जलपाईगुड़ी बाल तस्करी मामले में पश्चिम बंगाल भाजपा की महिला नेता जूही चौधरी को सीआईडी ने गिरफ्तार कर लिया है. इस मामले में भाजपा के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय और रूपा गांगुली का भी नाम सामने आया है.
विशेषज्ञों का मानना है कि फरक्का बैराज परियोजना से जितना फायदा हुआ उससे कई गुना ज़्यादा नुकसान हो चुका है. इसका कोई समाधान न निकाला गया तो व्यापक तबाही के लिए तैयार रहना होगा.
2002 के गुजरात दंगों में विस्थापित हुए लोगों की सुध लेने वाला कोई नहीं है. दंगों के 15 साल बाद भी उनके पास न ज़मीन है न आधारभूत सुविधाएं.
कश्मीर में लोकतंत्र कमज़ोर है इसलिए अफ़ज़ल गुरु को शहीद बताने वालों के साथ सरकार चला कर उसे मजबूत करना है और दिल्ली में लोकतंत्र बहुत मजबूत है इसलिए सेमिनार में गुंडागर्दी कर के इसे कमज़ोर करना है.
मध्य प्रदेश सरकार ने विधानसभा में बताया कि प्रदेश में 16 नवंबर, 2016 से अब तक 1761 लोगों ने आत्महत्या की है. इनमें 287 किसान और कृषि मजदूर के अलावा 160 विद्यार्थी भी शामिल हैं.
‘जन की बात’ की नवीं कड़ी में वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ गुरमेहर कौर के वीडियो पर हुई ट्रॉलिंग और अभिव्यक्ति की आज़ादी की सीमा तय करने संबंधी अरुण जेटली के बयान पर चर्चा कर रहे हैं.
बस्तर में कार्यरत संतोष को छत्तीसगढ़ पुलिस ने वर्ष 2015 में गिरफ्तार किया था. वह नवभारत, पत्रिका और दैनिक छत्तीसगढ़ जैसे अख़बारों के लिए लिखा करते थे.
रामजस विवाद: द वायर के पास मौजूद आॅडियो रिकॉर्डिंग में एबीवीपी समर्थक कहता है, ‘हमारे कॉलेज में आके प्रोटेस्ट करेंगे तो पिटेंगे ही... एक बंदे को इतना मारा, मार-मार के लाल कर दिया.’
नोटबंदी से लोगों को तमाम परेशानियां हुईं, फिर भी ज्यादातर लोग नरेंद्र मोदी सरकार के इस कदम से ख़ुश क्यों हैं?
बढ़ती धार्मिक कुरीति और कट्टरता के दौर में भी कबीर होते तो यही कहते कि ‘मोको कहां ढूढ़ें बंदे, मैं तो तेरे पास में. न मैं देवल, न मैं मस्जिद, न काबे कैलास में...'
यूपी के गोंडा का जायज़ा लेने से पता चला कि पार्टियां भले ही कालाधन लाने, परिवारवाद मिटाने की बातें करें लेकिन चुनाव में जीत धन बल और बाहुबल से ही मिलती है.
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता ने कहा, मैंने उन सरकारी अधिकारियों के चेहरे पर आनंद देखा है जो जानते हैं कि वे हमारे रचनात्मक कार्यों को बर्बाद कर रहे हैं.
बीते दिनों रामजस कॉलेज में हुई हिंसा यह साफ़ दिखाती है कि अगर इस तरह की राजनीति से प्रेरित ग़ुंडागर्दी को नहीं रोका गया तो इसके परिणाम घातक हो सकते हैं.
जिन्हें मायावती पसंद नहीं हैं. वे उनके चुनाव चिह्न को ‘पागल हाथी’ कहते हैं. इस तरह वे एक ही बार में ‘पागल’ और ‘हाथी’ के लिए असंवेदनशील टिप्पणी कर बैठते है.
रामजस कॉलेज में एक सेमिनार को लेकर हुए विवाद के बाद से सोशल मीडिया पर एक कैंपेन शुरू हुआ है. इस कैंपेन को नाम दिया गया है, ‘आई ऐम नॉट अफरेड आॅफ एबीवीपी.’