मशहूर शायर और यूपी विधान परिषद सदस्य वसीम बरेलवी ने कहा, हमारी विचारधारा एक है. इतनी भाषाओं, मज़हब, अलग-अलग संस्कृति के बावजूद हम एक थे, एक हैं और हमेशा एक रहेंगे.
अदालत ने कहा कि किसी के यौन रुझान और शयन कक्ष के ब्यौरे निजता के अधिकार के दायरे में आते हैं.
लोकसभा में किरण रिजिजू ने बताया कि भाषा का विकास सामाजिक आर्थिक राजनैतिक विकासों द्वारा प्रभावित होता है, भाषा संबंधी कोई मानदंड निश्चित करना कठिन है.
भाजपा शासित राज्यों में गोशालाओं में बदइंतज़ामी के चलते लगातार गायों की मौत हो रही है, लेकिन वे गाय के प्रति अपना ‘प्रेम’ उजागर करने में नित नये क़दम बढ़ाते रहते हैं.
अभिनेता नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने एक ट्वीट कर कहा, मुझे गोरे और सुंदर लोगों के साथ फिल्म में नहीं लिया जा सकता क्योंकि मैं सांवला हूं और सुंदर नहीं दिखता.
साक्षात्कार: सेंसर बोर्ड अध्यक्ष के रूप में पहलाज निहलानी का ढाई साल का कार्यकाल कई तरह के विवादों में रहा. उनसे बातचीत.
महागुन सोसाइटी में हुई मज़दूर वर्ग की हिंसा तो नज़र आती है मगर इस सोसाइटी में रहने वाले संपन्न तबके द्वारा इन मज़दूरों पर की जा रही हिंसा किसी को दिखाई नहीं पड़ती.
भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान मिताली राज के शतक पर कोहली या सचिन से तुलना कर जनमानस में ये बात बिठाई जाती है कि क्रिकेट महिलाओं का नहीं पुरुषों का खेल है.
साक्षात्कार: वरिष्ठ पत्रकार सागरिका घोष से उनकी नई क़िताब 'इंदिरा: इंडियाज़ मोस्ट पावरफुल प्राइम मिनिस्टर' पर मीनाक्षी तिवारी से बातचीत.
जैसे भारत में कुछ लोगों के नाम दारोगा पांडे या सिपाही सिंह होते हैं लेकिन वे न दारोगा होते हैं और न सिपाही. उसी तरह ‘थियेटर ओलंपिक्स’ संस्था ओलंपिक के नाम का इस्तेमाल कर रही है.
प्रधानमंत्री ने कहा, गोरक्षा को कुछ असामाजिक तत्वों ने अराजकता फैलाने का माध्यम बना लिया है. देश की छवि पर भी इसका असर पड़ रहा है.
सांसद लिंडा सांचेज ने महिला शौचालय नहीं होने का ज़िक्र करते हुए कहा, ये नियम बहुत पुराने समय के हैं. अगर हम परंपरा का पालन करते तो यहां महिला शौचालय भी नहीं होता.
एक अलग भारत और उसके केंद्रीय मूल्यों को याद कराने के लिए फिल्म अमर अकबर एंथनी बुरा विचार नहीं है. यह आज के नौजवानों को यह बतलाएगा कि भारत हमेशा से वैसा नहीं था, जैसा कि आज है.
‘राजनीति की तरह ही फिल्म जगत में भी कुछ परिवारों का कब्ज़ा है. दादाजी फिल्म बनाते थे, उनके बेटे बनाते थे. हम जैसे बाहर से आए हुए लोगों को दिक्कत होती है.’
भीड़-मानसिकता को जब कोई सांप्रदायिक विचारधारा नियंत्रित करती है तो निश्चित रूप से नारे भले ही अखंड भारत के लगें, भीतर ही भीतर विभाजन की पूर्वपीठिका तैयार की जा रही होती है.