बीते 14 अगस्त को आज़मगढ़ ज़िले के तरवां थाना क्षेत्र के बांसगांव के ग्राम प्रधान सत्यमेव जयते की गोली मारकर हत्या कर दी गई. अनुसूचित जाति से आने वाले प्रधान के परिजनों का आरोप है कि गांव के कथित ऊंची जाति के लोगों ने ऐसा यह संदेश देने के लिए किया कि आगे कोई दलित निर्भीकता से खड़ा न हो सके.
विशेष: साल 2017 में 10 से 11 अगस्त के बीच गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी से क़रीब 34 बच्चों की मौत हुई थी. जान गंवाने वाले बच्चों में शहर के जाहिद की पांच साल की बेटी ख़ुशी भी थी.
गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में हुए ऑक्सीजन कांड के तीन बरस पूरे हो गए. लेकिन इस दौरान हादसे में 'विलेन' बना दिए गए डॉ. कफील ख़ान के अलावा नौ आरोपियों में से कोई इस प्रकरण पर बोलने के लिए सामने नहीं आया. शायद यही वजह है कि इन तीन बरसों में डॉ. कफील ने अधिकतर समय जेल में बिताया है.
उत्तर प्रदेश में बृहस्पतिवार की सुबह तक कोविड-19 के कुल केस 104,388 हो चुके थे. अभी भी एक्टिव केस 41,973 हैं और अब तक 1,857 व्यक्तियों की मौत हो चुकी है.
कुख्यात अपराधी विकास दुबे को पकड़ने गए पुलिसकर्मियों की बर्बर हत्या को एक अपराधी के दुस्साहस और पुलिस की रणनीति में कमी तक सीमित करना अपराध-राजनीति के गठजोड़ की अनदेखी करना है. बिना राजनीतिक संरक्षण के किसी अपराधी में इतनी हिम्मत नहीं आ सकती कि वह पुलिस टीम को घेरकर मार डाले और आराम से फ़रार हो जाए.
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर-महराजगंज ज़िले को कभी बेशकीमती साखू-सागौन के जंगल लगाकर आबाद करने वाले वनटांगियों के पास पर्याप्त ज़मीन और कृषि संसाधन थे, लेकिन समय के साथ नई पीढ़ियां उचित आय और आजीविका के अभाव में शहर की राह पकड़ने को विवश हो गईं.
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी ज़िले के एक गांव के रहने वाले 50 वर्षीय भानु प्रकाश गुप्ता शाहजहांपुर के एक ढाबे में काम किया करते थे, पर लॉकडाउन में ढाबा बंद होने से काम छूटा और वे परिवार सहित गांव लौट गए. ग़रीबी और बेरोज़गारी से परेशान भानुप्रकाश ने 29 मई को ट्रेन के सामने आकर अपनी जान दे दी.
बीते 26 मई को झांसी से गोरखपुर जा रही एक श्रमिक स्पेशल ट्रेन में सवार आज़मगढ़ के 45 वर्षीय प्रवासी श्रमिक रामभवन मुंबई से अपने परिवार सहित घर लौट रहे थे, जब रास्ते में अचानक उनकी तबियत ख़राब होने लगी. परिजनों का कहना है कि समय पर उचित मेडिकल सहायता न मिलने के कारण उन्होंने कानपुर सेंट्रल स्टेशन पर दम तोड़ दिया.
दुनिया घूमने निकला फ्रांस का एक परिवार मार्च में भारत के रास्ते नेपाल जा रहा था, जब दोनों ही देशों में कोरोना संक्रमण के चलते हुए लॉकडाउन के कारण वे भारत की सीमा में ही रह गया. बीते दो महीने से वे लोग महराजगंज ज़िले के अचलगढ़ गांव में रह रहे हैं.
उत्तर प्रदेश के कुशीनगर ज़िले के बहुआस के रहने वाले राजू गुजरात के अंकलेश्वर में काम करते थे. चार मई को वे साइकिल से अपने गांव जाने के लिए निकले थे, इसी शाम उनका शव बड़ौदा के करजन में नेशनल हाईवे पर मिला.
दूसरे राज्यों में फंसे कामगारों को उनके गृह राज्य पहुंचाने के लिए चलाई गई श्रमिक स्पेशल ट्रेन के रजिस्ट्रेशन की जद्दोजहद के बाद यात्रा की तारीख तय न होने से मज़दूर हताश हैं. कर्नाटक, कश्मीर और गुजरात के कई कामगार इस स्थिति से निराश होकर साइकिल या पैदल निकल चुके हैं या ऐसा करने के बारे में सोच रहे हैं.
देशव्यापी लॉकडाउन के बीच हैदराबाद से आ रहे उत्तर प्रदेश के महराजगंज के मज़दूरों का एक समूह 10 मई को कानपुर से एक बालू लदे ट्रक में सवार होकर घर की ओर निकला था, लेकिन गोरखपुर के सहजनवां थाना क्षेत्र के पास यह ट्रक अनियंत्रित होकर पलट गया, जिसमें दो श्रमिकों की जान चली गई.
महाराष्ट्र के भिवंडी में काम कर रहे पावरलूम मज़दूरों का एक समूह 25 अप्रैल को उत्तर प्रदेश के महराजगंज आने के लिए साइकिल से निकला था. इस समूह के एक सदस्य तबारक अंसारी ने करीब 400 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद मध्य प्रदेश के सीमाई क्षेत्र के सेंदुआ में दम तोड़ दिया.
बिहार के सीतामढ़ी के रहने वाले ये मज़दूर उदयपुर की जयसमंद झील में मछली पकड़ने का काम करते थे. लॉकडाउन का दूसरा चरण शुरू होने तक किसी तरह की मदद न मिलने पर इन्होंने घर का रुख़ किया. रास्ते में कहीं ट्रकवालों, तो कहीं ग्रामीणों की मदद से ये सभी 13 दिन बाद रविवार को अपने गांव पहुंचे हैं.
गोरखपुर ज़िले के भटहट क्षेत्र के एक गांव के रहने वाले राजेंद्र और धर्मेंद्र निषाद हैदराबाद में काम करते थे, जहां लॉकडाउन के दौरान राजेंद्र की तबियत बिगड़ी और डॉक्टरों ने जवाब दे दिया. गांव की ज़मीन गिरवी रख और क़र्ज़ लेकर किसी तरह उन्हें घर लाया जा रहा था, जब उन्होंने गांव के रास्ते में दम तोड़ दिया.