‘अल्लाहू अकबर’ की पुकार के साथ हत्या का मेल कैसे बर्दाश्त किया जा सकता है?

फ्रांस में जो हुआ, उसके लिए दुनिया के सारे मुसलमान जवाबदेह नहीं, लेकिन जब अल्लाह का नाम लेकर क़त्ल किया जा रहा हो, तो अल्लाह के बंदों को क़ातिल से कहना चाहिए कि वह क़त्ल के साथ ये मुक़द्दस नाम लेकर ही कुफ़्र कर रहा है.

स्त्री रक्षा करो, गोरक्षा हो जाएगी

लड़कियों को बिना दिमाग का और भावुक फिसलन की शिकार माना जाता है और इसलिए उन पर निगाह और लगाम रखने की ज़रूरत है. लड़कियां ज़िंदा बम है और उनको फटने से बचाना सबसे बड़ा धार्मिक कर्तव्य. लगता है कि राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष इसी कर्तव्य निर्वाह के पवित्र अभियान पर निकल पड़ी हैं.

टाटा का नया भारत

तनिष्क के आभूषण उस विज्ञापन के बावजूद बिकते रहेंगे. टाटा को इसका अंदाज़ा है कि उनके ख़रीददारों में बहुसंख्या उनकी है जो उनकी दुकानों पर हमला करने नहीं आएंगे, लेकिन इससे भी ज़्यादा उन्हें ये मालूम है कि उनके ग्राहकों का मौन समर्थन हुल्लड़बाज़ों को है. उनके दिल-दिमाग का लफंगीकरण हो चुका है.

आदिवासियों के पड़ोसी फादर स्टेन स्वामी आज जेल में हैं

हमारे देश और राज्य को सुरक्षित रखने के नाम पर अगर स्टेन स्वामी को क़ैद में डाला जा सकता है तो क्या हम ख़ुद को आज़ाद कहलाने के क़ाबिल रह गए हैं?

राष्ट्रवाद और डंडावाद

प्रेमचंद महात्मा गांधी की आंदोलन पद्धति के मुरीद थे. सशस्त्र आतंक के ज़रिये क्रांति या मुक्ति के नारे प्रेमचंद का खून गर्म नहीं कर पाते क्योंकि वे हिंसा के इस गुण या अवगुण को पहचानते थे कि वह कभी भी शुभ परिणाम नहीं दे सकती.

विरोधियों ने साज़िश के तहत भारत में जन्म लिया है, जिससे वे सरकार का विरोध कर सकें…

जनता के हर विरोध को अपराध ठहराया जा रहा है. वह दिन दूर नहीं है जब सरकार भारतीयों को यह बताएगी कि उनका बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ बोलना, किसानों का सरकार के ख़िलाफ़ खड़े होना, सब कुछ अंतरराष्ट्रीय साज़िश है. भारत में जन्म लेना भी एक षड्यंत्र घोषित किया जा सकता है.

बाबरी विध्वंस फ़ैसला: छल और बल का न्याय

समाज से न्याय का बोध लुप्त हो सकता है, उससे भी ख़तरनाक है जब वह इंसाफ़ की परवाह ही न करे. भारत का बहुसंख्यक समाज अभी अपने बाहुबल के नशे में है. न्याय उसके लिए अप्रासंगिक हो चुका है. वह जानता है कि उसके नाम पर जो हो रहा है, वह अन्याय है, लेकिन वह इससे परेशान नहीं बल्कि प्रसन्न है.

मनुष्यता के लिए विरोध अनिवार्य है

किसान के प्रतिरोध में सिर्फ किसान रहें, मजदूर प्रतिरोध में सिर्फ मजदूर, दलितों के विरोध में सिर्फ दलित, यह भी अत्याचार को बनाए रखने का एक तरीका है. यह विरोध का संप्रदायवाद है. सत्ता इसलिए कहती है कि किसान का विरोध तब अशुद्ध है जब उसमें छात्र और व्यापारी शामिल हों.

दिनकर: कोप से आकुल जनता का कवि

पिछले पांच-छह सालों में दिनकर का कीर्तन वैसे लोगों ने किया है, जिन्हें शायद वे अपनी चौखट न लांघने देते. उनकी ओजस्विता से इस भ्रम में नहीं पड़ जाना चाहिए कि वे हुंकारवादी राष्ट्रवाद के प्रवक्ता थे. वे राष्ट्रवादी थे, लेकिन ऐसा राष्ट्रवादी जो अपने राष्ट्र को नित नया हासिल करता था और कृतज्ञ होता था.

स्वामी अग्निवेश: आधुनिक आध्यात्मिकता का खोजी

स्वामी अग्निवेश गांधी की परंपरा के हिंदू थे, जो मुसलमान, सिख, ईसाई या आदिवासी को अपने रंग में ढालना नहीं चाहता और उनके लिए अपना खून बहाने को तत्पर खड़ा मिलता है. वे मुसलमानों और ईसाइयों के सच्चे मित्र थे और इसीलिए खरे हिंदू थे.

नंदकिशोर नवल: शेष है साहित्य ही

मेरा जीवन क्षणिक है, मैं इस अनंत में एक कण हूं लेकिन मैं हूं और मेरे होने का अर्थ है, अपने बारे में यह नवलजी का विश्वास था और इसका प्रमाण वे तमाम प्रकाशित और अप्रकाशित कृतियां हैं, जिनमें वे जीवित हैं.

फाइनल ईयर परीक्षाएं: विद्यार्थी की जान और यूजीसी की शान

अगर यूजीसी को अंतिम परीक्षा लेने का अपना निर्णय इतना उचित लग रहा है तो वह इसके तर्क विस्तार से क्यों नहीं बता रहा और उसमें जो विकल्प हो सकते हैं उन पर विचार क्यों नहीं कर रहा? हड़बड़ी में सिर्फ अपनी सत्ता स्थापित करने के लिए छात्रों के स्वास्थ्य की परवाह किए बिना शिक्षा की गुणवत्ता पर ज़ोर देना अमानवीयता है.

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