क्या प्रधानमंत्री को नहीं पता कि तनाव बोर्ड परीक्षा नहीं बल्कि शिक्षा की हालत के कारण है

देश के सरकारी स्कूलों में दस लाख शिक्षक नहीं हैं. कॉलेजों में एक लाख से अधिक शिक्षकों की कमी बताई जाती है. सरकारी स्कूलों में आठवीं के बच्चे तीसरी की किताब नहीं पढ़ पाते हैं. ज़ाहिर है वे तनाव से गुज़रेंगे क्योंकि इसके ज़िम्मेदार बच्चे नहीं, वो सिस्टम है जिसे पढ़ाने का काम दिया गया है.

सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला, विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति में होगा विभागवार आरक्षण

2017 में विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति में आरक्षण को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि आरक्षण विभागवार आधार पर दिया जाए न कि कुल सीटों के आधार पर. केंद्र द्वारा इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी.

अब तो कुलपति भी क़त्ल के लिए उकसाने लगे!

कुलपतियों के कारनामे अब देश के विश्वविद्यालयों का मौसम बन गए हैं. विश्वविद्यालयों की प्रतिष्ठा और गुणवत्ता दोनों पर दाग लग रहे हैं. बड़बोलेपन में राजनीतिक नेताओं को भी मात करने वाले कुलपतियों के ही कारण देश के कई बड़े और श्रेष्ठ उच्च शिक्षण संस्थान इन दिनों बर्बादी के कगार पर पहुंच गए हैं.

आरटीआई से खुलासा, देश के आठ प्रमुख आईआईटी में शिक्षकों के 36 फीसद पद खाली

शिक्षकों की कमी के मामले में सबसे गंभीर स्थिति वाराणसी के आईआईटी बीएचयू की है. यहां पर शिक्षकों के लिए 548 स्वीकृत पद हैं लेकिन इस समय सिर्फ 265 शिक्षक काम कर रहे हैं.

पत्रकार रवीश कुमार ने प्रधानमंत्री मोदी के लिए भाषण लिखा है, क्या वे इसे पढ़ सकते हैं?

भाजपा की सरकार ने उच्च शिक्षा पर उच्चतम पैसे बचाए हैं. हमारा युवा ख़ुद ही प्रोफेसर है. वो तो बड़े-बड़े को पढ़ा देता है जी, उसे कौन पढ़ाएगा. मध्य प्रदेश का पौने छह लाख युवा कॉलेजों में बिना प्राध्यापक, सहायक प्राध्यापक के ही पढ़ रहा है. हमारा युवा देश मांगता है, कॉलेज और कॉलेज में टीचर नहीं मांगता है.

मोदी सरकार को समझना चाहिए कि उच्च शिक्षा संस्थान जनसंपर्क कार्यालय नहीं होते

सीसीएस जैसे क़ानूनों का उद्देश्य उच्च शिक्षा के उद्देश्यों को ही ध्वस्त कर देना है. उच्च शिक्षा में विकास तब तक संभव नहीं है जब तक विचारों के आदान-प्रदान की आज़ादी नहीं हो. अगर इन संस्थाओं की ये भूमिका ही समाप्त हो जाए तो उच्च शिक्षा की आवश्यकता ही क्या रहेगी? शिक्षक और शोधार्थी सरकारी कर्मचारी की तरह व्यवहार नहीं कर सकते.

अगर मेरी किताबों में कोई तत्व नहीं है, तो इन्हें सालों से क्यों पढ़ाया जा रहा था: कांचा इलैया

दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा एमए के पाठ्यक्रम से दलित लेखक और चिंतक कांचा इलैया शेपहर्ड की किताब हटाने के प्रस्ताव पर उनका कहना है कि विश्वविद्यालय अलग-अलग विचारों को पढ़ाने, उन पर चर्चा करने के लिए होते हैं, वहां सौ तरह के विचारों पर बात होनी चाहिए. विश्वविद्यालय कोई धार्मिक संस्थान नहीं हैं, जहां एक ही तरह के धार्मिक विचार पढ़ाए जाएं.

‘इंस्टिट्यूट ऑफ एमिनेंस’ का दर्जा न मिलने से आईआईटी मद्रास निराश, एचआरडी को लिखा पत्र

आईआईटी मद्रास की ओर से कहा गया है कि इंस्टिट्यूट ऑफ एमिनेंस की दौड़ में उसे नज़रअंदाज़ किए जाने का असर छात्र-छात्राओं के मनोबल पर पड़ा है. इंस्टिट्यूट ऑफ एमिनेंस के तहत रिलायंस फाउंडेशन के प्रस्तावित जियो इंस्टिट्यूट को चुना गया है.

आम आदमी पार्टी के इस अंजाम से भाजपा और कांग्रेस के लिए भी कई सबक हैं

कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा सबक यह है कि उसका पुनर्जीवन राहुल के करिश्मे की प्रतीक्षा में नहीं, नीतियों के पुनर्निर्धारण व अमल में है, जबकि भाजपा के लिए यह कि नीतिविहीनता के उसके वर्तमान हालात में नरेंद्र मोदी का खत्म होने को आ रहा करिश्मा कभी भी उसके सपनों के महल की सारी ईंटें भरभराकर गिरा देगा.

आशुतोष के बाद अब आशीष खेतान ने भी आम आदमी पार्टी छोड़ी

पूर्व पत्रकार आशीष खेतान ने निजी कारणों से सक्रिय राजनीति से दूर होने की बात कही है. हालांकि आगामी आम चुनाव के लिए दिल्ली की पांच सीटों के लिए चयनित प्रभारियों में नाम नहीं शामिल किए जाने को भी नाराज़गी की वजह बताया जा रहा है.

शोध में चोरी करने पर जा सकती है शिक्षकों की नौकरी, रद्द होगा छात्र-छात्राओं का रजिस्ट्रेशन

यूजीसी द्वारा पारित नए नियमों के मुताबिक थीसिस में प्लेगरिज़्म यानी साहित्य चोरी पाए जाने डिग्री मिल जाने की स्थिति में शिक्षकों को वेतन वृद्धि और नए छात्रों के सुपरविज़न के अधिकार नहीं दिए जाएंगे.

जियो इंस्टिट्यूट को ‘उत्कृष्ट संस्थान’ का दर्जा देना एक साहसिक निर्णय: अरविंद पनगढ़िया

नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने कहा कि भारत के माहौल को देखते हुए ऐसी कोई चीज़ जो अभी अस्तित्व में न हो, उसकी घोषणा करने से पहले कोई और प्रधानमंत्री दो-तीन बार सोचता.

क्या कहता है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘अंबानियों’ से यह अनुराग?

बेस्ट ऑफ 2018: प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी ने अपने बेशकीमती चार साल मुकेश अंबानी जैसे उद्योगपतियों व उनके परिवारों के प्रति अनुराग के प्रदर्शन और आम देशवासियों के तिरस्कार व ‘सबका साथ सबका विकास’ के अपने नारे के द्वेषपूर्ण क्रियान्वयन में बर्बाद कर दिया है.

जन गण मन की बात, एपिसोड 273: बदहाल नगरीय व्यवस्था और जियो इंस्टिट्यूट

जन गण मन की बात की 273वीं कड़ी में विनोद दुआ नगर निकायों के कुप्रबंधन के चलते आम जनता को हो रही मुश्किलों और रिलायंस के जियो इंस्टिट्यूट को बनने से पहले ही उत्कृष्टता का दर्जा मिलने पर चर्चा कर रहे हैं.

जियो इंस्टिट्यूट विवाद: एक अजन्मे संस्थान का ‘श्रेष्ठ’ हो जाना मोदी सरकार में ही संभव था

वीडियो: मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय द्वारा ‘इंस्टिट्यूशन ऑफ एमिनेंस’ की सूची में रिलायंस फाउंडेशन के कागज़ी इंस्टिट्यूट को जगह मिलने पर हुए विवाद पर दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद से मीनाक्षी तिवारी की बातचीत.