टेलीकॉम कंपनियों से 92,000 करोड़ रुपये वसूलने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को दी अनुमति

केंद्र ने बीते जुलाई में शीर्ष अदालत को बताया था कि एयरटेल पर 21,682.71 करोड़ रुपये लाइसेंस शुल्क के बकाया थे. इसी तरह वोडाफोन पर 19,823.71 करोड़, रिलायंस कम्युनिकेशंस पर 16,456.47 करोड़ और सरकारी स्वामित्व वाले बीएसएनएल पर 2,098.72 करोड़ और एमटीएनएल पर 2,537.48 करोड़ रुपये बकाया है.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

केंद्र ने बीते जुलाई में शीर्ष अदालत को बताया था कि एयरटेल पर 21,682.71 करोड़ रुपये लाइसेंस शुल्क के बकाया थे. इसी तरह वोडाफोन पर 19,823.71 करोड़, रिलायंस कम्युनिकेशंस पर 16,456.47 करोड़ और सरकारी स्वामित्व वाले बीएसएनएल पर 2,098.72 करोड़ और एमटीएनएल पर 2,537.48 करोड़ रुपये बकाया है.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)
(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: दूरसंचार सेवा प्रदाता कंपनियों को बृहस्पतिवार को उस समय बड़ा झटका लगा जब उच्चतम न्यायालय ने उनसे करीब 92,000 करोड़ रुपये की समायोजित सकल आय (एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू- एजीआर) की वसूली के लिए केंद्र की याचिका स्वीकार कर ली.

जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस एस. अब्दुल नजीर और जस्टिस एमआर शाह की तीन सदस्यीय पीठ ने दूरसंचार विभाग द्वारा तैयार की गई समायोजित सकल आय की परिभाषा बरकरार रखी है.

पीठ ने कहा, ‘हमने व्यवस्था दी है कि समायोजित सकल आय की परिभाषा बरकरार रहेगी.’

इस संबंध में निर्णय के मुख्य अंश पढ़ते हुए शीर्ष अदालत ने कहा, ‘हम दूरसंचार विभाग की याचिका को स्वीकार करते हैं, जबकि कंपनियों की याचिका खारिज करते हैं.’

शीर्ष अदालत ने कहा कि उसने दूरसंचार कंपनियों की सभी दलीलों को खारिज कर दिया है. न्यायालय ने साफ किया कि कंपनियों को दूरसंचार विभाग को जुर्माना और ब्याज की रकम का भुगतान भी करना होगा.

पीठ ने स्पष्ट किया कि इस मामले मे आगे और कोई कानूनी वाद की अनुमति नहीं होगी. इसके अलावा वह एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू की गणना और कंपनियों को उसका भुगतान करने के लिए समयसीमा तय करेगी.

केंद्र ने जुलाई में शीर्ष अदालत से कहा था कि भारती एयरटेल, वोडाफोन जैसी प्रमुख निजी दूरसंचार कंपनियों और सरकार के स्वामित्व वाली एमटीएनएल और बीएसएनएल पर उस दिन तक 92,000 करोड़ रुपये से अधिक की राशि लाइसेंस शुल्क के रूप में बकाया है.

दूरसंचार विभाग ने न्यायालय में दाखिल हलफनामे में कहा था कि गणना के अनुसार, एयरटेल पर 21,682.71 करोड़ रुपये लाइसेंस शुल्क के बकाया थे. इसी तरह वोडाफोन पर 19,823.71 करोड़ रुपये और रिलायंस कम्युनिकेशंस पर 16,456.47 करोड़ रुपये बकाया था.

हलफनामे में यह भी कहा गया था कि बीएसएनएल पर 2,098.72 करोड़ रुपये और एमटीएनएल पर 2,537.48 करोड़ रुपये बकाया है.

हलफनामे के अनुसार, इन सभी दूरसंचार कंपनियों से कुल 92,641.61 करोड़ वसूल करना था.

नई दूरसंचार नीति के अनुसार दूरसंचार, लाइसेंसधारकों को अपनी समायोजित सकल आय का कुछ प्रतिशत सालाना लाइसेंस शुल्क के रूप में सरकार को देना होगा.

इसके अलावा मोबाइल संचार सेवा प्रदाताओं को उन्हें आवंटित स्पेक्ट्रम की रेडियो फ्रीक्वेंसी के उपयोग के लिए ‘स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क’ का भी भुगतान करना होता है.

दूरसंचार सेवा प्रदाता कंपनियों ने दूरसंचार विवाद निपटान और अपीलीय न्यायाधिकरण के आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की थी.

अपीलीय न्यायाधिकरण ने अपने फैसले में कहा था कि किराया, अचल संपत्ति की बिक्री पर लाभ, लाभांश और प्रतिभूति से होने वाली आमदनी जैसे गैर-संचार राजस्व को समायोजित सकल आय माना जाएगा जिस पर उन्हें सरकार को लाइसेंस शुल्क का भुगतान करना होगा.

दूरसंचार कंपनियों की वित्तीय हालत पतली करने वाला है फैसला: एयरटेल

दूरसंचार कंपनी भारती एयरटेल ने बृहस्पतिवार को कहा कि दूरसंचार क्षेत्र की कंपनियों की एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू पर कर के विषय में उच्चतम न्यायालय के फैसले से कंपनियां की व्यावहारिक रूप से वित्तीय स्थिति कमजोर होगी.

कंपनी ने कहा कि सरकार को इस प्रभाव की समीक्षा करनी चाहिए और संकट से गुजर रहे उद्योग पर वित्तीय बोझ को कम करने के रास्ते तलाशने चाहिए.

उच्चतम न्यायालय ने दूरसंचार सेवा प्रदाता कंपनियों से करीब 92,000 करोड़ रुपये की एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू की वसूली के लिए केंद्र की याचिका स्वीकार कर ली है. इससे कंपनियों पर वित्तीय बोझ बढ़ेगा.

भारती एयरटेल ने फैसले पर निराशा जताते हुए कहा, ‘दूरसंचार सेवा प्रदाता दूरसंचार क्षेत्र को विकसित करने और ग्राहकों को विश्वस्तरीय सेवाएं देने के लिए अरबों डॉलर का निवेश कर रहे हैं. यह फैसला ऐसे समय आया है जब दूरसंचार क्षेत्र वित्तीय संकट से गुजर रहा है और यह फैसला क्षेत्र की सफलतापूर्वक काम करने की क्षमता को और कमजोर कर सकता है.’

कंपनी ने कहा कि इस फैसले का असर 15 पुरानी दूरसंचार कंपनियों पर पड़ा है. एयरटेल पर अकेले 21,000 करोड़ रुपये की देनदारी होने का अनुमान है.

भारती एयरटेल ने कहा, ‘सरकार को इस फैसले के प्रभाव की समीक्षा करनी चाहिए और उद्योग पर वित्तीय बोझ को कम करने के उचित तरीके खोजने चाहिए.’

वोडाफोन का शेयर 23 और एयरटेल का शेयर 9.68 प्रतिशत गिरा

उच्चतम न्यायालय द्वारा बृहस्पतिवार को केंद्र की दूरसंचार सेवा प्रदाता कंपनियों से 92,000 करोड़ रुपये के सकल समायोजित राजस्व (एजीआर) पर वसूली संबंधी याचिका को स्वीकार करने के बाद वोडाफोन आइडिया के शेयर में भारी गिरावट आई.

दिन में कारोबार के दौरान वोडाफोन आइडिया का शेयर एक समय 27 प्रतिशत तक टूट गया था. अंत में बंबई शेयर बाजार में कंपनी का शेयर 23.36 प्रतिशत के नुकसान से 4.33 रुपये पर बंद हुआ.

दिन में कारोबार के दौरान यह एक समय 27.43 प्रतिशत के नुकसान से अपने 52 सप्ताह के निचले स्तर 4.10 रुपये पर आ गया था.

शेयरों में भारी गिरावट के बीच वोडाफोन आइडिया का बाजार पूंजीकरण 3,792.58 करोड़ रुपये घटकर 12,442.42 करोड़़ रुपये पर आ गया.

भारती एयरटेल का शेयर भी एक समय 9.68 प्रतिशत टूटकर 325.60 रुपये पर आ गया. हालांकि, बाद यह सुधरा और अंत में 3.31 प्रतिशत की बढ़त के साथ 372.45 रुपये पर बंद हुआ.

न्यायालय फैसला दूरसंचार उद्योग के लिए विनाशकारी: सीओएआई

दूरसंचार सेवा प्रदाता कंपनियों के संगठन सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) ने दूरसंचार राजस्व परिभाषा पर उच्चतम न्यायालय के आदेश को उद्योग के लिए विनाशकारी बताया, क्योंकि उद्योग पहले ही अनिश्चित वित्तीय परिस्थितियों का सामना कर रहा है.

सीओएआई के महानिदेशक राजन मैथ्यूज ने कहा, ‘सवाल यह है कि क्या यह वह वित्तीय लाठी है जो अंतत: दूरसंचार सेवाप्रदाताओं की कमर तोड़ देगा.’ मैथ्यूज ने कहा कि मौजूदा तनाव की स्थिति में यह फैसला उद्योग के लिए विनाशकारी होगा.

डेलॉइट इंडिया में प्रौद्योगिकी मीडिया और दूरसंचार (टीएमटी) के लीडर हेमंत जोशी ने कहा कि यह पहले से घाटे में चल रहे दूरसंचार उद्योग पर और दबाव बढ़ाएगा. एक अन्य प्रौद्योगिकी मीडिया और दूरसंचार लीडर प्रशांत सिंघल ने कहा कि इस निर्णय का उद्योग पर बहुत असर पड़ेगा, जबकि वह पहले से ही वित्तीय दबाव में है.

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