाने के लिए डॉ. कफ़ील व अन्य को आरोपी बनाया गया?

घटना के तत्काल बाद सबसे पहले तत्कालीन जिलाधिकारी राजीव रौतेला ने पांच सदस्यीय जांच कमेटी बनाई थी, जिसने 24 घंटे में जांच पूरी कर 12 अगस्त 2017 को अपनी रिपोर्ट दे दी थी.

इस रिपोर्ट में डॉ. कफ़ील पर कोई आरोप नहीं लगाया गया था. इसके बाद डीजी मेडिकल एजुकेशन डॉ. केके गुप्ता ने गोरखपुर में नौ दिन रहकर घटना के संबंध में जांच रिपोर्ट तैयार की.

इस रिपोर्ट में डीएम द्वारा बनाई गई कमेटी की जांच रिपोर्ट में प्रथमदृष्टया दोषी पाए गए लोगों के अलावा डॉ. कफ़ील पर उपरोक्त आरोप लगाते हुए उन्हें भी जिम्मेदार बताया गया.

डॉ. गुप्ता की तहरीर पर ही लखनऊ में एफआईआर दर्ज हुई. वहां से विवेचना गोरखपुर स्थानांतरित की गई और फिर सभी आरोपियों की गिरफ्तारी की कार्रवाई हुई.

गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 10 और 11 अगस्त 2017 को लिक्विड ऑक्सीजन खत्म होने से 48 घंटे में 34 बच्चों और 18 वयस्कों की कथित तौर पर मौत हो गई थी. हालांकि प्रशासन ऑक्सीजन की कमी से बच्चों की मौत की बात से इनकार करती रही है.

एफआईआर में डॉ. कफ़ील को 100 बेड एईएस वार्ड का प्रभारी बताते हुए आरोप लगाया गया था कि ऑक्सीजन की कमी के बारे में वरिष्ठ अधिकारियों को संज्ञान में नहीं लाया गया, सरकारी ड्यूटी का नजरअंदाज करते हुए उत्तर प्रदेश मेडिकल काउंसिल में पंजीकृत न होने के बावजूद भी अपनी पत्नी शबिस्ता ख़ान द्वारा संचालित नर्सिंग होम में अनुचित लाभ हेतु अपने नाम से बोर्ड लगाकर प्रेक्टिस किया गया.

इसके अलावा उनके द्वारा मरीजों के इलाज में अपेक्षित सावधानी नहीं बरती गई, जीवन बचाने का प्रयास नहीं किया गया और डिजिटल माध्यम से धोखा देने के इरादे से गलत तथ्यों को संचार माध्यम में प्रसारित किया गया.

चार्जशीट के अनुसार विवेचना अधिकारी ने जांच में डॉ. कफ़ील ख़ान के खिलाफ 66 आईटी एक्ट से संबंधित कोई आपराधिक कृत्य नहीं पाया. उन्होंने यूट्यूब पर अपलोड डॉ. कफ़ील के वीडियो की प्रमाणित सीडी को देखने के बाद यह पाया कि उनके विरूद्ध 420 आईपीसी से संबंधित कोई साक्ष्य विवेचना अधिकारी को नहीं मिला. इसलिए चार्जशीट में यह धारा भी हटा ली गई है.

उनके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 7 (13) भी हटा लिया गया है क्योंकि चार्जशीट दाखिल होने तक हुई विवेचना में कहीं भी प्रमाणित नहीं हुआ कि डॉ. कफ़ील द्वारा किसी भी तरह से रिश्वत प्राप्त की गई हो या इसकी मांग की गई हो.

इस तरह विवेचना अधिकारी को प्राइवेट प्रैक्टिस से संबंधित 15 इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट का भी साक्ष्य नहीं मिला. इस तरह से उनके खिलाफ ये चार्ज हटा लिया गया.

यहां उल्लेखनीय है कि पुलिस ने अपनी जांच में प्राइवेट प्रैक्टिस से संबंधित 15 इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट का एक भी साक्ष्य ही पाया और इसलिए उनके खिलाफ ये चार्ज हटा लिया गया लेकिन विभागीय जांच में इन आरोपों को सिद्ध पाया जाना बताया गया है. जाहिर है कि दोनों जांच में इस बिंदु पर अन्तर्विरोध है.

यहां यह भी बताना जरूरी है कि विभागीय जांच में जिन दो आरोपों पर साक्ष्य के आधार पर डॉ. कफ़ील ख़ान को आरोप मुक्त किया गया है, उन साक्ष्यों पर पुलिस ने जांच के दौरान गौर ही नहीं किया जबकि डॉ. कफ़ील ने मुख्य सचिव को 18 अगस्त और पुलिस महानिदेशक को 28 अगस्त को पत्र भेजकर सभी साक्ष्य भेजे थे और इन्हें विवेचना में शामिल करने का अनुरोध किया था.

अब जब विभागीय जांच में डॉ. कफ़ील ख़ान ऑक्सीजन कांड से जुड़े आरोपों से मुक्त हो गए हैं तो उन पर पुलिस चार्जशीट में लगाए गए आरोपों को अदालत में साबित करना अभियोजन के लिए काफी कठिन होगा.

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)