मनोज झा के भाषण को लेकर विवाद की जडे़ं सिर्फ वहीं नहीं, जहां बताई जा रही हैं 

सामाजिक न्याय के लिए लड़ने का दावा करने वाले हिंदुत्ववादी शक्तियों से किसी सुविचारित दीर्घकालिक रणनीति के बजाय चुनावी समीकरणों के सहारे निपटते रहे. इसने उन्हें सत्ता दिलाई तो भी सामाजिक न्यायोन्मुख नीतियां लागू व कार्यक्रम चलाकर उसकी अपील का विस्तार नहीं किया. 

अयोध्या: फिर विवादों में क्यों है श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट?

अयोध्या में ज़मीन खरीद-फ़रोख़्त में भ्रष्टाचार के आरोपों के घेरे में रह चुकी श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट पर अब हनुमानगढ़ी के नागा साधुओं ने गढ़ी की अंगद टीले की भूमि हड़पने के प्रयास करने और धोखाधड़ी का आरोप लगाया है.

संसद के विशेष सत्र में क्यों अवांतर होकर रह गया सरोजिनी नायडू का ज़िक्र?

बीते दिनों संसद के विशेष सत्र के दौरान राज्यसभा में राजद सदस्य मनोज झा ने सरोजिनी नायडू से जुड़े एक प्रसंग का ज़िक्र किया, तो यह जोड़ना नहीं भूले कि वे संविधान सभा के लिए बिहार से चुनी गई थीं. उनके इस स्वाभिमान में कुछ बुरा नहीं था लेकिन अफ़सोस कि उत्तर प्रदेश, जहां कि वे पहली राज्यपाल थीं, का कोई सदस्य न कह सका कि वे यूपी ही क्या, पूरे देश की थीं.

बलभद्र प्रसाद दीक्षित ‘पढ़ीस’: अवधी ने अपने पहले वर्गसचेत व वर्जनाभंजक कवि को क्यों भुला दिया

जन्मदिन विशेष: आज़ादी की लड़ाई के समय लखनऊ में अवधी के बडे़ कवि बलभद्र प्रसाद दीक्षित ‘पढ़ीस’ जितने कवि थे, उससे ज़्यादा एक्टिविस्ट. जाति व वर्ण व्यवस्थाओं और ग़ैर-बराबरी के ख़िलाफ़ होकर ब्रिटिश सरकार की नौकरी छोड़कर उन्होंने श्रमजीवी बनने की राह चुनी थी.

‘दिल्ली के देवों! होश करो, सब दिन तो यह मोहिनी न चलने वाली है’

जन्मदिन विशेष: रामधारी सिंह दिनकर उन कवियों के लिए सबक थे- आज भी हैं- जो कई बार देश ओर कविता के प्रति अपनी निष्ठाओं की क़ीमत पर ‘अपनी’ सरकार के चारण बन जाते हैं.

क्या अयोध्या में लाए गए क्रूज़ का हश्र ‘ऊंची दुकान, फीका पकवान’ की मिसाल है?

अयोध्या में बीते दिनों बड़े प्रचार के साथ सरयू नदी में शुरू की गई 'क्रूज़' सेवा जनता को लुभाने में नाकामयाब रही है. हफ्तेभर में ही कम लोगों के पहुंचने के बीच इसका किराया घटा दिया गया है. यात्रा कर चुके लोगों ने भी 'क्रूज़' के रंग-रोगन से लेकर इसमें दी जाने वाली सुविधाओं पर सवाल उठाए हैं.

जस्टिस चंद्रू जैसी शख़्सियतें भले ही किसी की रोल माॅडल न रह गई हों, लेकिन उन पर चर्चा ज़रूरी है

वकालत की अपनी पारी को विराम देकर जस्टिस के. चंद्रू 31 जुलाई, 2006 को जब मद्रास उच्च न्यायालय के जज बने तो मामलों की सुनवाई और फैसलों की गति ही नहीं तेज की, न्याय जगत की कई पुरानी औपनिवेशिक परंपराओं और दकियानूसी रूढ़ियों को भी तोड़ डाला. साथ ही कई नई और स्वस्थ परंपराओं का निर्माण भी किया.

दादाभाई नौरोजी, जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्यवाद द्वारा भारत के दोहन की पोल खोली

जन्मदिन विशेष: भारतीयों के लिए स्वराज या स्वशासन की मांग उठाने वाले पहले नेता दादाभाई नौरोजी का व्यक्तित्व व कृतित्व गवाह हैं कि कैसे प्रगतिशील राजनीतिक शक्ति इतिहास के काले अध्यायों में भी एक रोशनी की किरण की तरह होती है.

अयोध्या: किसी शहर या समाज को विश्वविद्यालय की ज़्यादा ज़रूरत होती है या हवाई अड्डे की?

2021 में अयोध्या के राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय की एक चौथाई भूमि 'मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे' के निर्माण के लिए निशुल्क ‘समर्पित’ की गई थी. आज हवाई अड्डे का निर्माण पूरा होने का दावा किया जा रहा है, वहीं विश्वविद्यालय सिकुड़कर उससे संबद्ध कई महाविद्यालयों से भी छोटा हो चुका है.

काज़ी नज़रुल इस्लाम: ‘हिंदू हैं या मुसलमान, यह सवाल कौन पूछता है?’

पुण्यतिथि विशेष: असहयोग आंदोलन की पृष्ठभूमि में रची कविता में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ विद्रोह के आह्वान के बाद नज़रुल इस्लाम ‘विद्रोही कवि’ कहलाए. उपनिवेशवाद, धार्मिक कट्टरता और फासीवाद के विरोध की अगुआई करने वाली उनकी रचनाओं से ही इंडो-इस्लामिक पुनर्जागरण का आगाज़ हुआ माना जाता है.

यूपी: राहुल अमेठी से लोकसभा का चुनाव लड़ें तो… और न लड़ें तो?

चुनाव हमेशा पुराने आंकड़ों व समीकरणों के बूते नहीं जीते जाते, कई बार उन्हें परसेप्शन और मनोबल की बिना पर भी जीता जाता है. राहुल गांधी अमेठी व प्रियंका गांधी वाराणसी से चुनाव मैदान में उतर जाएं तो अनुकूल परसेप्शन बनाने के भाजपा, नरेंद्र मोदी के महारत का वही हाल हो जाएगा, जो पिछले दिनों विपक्षी गठबंधन का ‘इंडिया’ नाम रखने से हुआ था.

अयोध्या के लोगों को ‘त्रेता की वापसी’ की अभी और कितनी बड़ी क़ीमत चुकानी होगी?

अयोध्या का रंग-रूप बदलकर ‘त्रेता की वापसी’ करा देने के लिए वहां चल रही व्यापक तोड़-फोड़ की आपाधापी और अनियोजित कवायदों से ध्वस्त हुई नागरिक व्यवस्थाओं के चलते कई लोग जान गंवा चुके हैं.

आज देश में स्वतंत्रता बची है या महज़ स्वतंत्रता का धोखा?

समानता के बिना स्वतंत्रता और स्वतंत्रता के बिना समानता पूरी नहीं हो सकती. बाबा साहब आंबेडकर का भी यही मानना था कि अगर राज्य समाज में समानता की स्थापना नहीं करेगा, तो देशवासियों की नागरिक, आर्थिक और राजनीतिक स्वतंत्रताएं महज धोखा सिद्ध होंगी.

मनोहरलाल खट्टर सारे हरियाणवियों को सुरक्षा क्यों नहीं दे सकते?

देश की ग़ुलामी के दौर में विदेशी हुक्मरानों तक ने अपनी पुलिस से लोगों के जान-माल की रक्षा की अपेक्षा की थी, मगर अब आज़ादी के अमृतकाल में लोगों की चुनी हुई सरकार अपनी पुलिस के बूते सबको सुरक्षा देने में असमर्थ हो गई है.

अयोध्या: क्या राम मंदिर की भव्यता छोटे मंदिर और पुजारियों को भारी पड़ रही है?

अयोध्या में राम मंदिर तक पहुंचने के लिए पारंपरिक मार्ग बंद करके नया राम जन्मभूमि पथ खोल दिया गया है, जिसके चलते पारंपरिक मार्ग पर स्थित दर्जन भर मंदिर वीरान से हो गए हैं. श्रद्धालुओं के दान से ही चलने वाले मंदिरों की देख-रेख करने वाले आगामी संकट की संभावना से सशंकित हैं.

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