फ़र्ज़ी ट्वीट कर परेश रावल ने कराई फ़ज़ीहत, मांगी माफ़ी

भाजपा सांसद ने लिखा, ‘मुंबई ताज हमले में शहीद मेजर संदीप उन्नीकृष्णन बेंगलुरु से हैं. उन्हें राज्य सरकार द्वारा 21 बंदूकों की सलामी नहीं दी गई!’

क्या मोदी प्रधानमंत्री की जगह ट्रोल्स के सरदार बनते जा रहे हैं?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गाली-गलौज करने वाले ट्विटर हैंडल्स को फॉलो करने पर कई बार सवाल उठाए गए हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.

सांसदों को अपना वेतन खुद से बढ़ाने का अधिकार नहीं होना चाहिए: वरुण गांधी

भाजपा सांसद ने कहा, सांसदों का वेतन पांच वर्षों में चार गुना बढ़ गया, जबकि संसद में कार्यदिवस घटकर 60 दिन पर आ गया है, 1952-72 के बीच यह 130 दिन था.

जेएनयू छात्रसंघ पर फिर वाममोर्चा का क़ब्ज़ा, आइसा की गीता कुमारी बनीं अध्यक्ष

सिमोन ज़ोया ख़ान को उपाध्यक्ष, एसएफआई के दुग्गीराला श्रीकृष्ण को महासचिव और डीएसएफ के शुभांशु सिंह को संयुक्त सचिव पद पर जीत हासिल हुई.

राम रहीम के ‘कुकर्मों का खुलासा’ कर रहा मीडिया अब तक क्यों उनकी गोद में बैठा था?

राम रहीम पर लगे आरोप डेढ़ दशक पुराने हैं, लेकिन मीडिया तब जागा, जब दो बहादुर बेटियों और एक जांबाज़ पत्रकार ने जान की बाज़ी लगाकर न्याय की लड़ाई जीत ली.

गौरी लंकेश मामले पर बोले एआर रहमान: यह मेरा भारत नहीं है

वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के चार दिन बाद भी नहीं मिला कोई सुराग, कांग्रेस-भाजपा में छिड़ी तकरार, राज्य ने केंद्र को रिपोर्ट भेजी.

भाजपा ने देश में सांप्रदायिकता और नफ़रत का जिन्न छोड़ दिया है

आम आदमी पार्टी से जुड़े आशीष खेतान का कहना है, यूपीए सरकार भले ही अयोग्य रही हो, वह इन समूहों की विचारधारा से इत्तेफ़ाक नहीं रखती थी, लेकिन वर्तमान सत्ता को इन्हीं समूहों से समर्थन मिलता है.

‘मैं समलैंगिक नहीं हूं, मुझे ग़लत समझा गया’

बीएचयू की छात्रा ने ‘समलैंगिक’ होने की बात नकारते हुए कहा कि उनकी कही बात का ग़लत अर्थ लेते हुए वॉर्डन ने बिना किसी लिखित आदेश के उन्हें हॉस्टल से निकाल दिया.

भारत असहिष्णु समाज बनने का ख़तरा मोल नहीं ले सकता: रघुराम राजन

रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या को दुर्भाग्यपूर्ण बताया. कहा- सहिष्णुता भारत की ताक़त है, इसे गंवाना नहीं चाहिए.

जनता को झूठे सपनों, निराधार तथ्यों और धर्म की भांग ने मदमस्त कर रखा है

कभी-कभी मोमबत्तियां लेकर, मानव श्रृंखला बनाकर खड़ा होने वाला भारत का बौद्धिक वर्ग छोटे-छोटे स्वार्थों, छोटी-छोटी नौकरियों और बड़े-बड़े पैकेजों के चक्कर में अपना दायित्व भूल गया है.

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