सुप्रीम कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि अस्पतालों में कोरोना वायरस से संक्रमित पीड़ितों का इलाज कर रहे डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ को केंद्र और राज्य सरकारें पुलिस सुरक्षा मुहैया कराएं.
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के उस फैसले को चुनौती दी गई थी जिसमें ये कहा गया था कि प्राइवेट लैब्स कोरोना जांच के लिए 4500 रुपये तक वसूल सकते हैं.
महामारियों ने हमेशा से ही इंसान को अतीत से नाता तोड़कर एक नए भविष्य की कल्पना करने के लिए मजबूर किया है. यह महामारी भी नए और पुराने के बीच एक दरवाज़ा है और यह हम पर है कि हम पूर्वाग्रह, नफ़रत, लोभ आदि के कंकाल ढोते हुए आगे बढ़ें या बिना ऐसे बोझों के एक नई और बेहतर दुनिया की कल्पना के साथ आगे निकलें.
संगठन के मुताबिक भारत में लागू किए गए देशव्यापी लॉकडाउन से मजदूर बुरी तरह प्रभावित हुए हैं और उन्हें अपने गांवों की ओर लौटने को मजबूर होना पड़ा है.
सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कहा गया है कि वृद्ध क़ैदी और पहले से ही उच्च रक्तचाप, मधुमेह, हृदय और फेफड़ों की बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति कोरोना वायरस के संक्रमण से गंभीर रूप से प्रभावित हो सकते हैं.
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाख़िल कर मीडिया के एक वर्ग पर सांप्रदायिक नफ़रत फैलाने का आरोप लगाया है. याचिका में कहा गया है कि तबलीग़ी जमात की दुर्भाग्यपूर्ण घटना का इस्तेमाल पूरे मुस्लिम समुदाय को दोष देने में किया जा रहा है.
भारतीय अर्थव्यवस्था निगरानी केंद्र के आंकड़ों के अनुसार, भारत में साल 2006 से 2016 के बीच 27.1 करोड़ लोग ग़रीबी से बाहर आए हैं, लेकिन अब लॉकडाउन के चलते कई लोगों की ज़िंदगी अधर में है. इसके चलते हज़ारों लोग बेरोज़गार हुए है और अपने गांव-क़स्बों की ओर लौटने को मजबूर हैं.
एक जनहित याचिका में शहरों से पलायन न करने वाले कामगारों को पारिश्रमिक दिए जाने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसे बताया गया है कि ऐसे कामगारों को आश्रय गृहों में भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है और ऐसी स्थिति में उन्हें पैसे की क्या जरूरत है.
कोरोना संक्रमण फैलने से रोकने के लिए राज्य सरकार ने 700 कैदियों को रिहा करने का निर्णय लिया है. इस कदम का स्वागत करते हुए एमेनस्टी इंडिया ने कहा है कि मुख्यमंत्री को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि हिरासत केंद्रों में विदेशी घोषित किए गए और संदिग्ध नागरिकों को भी तत्काल रिहा किया जाए.
सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल एक जनहित याचिका में कहा गया है कि देशव्यापी लॉकडाउन की वजह से रोज़गार गंवाने वाले लाखों कामगारों के लिए जीने के अधिकार लागू कराने की आवश्यकता है. सरकार के 25 मार्च से 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा के बाद ये कामगार बुरी तरह प्रभावित हुए हैं.
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि अगर निज़ामुद्दीन मरकज़ ने लॉकडाउन के नियमों की अवहेलना की हो तो उसकी निष्पक्ष जांच की जानी चाहिए. साथ में यह भी देखना चाहिए कहां-कहां ऐसी धार्मिक और सामाजिक गतिविधियां हुईं, जिसमें लॉकडाउन के नियमों का उल्लंघन हुआ.