असहिष्णुता को लेकर बतौर राष्ट्रपति चंद नसीहत भरे भाषण के अलावा प्रणब ने क्या किया था?

अगर देश के संविधान का मूल स्तंभ सहिष्णुता और धर्म-निरपेक्षता है, तो फिर मोदी सरकार के शुरुआती तीन साल तक संविधान के मुखिया के पद पर बैठकर प्रणब मुखर्जी ने क्या किया?

न्यायपालिका की स्वतंत्रता को ख़तरा महाभियोग से नहीं, सत्तापक्ष के दख़ल से है

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के ख़िलाफ़ महाभियोग लाया गया तो ऐसा माहौल बना जैसे ऐसा करने से जनता का न्याय से विश्वास उठ जाएगा और लोकतंत्र ख़तरे में पड़ जाएगा.

भाजपा ‘सबका साथ-सबका विकास’ का मुखौटा उतारकर उग्र हिंदुत्व पर उतर आई है

उत्तर प्रदेश उपचुनाव में मुंह की खाने के बाद भाजपा को लगने लगा है कि साल 2019 में उसकी चुनावी वैतरणी विकास से नहीं बल्कि दंगे और उससे होने वाले मतों के ध्रुवीकरण से पार लगेगी.

आर्थिक सुधारों के बाद से उद्योग घरानों ने ही बैंकों को लूटा है

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को आर्थिक संकट में उद्योगपतियों ने ही डाला है और कमाल की बात यह है कि निजीकरण के तहत इन बैंकों को एक तरह से उनके ही क़ब्ज़े में देने की बातें हो रही हैं.