टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में बताया गया है कि दिसंबर 2019 में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) द्वारा सौंपी गई परफॉर्मेंस ऑडिट रिपोर्ट में सीएजी ने केवल बारह रक्षा ऑफसेट सौदों की समीक्षा की है. रक्षा मंत्रालय ने ऑडिटर को रफाल ऑफसेट सौदे संबंधी कोई जानकारी होने से इनकार किया है.
फ्रांसीसी अख़बार ले मोंदे की रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल 2015 में रफाल सौदे की घोषणा के बाद फ्रांस के अधिकारियों ने अनिल अंबानी समूह की एक कंपनी का 143.7 मिलियन यूरो का टैक्स माफ़ किया था.
दासो एविएशन से रफाल लेते समय एक ख़रीददार के बतौर भारत काफ़ी मज़बूत स्थिति में था, लेकिन फिर भी कई मुद्दों पर रक्षा खरीद प्रक्रिया 2013 का उल्लंघन करते हुए रियायतें दी गईं.
मोदी सरकार द्वारा किए गए सौदे के तहत गारंटी संबंधी प्रावधानों पर चिंता व्यक्त करते हुए कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि क़रार के भंग होने की स्थिति में भारत को पहले पंचाट या मध्यस्थता के ज़रिये सीधे तौर पर विमान के फ्रांसीसी आपूर्तिकर्ताओं के साथ मामले को सुलझाना पड़ेगा.
बुधवार को संसद में रफाल पर अपनी रिपोर्ट पेश कर कैग ने दावा किया कि या रफाल सौदा यूपीए की डील के मुकाबले 2.86 प्रतिशत सस्ता है. हालांकि कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दल कैग रिपोर्ट की आलोचना कर रहे हैं.
रफाल को लेकर मोदी सरकार का दावा है कि नई डील यूपीए सरकार से बेहतर है और इसकी वजह से भारत को विमान जल्दी मिल जाएंगे. हालांकि रक्षा मंत्रालय के तीन वरिष्ठ अधिकारियों ने सरकार के इन दावों पर सहमति नहीं जताई थी.
भारतीय रक्षा पूंजी खरीद की बातचीत में किसी ‘शेरपा’(दूत) की मदद की व्यवस्था छोड़िए, कोई कल्पना भी नहीं की गई है. न ही अंतरसरकारी समझौतों के मामलों में उनकी कोई भूमिका ही सुनिश्चित की गई है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2015 में रफाल सौदे से महज़ 15 दिन पहले अनिल अंबानी फ्रांस के रक्षामंत्री और उनके सलाहकारों से मिले थे. कांग्रेस ने सरकार पर गोपनीयता क़ानून के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए कहा, ‘रक्षा मंत्री और विदेश सचिव नहीं जानते थे लेकिन अंबानी को पता था कि सौदा होने वाला है.’
क्या आपने रक्षा ख़रीद की ऐसी कोई डील सुनी है जिसकी शर्तों में से किसी एजेंसी या एजेंट से कमीशन लेने या अनावश्यक प्रभाव डालने पर सज़ा के प्रावधान को हटा दिया जाए? मोदी सरकार की कथित रूप से सबसे पारदर्शी डील में ऐसा ही किया गया है.