सुप्रीम कोर्ट द्वारा राम मंदिर के पक्ष में निर्णय देने व मंदिर निर्माण के लिए न्यास के गठन के आदेश पर पांच फरवरी को केंद्र सरकार ने ट्रस्ट का ऐलान किया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पूर्व प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा अयोध्या में 66.7 एकड़ जमीन पर मंदिर निर्माण और प्रबंधन के लिए गठित समिति का नेतृत्व करेंगे.
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट बनने के ऐलान के बाद भाजपा की वरिष्ठ नेता उमा भारती ने कहा कि 9 नवंबर 2019 के फ़ैसले का श्रेय माननीय सुप्रीम कोर्ट को जाता है, लेकिन जिन साक्ष्यों ने वास्तव में इस निर्णय का आधार बनाया, वे अयोध्या में 6 दिसंबर, 1992 को अपनी जान गंवाने वालों के परिणाम थे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सदन में घोषणा करने के बाद गृहमंत्री अमित शाह ने बताया कि ट्रस्ट में 15 न्यासी होंगे, जिनमें से एक हमेशा दलित होगा. वहीं, उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को अयोध्या से 22 किलोमीटर दूर रौनाही में ज़मीन देने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी है.
गोधरा ट्रेन नरसंहार के अगले दिन 28 फरवरी 2002 की रात को सरदारपुरा गांव में अल्पसंख्यक समुदाय के 33 लोगों को ज़िंदा जला दिया गया था, जिसमें अधिकतर महिलाएं और बच्चे थे.
केंद्रीय गृह मंत्रालय के आदेश के मुताबिक, अतिरिक्त सचिव ज्ञानेश कुमार के नेतृत्व में अयोध्या और इससे जुड़े अदालती फैसलों से संबंधित मामलों पर गौर करने के लिए विशेष डेस्क बनाई गई है. ज्ञानेश कुमार गृह मंत्रालय में जम्मू कश्मीर और लद्दाख मामलों के विभाग के भी प्रमुख हैं.
19 दिसंबर 1927 को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अशफ़ाक़उल्ला ख़ां को फ़ैज़ाबाद जेल में फांसी दी गई थी. अयोध्या में उनके शहादत स्थल पर हर साल आयोजित होने वाले सभी श्रद्धांजलि कार्यक्रमों व समारोहों पर नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर प्रदर्शन की आशंका के चलते रोक लगा दी गई है.
मामला दक्षिण कन्नड़ ज़िले का है, जहां आरएसएस नेता द्वारा संचालित एक स्कूल के वार्षिक कार्यक्रम में बच्चों ने बाबरी विध्वंस का नाट्य रूपांतरण प्रस्तुत किया था. पुदुचेरी की उपराज्यपाल किरन बेदी भी इस कार्यक्रम का हिस्सा थीं, जिसके लिए माकपा ने उनके इस्तीफ़े की मांग की है.
कोर्ट ने कहा कि इन याचिकाओं में कोई मेरिट नहीं है. कई मुस्लिम पक्ष, 40 कार्यकर्ता, हिंदू महासभा और निर्मोही अखाड़ा ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी.
अखिल भारत हिंदू महासभा की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि विवादित ढांचे पर मुसलमानों का कोई अधिकार या मालिकाना हक़ नहीं है और इसलिए उन्हें पांच एकड़ ज़मीन आवंटित नहीं की जा सकती तथा किसी भी पक्षकार ने इस तरह की कोई ज़मीन मुसलमानों को आवंटित करने के लिए कोई अनुरोध या कोई दलील नहीं दी थी.
वीडियो: 6 दिसंबर 2019 को बाबरी मस्जिद विध्वंस के 27 साल पूरे हो गए. हम भी भारत की इस कड़ी में द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी की इस बारे में सामजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर और वरिष्ठ पत्रकार कुर्बान अली से बातचीत कर रही हैं.
इससे पहले मूल वादकारियों में शामिल एम. सिद्दीक के वारिस और उत्तर प्रदेश जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अशहद रशीदी ने बीते दो दिसंबर को पुनर्विचार याचिका दायर की थी.
6 दिसंबर 1992 को सिर्फ एक मस्जिद नहीं गिरायी गई थी, उस दिन संविधान की बुनियाद पर खड़ी लोकतंत्र की इमारत पर भी चोट की गई थी. अतीत में जो कुछ हुआ उसे फिर से उलट-पलट कर देखने का मौका साहित्य देता है. हिंदी साहित्य में यह घटना भी कई रूपों में दर्ज है.
इस अपराध की साज़िश रचने वालों ने खूब तरक्की की है और आज वे सत्ता में हैं. एक हिंदू वोट बैंक की कल्पना को साकार करने का अभियान उतनी ही शिद्दत से जारी है.
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और अयोध्या विवाद में मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने मंगलवार को सोशल मीडिया पर लिखा था कि उन्हें जमीयत प्रमुख मौलाना अरशद मदनी के इशारे पर उनके वकील एजाज़ मकबूल द्वारा इस मामले से हटा दिया गया है.
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने सोशल मीडिया पर लिखा कि उन्हें जमीयत प्रमुख मौलाना अरशद मदनी के इशारे पर उनके वकील एजाज़ मकबूल द्वारा इस मामले से हटा दिया गया. उन्हें ऐसा करने का अधिकार है, लेकिन इसके लिए बताई जा रही वजह दुर्भावना से भरी और झूठी है. अब वे इस मामले में दायर पुनर्विचार याचिका से किसी तरह से नहीं जुड़े हैं.