चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न का अलंकरण क़ाबिले-तारीफ़ है; लेकिन अगर उनके विचारों की लय पर सरकार अपने कदम उठाती तो बेहतर होता. सरकार से ज़्यादा यह दारोमदार रालोद के युवा नेता पर है कि वह अपने पुरखे और भारतीय सियासत के एक रोशनख़याल नेता के आदर्शों को लेकर कितना गंभीर है.
अपने वक़्त में कर्पूरी ठाकुर और चौधरी चरण सिंह जैसे नेता सामाजिक समानता की जिस लड़ाई में मुब्तिला थे, उसमें उनके लिए निजी मान-अपमान या विभूषणों का कोई प्रश्न कहीं था ही नहीं. चरण सिंह जब उपप्रधानमंत्री थे, तब सरकार ने न सिर्फ भारत रत्न, बल्कि सारे पद्म पुरस्कारों को 'अवांछनीय' क़रार देकर बंद कर दिया था.
राजस्थान विधानसभा की श्रीकरणपुर सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने अपने उम्मीदवार को जीत से पहले मंत्री बना दिया था. बाद में उन्हें कांग्रेस प्रत्याशी ने हरा दिया. 1948 में संविधान सभा में सवाल उठा था कि क्या विधायकों, सांसदों को मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद फिर निर्वाचन प्रक्रिया से गुज़रना चाहिए.
नवाबों का शहर फ़ैज़ाबाद, अब उस अयोध्या नगर निगम का अनाम-सा हिस्सा है, जिसके ज़्यादातर वॉर्डों के पुराने नाम भी नहीं रहने दिए गए हैं. नवाबों के काल की उसकी दूसरी कई निशानियां भी सरकारी नामबदल अभियान की शिकार हो गई हैं. हालांकि अब भी ग़ुलामी के वक़्त के तमाम नाम नज़र आते हैं, जो सरकार को नज़र नहीं आते.
उत्तराखंड के सुदूर गांवों, तहसीलों और क़स्बों में आम आदमी और लिखे-पढ़े लोग भी पूरी तरह भ्रमित हैं कि बेशुमार समस्याओं से घिरे इस छोटे-से प्रदेश में अफ़रा-तफ़री में पारित हुए विवादास्पद यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल से उनकी ज़िंदगी किस तरह से बदलेगी.
कथित संस्थागत जातिगत भेदभाव के कारण रोहित वेमुला और पायल तड़वी की आत्महत्या को लेकर उनकी माताओं द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर यूजीसी ने इस मामले को देखने के लिए 9 सदस्यीय समिति का गठन किया था. हालांकि समिति के सदस्यों के पास भेदभाव से निपटने का कोई ट्रैक रिकॉर्ड नहीं है, लेकिन वे भाजपा से निकटता रखते हैं.
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भारत में होने वाली ‘बुलडोज़र कार्रवाइयों’ को लेकर दो रिपोर्ट जारी करते हुए मुस्लिमों के घरों, कारोबार और उपासना स्थलों के व्यापक और ग़ैर-क़ानूनी विध्वंस को तत्काल रोकने का आह्वान किया है. रिपोर्ट बताती है कि भाजपा शासित मध्य प्रदेश में ‘सज़ा के तौर’ पर सर्वाधिक 56 बुलडोज़र कार्रवाइयां हुईं.
96 बरस वर्षीय लाल कृष्ण आडवाणी को भारत रत्न ऐसे समय दिया गया है, जब देश अगले लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रहा है और इसके केंद्र में नरेंद्र मोदी हैं. बेरहमी से दरकिनार किए जा गए अपने 'गुरु' को देश का सर्वोच्च सम्मान देकर नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया है.
‘दिव्य’ अयोध्या में भी बदहाली झेल रहे आचार्य नरेंद्रदेव नगर रेलवे स्टेशन को आख़िर बंद कर दिया गया. विपक्षी दल इसे आचार्य की कर्मभूमि में उनकी स्मृतियों का ध्वंस बताते हुए आरोप लगा रहे हैं कि सत्ताधीशों ने शहर में आचार्य को इतनी-सी जगह न देकर न सिर्फ उनके बल्कि समाजवाद के प्रति भी घृणा प्रदर्शित की है.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: पौराणिक कल्पना में रसातल सबसे नीचे है पर कितना नीचे है इसका पता नहीं. देश की राजनीति में घटनाक्रम इतनी तेज़ी से बदलता रहता है कि लगता है कि वह नीचता के और तल पर नीचे उतर गया. रसातल अभी इतना दूर नहीं है.
नेशनल अलायंस ऑफ जर्नलिस्ट्स, दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स और आंध्र प्रदेश वर्किंग जर्नलिस्ट्स फेडरेशन ने कहा है कि प्रसारण सेवा विधेयक टीवी चैनलों से लेकर सभी प्रकार के मीडिया जैसे फिल्म, ओटीटी, यूट्यूब, रेडियो सोशल मीडिया के साथ-साथ समाचार वेबसाइटों और पत्रकारों पर सरकारी नियंत्रण बढ़ाने की दिशा में एक क़दम है.
राम राज्य अपने आप नहीं आएगा, इसके लिए बड़े पैमाने पर सामाजिक प्रयास करने होंगे. सभी के लिए न्याय चाहिए होगा. लिंग, जाति, समुदायों के बीच समता लानी होगी. सभी के लिए उचित कमाई वाले रोज़गार, अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं और माहौल चाहिए होगा. लेकिन सिर्फ राम का आह्वान करने से ये नहीं होगा.
बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) में निकाय चुनाव लंबित रहने के दौरान फरवरी 2023 में लाई गई एक नीति मुंबई के विधायकों को अपने-अपने क्षेत्र में विकास कार्य कराने के लिए बीएमसी से फंड मांगने की अनुमति देती है. एक पड़ताल के मुताबिक, मुंबई के 36 में से 21 सत्तारूढ़ विधायकों को तो फंड मिल रहा है, लेकिन 15 विपक्षी विधायकों के आवेदन महीनों से लंबित पड़े हैं.
30 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी बहुप्रचारित यात्रा के दौरान ‘अचानक’ अयोध्या के राजघाट स्थित कंधरपुर की निवासी उज्ज्वला योजना की दस करोड़वीं लाभार्थी मीरा मांझी के घर जाकर चाय पी थी. मीडिया ने इससे जुड़ी छोटी-बड़ी ढेरों ख़बरें दिखाईं लेकिन उनकी ‘असुविधाजनक’ बातों और मांगों को ‘गोल’ कर गए.
आईआईटी से पढ़कर जेएनयू से पीएचडी कर रहे शरजील इमाम जनवरी 2020 से जेल में हैं. उनके भाई का कहना है कि शरजील को नागरिक समाज समूहों और प्रमुख राजनीतिक एक्टिविस्ट से सहयोग नहीं मिला है.