उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगे को लेकर द वायर द्वारा दायर किए गए आरटीआई आवेदन पर अपीलीय अधिकारी द्वारा आदेश देने के बाद भी दिल्ली पुलिस ने जानकारी देने से मना कर दिया. पुलिस ने सिर्फ़ गिरफ़्तार किए गए लोगों, दर्ज की गई एफआईआर, मृतकों एवं घायलों की संख्या की सूचना दी है.
दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कहा गया था कि पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना, 2020 सिर्फ़ अंग्रेज़ी और हिंदी में प्रकाशित किया गया है, जबकि इसका असर पूरे देश पर और कई उद्योगों पर होगा और पूरे देश से राय मांगी गई है. पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि नई अधिसूचना पर्यावरण विरोधी और हमें समय में पीछे ले जाने वाला है.
इस विवादास्पद अधिसूचना में कुछ उद्योगों को सार्वजनिक सुनवाई से छूट देना, उद्योगों को सालाना दो अनुपालन रिपोर्ट के बजाय एक पेश करने की अनुमति देना और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में लंबे समय के लिए खनन परियोजनाओं को मंज़ूरी देने जैसे प्रावधान शामिल हैं. सरकार ने सुझाव के लिए 30 जून तक का समय दिया था.
पीएम केयर्स फंड की कार्यप्रणाली बहुत ही अपारदर्शी है और इसे आरटीआई एक्ट के दायरे से भी बाहर कर दिया गया, जिसके कारण पता नहीं चल पा रहा है कि वाकई ये फंड किस तरह से काम कर रहा है, कौन इसमें डोनेशन दे रहा है और इसमें प्राप्त राशि को किन-किन कार्यों में ख़र्च किया जा रहा है?
बीते 29 मई को दिल्ली हाईकोर्ट ने दंगे के एक आरोपी को ज़मानत देते हुए पुलिस की इस दलील को ख़ारिज कर दी थी कि ज़मानत देने से समाज में गलत संदेश जाएगा. हाईकोर्ट ने कहा था कि अदालत का काम क़ानून के मुताबिक न्याय देना है, न कि समाज को संदेश देना.
याचिकाकर्ता ने कहा है कि चूंकि कोविड-19 महामारी के चलते अभी भी बड़े शहरों में लॉकडाउन है, जिसके कारण यहां कि जनता अधिसूचना पर राय नहीं भेज पा रही है. इसके अलावा पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना को सिर्फ़ अंग्रेज़ी भाषा में प्रकाशित किया गया है, जिससे एक बड़ी आबादी वैसे ही राय देने के दायरे से बाहर हो जाती है.
प्रस्तावित पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना में जिन विवादास्पद संशोधनों का प्रस्ताव किया गया है, उनमें कुछ उद्योगों को सार्वजनिक सुनवाई से छूट देना, उद्योगों को सालाना दो अनुपालन रिपोर्ट्स के बजाय एक रिपोर्ट देने की अनुमति देना और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में लंबे समय के लिए खनन परियोजनाओं को मंज़ूरी देने जैसे प्रावधान शामिल हैं.
आरटीआई के तहत प्राप्त किए गए दस्तावेज़ों से पता चलता है कि जनता द्वारा भेजे गए सुझावों के आधार पर पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों ने टिप्पणियां भेजने की समयसीमा 60 दिन बढ़ाने की मांग की थी, लेकिन केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इसे सिर्फ 20 दिन बढ़ाया.
उन लोगों के लिए ये राहत भरा क़दम हो सकता है जो उचित पारदर्शिता और जवाबदेही नहीं होने के कारण पीएमएनआरएफ और पीएम केयर्स फंड में अनुदान देने को लेकर संशय की स्थिति में थे.
करीब 15 साल पहले पारित किए गए आपदा प्रबंधन अधिनियम में ये प्रावधान दिया गया है कि आम जनता या संस्थान नेशनल डिज़ास्टर रिस्पॉन्स फंड (एनडीआरएफ) में अनुदान दे सकते हैं, लेकिन इसे लेकर अब तक कोई अकाउंट नहीं बनाया गया है. पीएम केयर्स के विपरीत इस फंड पर आरटीआई एक्ट लागू है और इसकी ऑडिटिंग कैग करता है.
याचिका में कहा गया है कि चूंकि पीएम केयर्स फंड की कार्यप्रणाली अपारदर्शी है और इसे आरटीआई एक्ट के दायरे से भी बाहर रखा गया है, इसलिए इसमें प्राप्त धनराशि को एनडीआरएफ में ट्रांसफर किया जाए, जिस पर आरटीआई एक्ट भी लागू है और इसकी ऑडिटिंग कैग करता है.
प्रधानमंत्री कार्यालय की बेवसाइट में कहा गया है कि पीएम केयर्स फंड का वित्तीय वर्ष के अंत में एक ऑडिट किया जाएगा और यह 27 मार्च, 2020 को नई दिल्ली में एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट के रूप में पंजीकृत किया गया था.
जम्मू कश्मीर सरकार ने 2001 से 2016 के बीच कथित फ़र्ज़ी एनकाउंटर, बलात्कार, हिरासत में मौत जैसे 50 मामलों में आरोपित सेना के जवानों के ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाने के लिए केंद्र सरकार से इजाज़त मांगी थी, जिसे स्वीकृति नहीं मिली. आरटीआई के तहत इसकी वजह जानने के लिए किए गए आवेदन के जवाब में केंद्रीय सूचना आयोग ने कहा है कि वह सेना से जुड़े दस्तावेज़ों के निरीक्षण का आदेश नहीं दे सकता.
दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर प्रधानमंत्री कार्यालय के उस जवाब को चुनौती दी गई है, जिसमें उसने कहा था कि पीएम केयर्स फंड आरटीआई एक्ट के तहत पब्लिक अथॉरिटी नहीं है.
सीआईसी ने कहा कि इस मामले के तथ्यों और सभी स्टेकहोल्डर्स द्वारा आयोग के सामने पेश किए गए जवाबों से पता चलता है कि कोरोना महामारी से संबंधित बेहद जरूरी जानकारी को मंत्रालय के किसी भी विभाग द्वारा मुहैया नहीं कराया जा सका है.