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दीपक गोस्वामी

उत्तर प्रदेश चुनाव: क्या प्रियंका गांधी कांग्रेस को नई पहचान देने में कामयाब हो सकेंगी

2019 के लोकसभा चुनाव में प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश से सक्रिय राजनीति में क़दम रखा था, तब भले ही वे कोई कमाल नहीं दिखा सकीं, पर उसके बाद से राज्य में उनकी सक्रियता चर्चा में रही. विपक्ष के तौर पर एकमात्र प्रियंका ही थीं जो प्रदेश में हुई लगभग हर अवांछित घटना को लेकर योगी सरकार को घेरती नज़र आईं.

उत्तर प्रदेश: पृथक बुंदेलखंड की मांग चुनावी मुद्दा क्यों नहीं बन पाती है

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 13 ज़िलों में फैले बुंदेलखंड को पृथक राज्य बनाने की मांग क़रीब 65 वर्ष पुरानी है. नब्बे के दशक में इसने आंदोलन का रूप भी लिया, समय-समय पर नेताओं ने इसके सहारे वोट भी मांगे लेकिन अब यह मतदाताओं को प्रभावित कर सकने वाला मुद्दा नहीं रह गया है.

यूपी: उमा भारती द्वारा गोद लेने के बावजूद पहुज नदी की स्थिति बद से बदतर क्यों होती चली गई

ग्राउंड रिपोर्ट: साल 2014 में तत्कालीन केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने सांसद ग्राम योजना की तर्ज पर अपने संसदीय क्षेत्र झांसी की पहुज नदी को गोद लेते हुए इसके संरक्षण का बीड़ा उठाया था, लेकिन आज वही पहुज नदी बांध निर्माण, प्रदूषण व अतिक्रमण के चलते अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है.

उत्तर प्रदेश: स्मार्ट सिटी के तमगे के बावजूद झांसी बदहाल क्यों है

ग्राउंड रिपोर्ट: झांसी बुंदेलखंड क्षेत्र का सबसे बड़ा शहर है, जो स्मार्ट सिटी में भी शुमार है. लेकिन शहर और इससे सटे गांवों में पानी की भारी किल्लत और पलायन की समस्या क्षेत्र की समस्याओं की बानगी भर हैं.

‘भाजपा लक्ष्मीबाई से वही झांसी छीन रही है जो वे मरते दम तक अंग्रेज़ों को नहीं देना चाहती थीं’

ग्राउंड रिपोर्ट: विधानसभा चुनाव की घोषणा से ठीक पहले उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने झांसी रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर ‘वीरांगना लक्ष्मीबाई’ कर दिया था, जिससे झांसी के लोग ख़ुश नहीं हैं. यहां तक कि स्वयं को सरकार और भाजपा समर्थक बताने वाले लोग भी इसे ग़लत बता रहे हैं.

Noida: A view of statues of elephants, BSP party's symbol, at Dalit Prerna Sthal, in Noida, Friday, Feb 8, 2019. The Supreme Court said it was of the tentative view that BSP chief Mayawati has to deposit public money used for erecting statues of herself and elephants, the party's symbol, at parks in Lucknow and Noida to the state exchequer. (PTI Photo) (PTI2_8_2019_000180B)

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी कहां है

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव प्रचार में जहां भाजपा, सपा-रालोद और कांग्रेस लगातार मैदान में दिखाई दे रहे हैं, वहीं बसपा सुर्ख़ियों से ग़ायब-सी है.

मध्य प्रदेश: सत्ता और विपक्ष के बीच ओबीसी आरक्षण को लेकर हो रही खींचतान की वजह क्या है

सुप्रीम कोर्ट के एक फ़ैसले से राज्य की भाजपा सरकार और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के बीच इस बात पर घमासान मचा है कि दोनों में कौन बड़ा ओबीसी हितैषी है और कौन विरोधी. इस तनातनी का केंद्रबिंदु राज्य के पंचायत चुनाव रहे, जिन्हें लगभग सभी तैयारियां पूरी होने के बावजूद ऐन वक़्त पर निरस्त करना पड़ा.

मध्य प्रदेश: ‘उन्होंने हमें पीटा, हमारा बच्चा मार डाला फिर हम पे ही केस लगा दिया’

ग्राउंड रिपोर्ट: नौ नवंबर को शिवपुरी ज़िले के रामनगर गधाई गांव में खेत के पास एक पुलिया बनाने को लेकर हुए विवाद के बीच कथित तौर पर पुलिस के लाठीचार्ज में दस महीने के शिशु की मौत हो गई. पीड़ित परिवार का कहना है कि उनके परिवार की महिलाओं को पीटा गया और अब उन्हीं के परिवार के पंद्रह सदस्यों के ख़िलाफ़ संगीन धाराओं में केस दर्ज किया गया है.

मध्य प्रदेश: भिंड-मुरैना के किसानों के लिए डीएपी खाद पाना चुनौती क्यों बन गया है

मध्य प्रदेश में सर्वाधिक सरसों उत्पादन भिंड और मुरैना ज़िलों में होता है. अक्टूबर में रबी सीज़न आते ही सरसों की बुवाई शुरू हो चुकी है, जिसके लिए किसानों को बड़े पैमाने पर डीएपी खाद की ज़रूरत है. लेकिन सरकारी मंडियों से लेकर, सहकारी समितियों और निजी विक्रेताओं के यहां बार-बार चक्कर काटने के बावजूद भी किसानों को खाद नहीं मिल रही है.

मध्य प्रदेश: बरसों से उपेक्षित आदिवासी समुदाय अचानक राजनीति के केंद्र में क्यों आ गया है

हाल ही में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 15 नवंबर यानी बिरसा मुंडा जयंती को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाने और इस रोज़ भव्य आयोजन करने की घोषणा की थी. सरकार व भाजपा संगठन का कहना है कि 15 नवंबर तक वे प्रदेश भर में जनजातियों से जुड़े विभिन्न आयोजन करेंगे. विपक्षी कांग्रेस भी प्रदेश में ‘आदिवासी अधिकार यात्रा’ निकाल रही है.

क्या भारतीय महिला क्रिकेट के आगे बढ़ने की राह में बीसीसीआई ही सबसे बड़ा रोड़ा है

विशेष रिपोर्ट: महिला क्रिकेट की कम लोकप्रियता के लिए हमेशा व्यूअरशिप यानी उसे कम देखे जाने को ज़िम्मेदार बताया जाता है. इसके बावजूद भारतीय महिला क्रिकेट टीम के पहली बार हो रहे डे-नाइट टेस्ट मैच के दिनों में ही बीसीसीआई ने आईपीएल मैच रखे हैं. आंकड़े दिखाते हैं कि बीसीसीआई में महिला क्रिकेट का विलय होने के बाद से टीम को न सिर्फ खेलने के कम मौके मिले, बल्कि उनके मैच भी ऐसे दिन हुए जब पुरुष टीम भी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेल रही थी.

भोपाल गैस पीड़ित विधवाओं को पेंशन देने की घोषणा हक़ीक़त में कब बदलेगी?

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में दिसंबर 1984 में हुई गैस त्रासदी ने तमाम महिलाओं से उनके पति को छीनकर उन्हें बेसहारा बना दिया था. उनकी आर्थिक मदद के लिए पेंशन योजना शुरू की गई थी, जिस पर दिसंबर 2019 से राज्य सरकार ने रोक लगा दी है. इसे दोबारा शुरू करने की घोषणा तो लगातार की जा रही हैं, लेकिन कोरोना काल में बुरी तरह से प्रभावित ये विधवा महिलाएं अब तक इससे महरूम हैं.

मध्य प्रदेश: वन विभाग की अधिकारी को क्या रेत खनन माफिया पर नकेल कसने की सज़ा मिली है

विशेष रिपोर्ट: मुरैना ज़िले के राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य में बतौर अधीक्षक तैनात श्रद्धा पांढरे ने अप्रैल में पदभार संभालने के बाद से ही क्षेत्र के रेत खनन माफिया के ख़िलाफ़ लगातार कार्रवाई की. इस दौरान उन पर ग्यारह हमले भी हुए. अब तीन महीनों के कार्यकाल के बाद ही ‘रूटीन कार्रवाई’ बताते हुए उनका तबादला कर दिया गया.

मध्य प्रदेश: चार साल के कार्यकाल में आठ तबादले पा चुके आईएएस अफ़सर को लेकर बवाल क्यों मचा है

मध्य प्रदेश कैडर के 2014 बैच के आईएएस अधिकारी लोकेश जांगिड़ अप्रैल 2021 में बड़वानी के अपर कलेक्टर नियुक्त हुए थे, जिसके 42 दिनों के भीतर ही उनका तबादला हो गया. राज्य के आईएएस संघ के एक ऑनलाइन ग्रुप चैट के आधार पर कहा जा रहा है कि तबादले की असली वजह कलेक्टर के भ्रष्टाचार पर जांगिड़ का आपत्ति जताना था. मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पत्नी का भी नाम आया है.

मध्य प्रदेश: पर्यावरण दिवस पर वन बचा रहे शिवराज बक्सवाहा के जंगलों की बर्बादी पर मौन क्यों हैं

बुंदेलखंड क्षेत्र में हीरा खनन के लिए छतरपुर ज़िले के बक्सवाहा जंगल के एक बड़े हिस्से में लगे दो लाख से अधिक पेड़ काटे जाने की योजना है, जिसका व्यापक स्तर पर विरोध हो रहा है. विडंबना यह है कि बीते दिनों पर्यावरण बचाने की कसमें खाने वाले सत्ता और विपक्ष के अधिकांश नेता इसे लेकर चुप्पी साधे हुए हैं.